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Padma Awards 2023: पद्म सम्मान के हैं कई सियासी मायने
Padma Awards 2023: कृष्णा और मुलायम के साथ साथ त्रिपुरा के आदिवासी नेता एनसी देबबर्मा को राज्य में मतदान से कुछ दिन पहले पद्म श्री से नवाजा गया है। इसके अलावा मणिपुर के दिग्गज नेता थौनाओजम चौबा सिंह को भी पद्मश्री दिया गया है।
Padma Awards 2023: कर्नाटक के नेता एसएम कृष्णा और समाजवादी पार्टी के दिवंगत सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण सम्मान तथा त्रिपुरा के आदिवासी नेता एनसी देबबर्मा और मणिपुर के थौनाओजम चौबा सिंह को पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने के कई सियासी मायने हैं।
जहां एस.एम. कृष्णा चुनावी राज्य कर्नाटक में शक्तिशाली वोक्कालिगा समुदाय के नेता हैं, वहीं मुलायम सिंह यादव ओबीसी के बीच देश में सबसे सम्मानित नामों में से एक हैं। इन दोनों के साथ साथ त्रिपुरा के आदिवासी नेता एनसी देबबर्मा को राज्य में मतदान से कुछ दिन पहले पद्म श्री से नवाजा गया है। इसके अलावा मणिपुर के दिग्गज नेता थौनाओजम चौबा सिंह को भी पद्मश्री दिया गया है।
कर्नाटक के एसएम कृष्णा
90 वर्षीय एसएम कृष्णा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। उनको राज्य में पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) नेता एच डी देवेगौड़ा के बाद सबसे प्रमुख वोक्कालिगा नेता माना जाता है। अगर देवेगौड़ा को समुदाय के जमीनी नेता के रूप में देखा जाता है, तो कृष्ण को हमेशा अपनी विदेशी शिक्षा के साथ शहरी चेहरे के रूप में देखा जाता था। कृष्णा एक स्टाइलिश शख्सियत रहे हैं। अभी भी उन्हें व्यापक रूप से बेंगलुरु में शहरी विकास के मुख्य वास्तुकारों में से एक के रूप में माना जाता है।
एसएम कृष्णा कांग्रेस में लगभग पांच दशकों तक रहे और उन्होंने मुख्यमंत्री, विदेश मंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल जैसे शीर्ष पदों पर कार्य किया। 2017 में वे भाजपा में शामिल हो गए। इसे पार्टी द्वारा दक्षिण कर्नाटक में पैर जमाने के प्रयास के रूप में देखा गया। लेकिन इस कदम से भाजपा को कोई गंभीर राजनीतिक लाभ नहीं मिला। कृष्णा अब भाजपा में हैं लेकिन उन्हें कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख डीके शिवकुमार का हितैषी माना जाता है, जो पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर सहयोगी सिद्धारमैया के साथ कंपटीशन में हैं। बहरहाल, कृष्ण के लिए पद्म सम्मान उनके समुदाय के लिए एक गर्व की बात होने की उम्मीद है।
मुलायम सिंह यादव
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति के वास्तुकार थे। वहआठ बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, सात बार सांसद के रूप में कार्य किया तथा संयुक्त मोर्चा सरकार के तहत रक्षा मंत्री और तीन बार यूपी के सीएम रहे। लंबे समय तक यूपी में बीजेपी की मंदिर की राजनीति के खिलाफ मुलायम ही एकमात्र सहारा थे। उनके बेटे अखिलेश के नेतृत्व में सपा ने यूपी में पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को एकमात्र चुनौती दी थी। लेकिन अब भाजपा का व्यवहार कुछ यूं है कि उसके पास मुलायम के लिए सम्मान के अलावा कुछ नहीं है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने उनके अंतिम संस्कार के लिए पूर्ण राजकीय सम्मान की घोषणा की थी और भाजपा ने हाल ही में लखनऊ में अपनी कार्यकारी बैठक के दौरान पारित एक शोक प्रस्ताव में उनका उल्लेख किया था।
त्रिपुरा के एनसी देबबर्मा
त्रिपुरा के पूर्व राजस्व मंत्री देबबर्मा इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। त्रिपुरा में 2018 में भाजपा की सरकार बनाने में यह आदिवासी पार्टी एक मूल्यवान सहयोगी रही थी। देबबर्मा को पद्मश्री ऐसे समय में मिला है जब आईपीएफटी भाजपा से दूर जा रही है और एक अन्य आदिवासी पार्टी, टिपरा मोथा, त्रिपुरा में आदिवासी समुदाय के वोट के प्रबल दावेदार के रूप में उभरी है। देबबर्मा पाँच दशकों से त्रिपुरा की आदिवासी राजनीति से जुड़े हुए थे, और आईपीएफटी के अलावा, त्रिपुरा उपजात जुबा समिति, त्रिपुरा हिल पीपुल्स पार्टी और त्रिपुरा ट्राइबल नेशनल काउंसिल सहित राज्य में एक से अधिक आदिवासी संगठनों के पीछे थे।
मणिपुर के थौनाओजम चौबा सिंह
मणिपुर में कांग्रेस के एक पूर्व नेता, चौबा सिंह ने पांच बार नंबोल विधानसभा सीट जीती और 1994 से 1995 तक मणिपुर के उपमुख्यमंत्री रहे। वह आंतरिक मणिपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए भी चुने गए और प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख बने। 1998 और 1999 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए फिर से चुने जाने के बाद, चौबा सिंह 2004 के आम चुनावों से पहले भाजपा में शामिल हो गए। जीतने के बाद, उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया। वह मणिपुर भाजपा अध्यक्ष भी बने और 2006 तक इस पद पर रहे। अपनी खुद की पार्टी, मणिपुर पीपुल्स पार्टी (एमपीपी) बनाने के बाद, वह भाजपा में लौट आए और 2012 में उन्हें फिर से राज्य पार्टी अध्यक्ष नामित किया गया। जब पार्टी ने 2017 मणिपुर विधानसभा चुनाव जीता तो उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जाता था। लेकिन वह इस रेस में एन.बीरेन सिंह से हार गए।