TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

ऑर्गेनिक खेती से फायदे ही फायदे, किसानों की बदल रही किस्मत

raghvendra
Published on: 13 Oct 2017 4:52 PM IST
ऑर्गेनिक खेती से फायदे ही फायदे, किसानों की बदल रही किस्मत
X

दुर्गेश पार्थ सारथी की रिपोर्ट

अमृतसर: बेसहारा व पिंगला बच्चों की सेवा के साथ-साथ अमृतसर की एक संस्था आर्गेनिक खेती की दिशा में काम कर रही है और उसने सैकड़ों किसानों को इससे जोड़ा है। भगत पूरन सिंह पिंगलवाड़ा चैरीटेबल सोसायटी की मुख्य सेवादार डॉ.बीबी इंद्रजीत कौर लगभग ४० एकड़ रकबे में देसी तरीके से खेती कर धरती व वायुमंडल को प्रदूषित होने से बचाने के साथ ही किसानों को इसके लिए प्रेरित करने में लगी हैं।

जिले की तहसील जंडियागुरु के धीरांकोट में स्थापित भगत पूरन सिंह कुदरती खेती फार्म व खोज केंद्र के इंचार्ज राजवीर सिंह कहते हैं कि देसी तकनीक से की गई खेती किसानों को जहां कर्ज से उबारती है वहीं धरती को बंजर व अनाज को जहरीला होने से भी बचाती है। इसलिए किसानों को जीरो बजट वाली इस खेती के तौर तरीकों को अपनाना चाहिए। इससे किसान व किसानी दोनों का भला होता है।

उनका मानना है कि हरित क्रांति के बाद संकर बीजों से गेहूं व धान की उपज तो बढ़ी है, लेकिन उतनी ही मात्रा में रासायनिक खादों की खपत भी बढ़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि खेत की उपज शक्ति कम हो गई। 1985 से गेहूं का उत्पादन हर साल कम होने लगा। यही हाल धान का भी है। अधिक पैदावार की लालच में किसान अंधाधुंध रासानियक खाद, कीटनाशक व जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करने लगे हैं।

इस खबर को भी देखें: धर्म नगरी पर सांप्रदायिक हिंसा की काली छाया, अवैध संबंधों के चलते युवक की हत्या

हालत यह है कि साल दर साल भू जलस्तर गिरता जा रहा है। जबकि कुदरती खेती में कीटनाशक से लेकर खाद तक गोमूत्र, गोबर, गुड़ व बेसन से तैयार की जाती है। एक साथ गन्ना, मंग व हल्दी की खेती सुनने में थोड़ी अटपटी जरूर लगती है, लेकिन यह बात सही है कि थोड़े से प्रयास से कम लागत में एक साथ गन्ना, मूंग व हल्दी की खेती की जा सकती है।

फार्म इंचार्ज राजवीर सिंह कहते हैं कि कुदरती खेती से कुछ भी असंभव नहीं है। एक खेत में गन्ने के लिए 4-4 फुट की मेड़ जैसी लाइनें बना लें और हर लाइन के बीच में 12-12 फुट की जगह छोड़ते जाएं। मेड़ पर पौने दो इंच की गन्ने की गुल्लियां लगाते जाएं और 12 फुट की खाली जगह में चाहें तो हल्दी, मूंग, घीया-तोरी या कोई अन्य फसल बीज सकते हैं। इससे गन्ने के लिए पूरे साल तक खेत भी नहीं फंसाना पड़ेगा और न अतिरिक्त पानी देना पड़ेगा यानी देसी तकनीक से कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।

इस तरह आया कुदरती खेती का ख्याल

डा. इंद्रजीत कौर कहती हैं कि करीब 10 साल पहले एक सेमिनार में शामिल होने गईं थीं। यह सेमिनार पैदा हो रहे विकलांग बच्चों व इसके कारणों पर था। इसमें कई शोधकर्ता व विचारक मौजूद थे। सेमिनार के दौरान यह बात सामने आई कि रसायनिक खानों व कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग कर तैयार की गई फसलों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन ही इसका मुख्य कारण है। साथ ही कई तरह की लाइजाल बीमारियां भी इसी कारण हो रही हैं।

