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उत्तराखंड का पंचेश्वर बांध: एक और बड़े विस्थापन की ओर
नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हाल की भारत यात्रा के दौरान उत्तरखंड में बनने वाले पंचेश्वर मेगा डैम परियोजना पर भी बात हुई। यह परियोजना कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 25 अगस्त को देउबा के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित रात्रि भोज में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी शरीक हुए।
देहरादून : नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हाल की भारत यात्रा के दौरान उत्तराखंड में बनने वाले पंचेश्वर मेगा डैम परियोजना पर भी बात हुई। यह परियोजना कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 25 अगस्त को देउबा के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित रात्रि भोज में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी शरीक हुए।
भारत-नेपाल का मजबूत संबंध
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाद में बताया भी कि नेपाली प्रधानमंत्री के इस दौरे में बहुउद्देशीय पंचेश्वर बांध पर भी बात हुई। यह एक सामान्य शिष्टाचार मुलाकात लग सकती है लेकिन इससे यह साफ हो जाता है कि भारत और नेपाल के लिए पंचेश्वर बांध का कितना महत्व है। यह भी कि पीएम मोदी नेपाल के साथ भारत के संबंध मजबूत करने के लिए इसे एक अहम परियोजना मानते हैं। जाहिर है तभी उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली आकर नेपाली प्रधानमंत्री से मुलाकात करने को कहा।
इन क्षेत्रों पर विरोध
भारत और नेपाल सरकार दुनिया के सबसे बड़े बांध को बनाने की योजना पर लगातार आगे बढ़ तो रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड के जिन तीन जिलों - अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत के इलाके इसके डूब क्षेत्र में आने वाले हैं, वहां इस बांध का भारी विरोध हो रहा है। पर्यावरण पर इस बांध के असर को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
पंचेश्वर का विरोध क्यों?
विरोध बांध को लेकर उतना नहीं जितना सही तरीके से विस्थापन के सवाल पर है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि भले ही केंद्र सरकार और नेपाल सरकार इस योजना के लिए सहमत हों, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि विस्थापन के बाद लोगों का पुनर्वास कैसे होगा। ऐसी स्थिति में तीनों ही जिलों में ग्रामीण पंचेश्वर बांध योजना का विरोध कर रहे हैं। अधिकारियों को भी विस्थापन को लेकर अभी शासन द्वारा कोई निर्देश नहीं मिला है। पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा में लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। ग्रामीण अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कैंडल मार्च से लेकर धरना तक दे चुके हैं।
परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय रिपोर्ट
परियोजना पर लोगों के संशय को दूर करने के लिए सरकार की ओर से चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में पर्यावरणीय जन सुनवाई की गई। तीनों स्थानों पर अधिकारियों को विरोध ही झेलना पड़ा। पर्यावरण विशेषज्ञ विमल भाई पूछते हैं कि जब पर्यावरणीय जन सुनवाई थी, तो पर्यावरण की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? क्या पर्यावरण मंत्रालय ने ऐसा कोई रिपोर्ट दी है, जिससे जन आंदोलन भड़क सकता है? परियोजना अधिकारी पर्यावरण रिपोर्ट को उचित पटल पर रखने का दावा कर रहे हैं। इस पर लोग पूछ रहे हैं कि जब उचित पटल पर ही रिपोर्ट रखनी थी तो जन सुनवाई क्यों की गई? पूर्व स्पीकर और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल भी अल्मोड़ा की जनसुनवाई में शामिल हुए थे। उन्होंने भी बड़े बांधों का विरोध करते हुए पर्यावरणीय रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की। पंचेश्वर बांध की जनसुनवाई में प्रभावितों की बात न सुने जाने को लेकर दायर एक याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य और केन्द्र को भी नोटिस दिया है। इन जनसुनवाइयों की सच्चाई ये भी है कि यहां पर्यावरण पर बोलने वालों को मंच तक पहुंचने नहीं दिया गया।
क्या है पंचेश्वर बांध परियोजना?
प्रस्तावित पंचेश्वर बांध ऊंचाई के लिहाज से विश्व का सबसे ऊंचा बांध होगा। 315 मीटर ऊंचा ये बांध उस हिस्से में प्रस्तावित है, जहां दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है। उत्तराखंड के चंपावत जिला मुख्यालय से लगभग 62 किलोमीटर की दूरी पर सरयू और काली नदी के संगम स्थल पर पंचेश्वर बांध का बनना कई दशकों से प्रस्तावित है। लगभग 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले पंचेश्वर बांध से 5,600 मेगावाट बिजली पैदा किए जाने का दावा किया जा रहा है। इस बांध से भारत और नेपाल का 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न होगा। इसमें चंपावत और पिथौरागढ़ के 250 गांवों से ज्यादा डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। नेपाल और भारत के लगभग 39 हजार लोग बांध से प्रभावित होंगे। पंचेश्वर बांध जहां बनना है वहां पहुंचने का रास्ता अभी सिर्फ भारत की ओर से ही है। चंपावत जिले के लोहाघाट से 356 किलोमीटर दूर पंचेश्वर तक पक्की सड़क है। बांध स्थल पर नदी की दूसरी ओर नेपाल का डडेलधुरा जिला है। इसके अलावा धारचूला, बैताडी जिलों के भी कुछ हिस्से हैं। परियोजना स्थल तक नेपाल की ओर से पहुंचने के लिए बैताडी जिले के पाटन से दो दिन का पैदल रास्ता है।
भूकंप और महाझील से विनाश की आशंका
इस परियोजना से भारत और नेपाल के बहुत बड़े इलाके की ऊर्जा और सिंचाई की जरूरतें भले ही पूरी हो जाएं लेकिन हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अतिसंवेदनशील जोन फाइव में प्रस्तावित इस बांध से जहां भूकंप के झटकों में इजाफा होने की आशंका है, वहीं 116 वर्ग किलोमीटर की महाझील कई खतरों को एक साथ आमंत्रित करने के लिए काफी है। जोन फाइव में इतने बड़े बांध को भू-गर्भीय और पर्यावरण के नजरिए से विनाशकारी माना जा रहा है।
क्या कहना है जानकारों का?
जानकारों का कहना है कि बांध बनने से हिमालय की तलहटी में 116 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पानी का भारी दबाव बनेगा। इस इलाके में पहले से ही भू-गर्भीय खिंचाव बना हुआ है, जिस कारण भारतीय प्लेटें यूरेशिया की ओर लगातार सरक रही हैं। धरती के गर्भ में हो रही इस हलचल में मानवीय हस्तक्षेप आग में घी का काम कर सकता है। पर्यावरण मामलों के जानकार प्रकाश भंडारी कहते हैं कि इतने भारी दवाब से कभी भी पहाड़ की धरती कांप सकती है। जिसका खामियाजा पहाड़ों में रहने वालों के साथ ही मैदानी इलाकों को भी भुगतना पड़ेगा। भू-गर्भीय हलचलों को बढ़ाने के साथ ही पंचेश्वर बांध की महाझील पर्यावरण को भी खासा प्रभावित कर सकती है। उत्तराखंड में 2013 में आई आपदा के लिए जानकार बड़े बांधों को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि टिहरी से तीन गुना बड़ी पंचेश्वर बांध की झील किस तेजी से पर्यावरण को प्रभावित करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे जहां पहाड़ों में भू-स्खलन बढ़ेगा वहीं झील के कारण बादल फटने की घटनाएं भी कई गुना बढ़ेंगी। इसके अलावा नमी और कोहरे की मार भी पहाड़ों में साल भर पड़ती रहेगी।