उन्होंने कहा कि इसका जीता जागता उदाहरण मालवा क्षेत्र का दूषित भूजल है, जिससे इस क्षेत्र में कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ रही है। पंजाब के किसान कम समय में अधिक पैदावार लेने के चक्कर में रासायनिक व कीटनाशकों का तय मात्रा से अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। डा. कौर कहती हैं कि इसी दौरान उन्हें ख्याल आया कि क्यों न इससे बचने के लिए प्राकृतिक खेती के तौरतरीकों को अपनाया जाए और किसानों को जागरूक किया जाए। इसके लिए महाराष्ट्र के अमरावती जिले के किसान सुभाष पालेकर से संपर्क किया गया।

पालेकर कुदरती खेती करने वाले सफल व प्रसिद्ध किसान हैं और उन्हीं के दिशा निर्देशन में 2006 में धीरांकोट कुदरती खेती की शुरुआत की गई। आज 40 एकड़ से अधिक रकबे में तीन चार किस्म की बासमती, गेहूं, गन्ना, मक्की, उड़द, हल्दी सहित कुछ एकड़ में बागबानी की जा रही है। इससे पैदा होने वाला अनाज व सब्जियां पिंगलवाड़ा व श्री हरिमंदिर साहिब में भेजी जाती हैं। डा. कौर के अनुसार अब एसजीपीसी ने भी इस दिशा में पहल की है। उम्मीद है कि इससे किसान भी उत्साहित होंगे जिससे आर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलेगा।

हो चुके हैं 1000 से अधिक सेमिनार

डा. इंद्रजीत कौर के मुताबिक कुदरती खेती को बढ़ावा देने व किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए दूसरे प्रदेशों के अलावा पंजाब में 1000 से अधिक सेमिनार व प्रशिक्षण शिविर लगाए जा चुके हैं। वे कहती है कि किसानों को जागरूक करने के लिए खुद के साथ-साथ सरकारी व गैर सरकारी संगठनों की ओर से भी प्रयास किए जाने चाहिए ताकि पंजाब को आर्गेनिक खेती वाला देश का पहला राज्य बनाया जा सके।

पशुपालन को भी दिया जा रहा बढ़ावा

सिंह के मुताबिक पिंगलवाड़ा सोसायटी खेती के साथ पशुपालन को भी बढ़ावा दे रही है क्योंकि पशुपालन कुदरती खेती का अभिन्न हिसा है। इस तरह की खेती में प्रयोग होने वाला 100 फीसद तत्व गायों के गोबर व मूत्र से तैयार होता है और यह जरुरत पशुपालन से ही पूरी हो सकती हैं।

मत घोलें फिजां में जहर

डा. इद्रजीत कौर के मुताबिक फसल चाहे कोई भी हो उसका अवशेष धरती के लिए अमृत होता है। धान के नाड़ हों या गेहूं के फाने। अवशेषों में आग लगाने से प्रदूषण बढऩे के साथ ही खेतों में पलने वाले मित्र कीट भी मर जाते हैं और खेत की पैदावार शक्ति कम हो जाती है। इससे अच्छा है कि फसलों के अवशेष को रोटावेटर से जोत दें और उसे सडऩे के लिए खेत में ही छोड़ दें। यह खेत की मिट्टी के लिए औषधि का काम करेगा।

विदेशी भी आते हैं खेती कै तौर-तरीके सीखने

फार्म के इंचार्ज राजवीर सिंह कहते हैं कि कुदरती खेती की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि विभिन्न प्रदेशों के अलावा फिनलैंड, इंग्लैंड व कनाडा के किसान भी कुदरती खेती फार्म में प्रशिक्षिण लेने आते हैं। राजवीर सिंह के अनुसार पिछले दिनों फिलीपींस के कृषि वैज्ञानिक व नेपाल के कृषि मंत्री भी इस फार्म का दौर कर चुके हैं।

यही नहीं कनाडा व इंग्लैंड में संगत चैनल पर भी महीने में एक बार यहां के खेतीफार्म की जानकारी डाक्यूमेंटरी बनाकर दी जाती है। वे कहते हैं कि इस दिशा में खालसा कालेज प्रबंधन ने अच्छी पहल की हैं। वहां के आर्गेनिक खेती फार्म में तैयार गेहूं को इस सीजन में लोगों ने 2500 रुपये क्विंटल के हिसाब से खरीदा है।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story