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पांडवों ने पठानकोट में भी बिताए थे अज्ञातवास के छह महीने, नाम है मुक्तेश्वर धाम
करीब तीन दशक बाद पौराणिक महाकाव्य महाभारत पर बने धाराविक 'महाभारत' की वापसी होने के साथ ही फिर से वह स्थान चर्चा में आ गए है जो पांडवों और उनके इतिहास से जुड़े हैं। चाहे वह पांडवों के जन्म स्थान से जुड़े हों या फिर वनवास से। ऐसा ही एक पौराणिक स्थल है पंजाब के सीमावर्ती जिला पठानकोट में जिसे लोग मुक्तेश्वर धाम के नाम से जानते हैं।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर : करीब तीन दशक बाद पौराणिक महाकाव्य महाभारत पर बने धाराविक 'महाभारत' की वापसी होने के साथ ही फिर से वह स्थान चर्चा में आ गए है जो पांडवों और उनके इतिहास से जुड़े हैं। चाहे वह पांडवों के जन्म स्थान से जुड़े हों या फिर वनवास से। ऐसा ही एक पौराणिक स्थल है पंजाब के सीमावर्ती जिला पठानकोट में जिसे लोग मुक्तेश्वर धाम के नाम से जानते हैं। बहरहाल इस अतिप्राचीन मुक्तेश्वर धाम गुफा के अस्तित्व पर विकास की 'आरी' चल रही है। जिस कारण आस्था और इतिहास में रुची रखने वाले इस पौरोणिक एवम् मनोरम स्थल के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि आज जिस स्थान पर मुक्तेशवर महादेव का मंदिर स्थित है वहां करीब 5500 साल पहले धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाईयों और द्रोपदी के साथ इन्हीं कंदराओं में रुके थे। जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि इस स्थान का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। हरिद्वार के नाम से जानते हैं। भगवान शिव को समर्पित, मुक्तेश्वर महादेव गुफा-मंदिर रावी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का मुख्य आकर्षण संगमरमर का एक शिवलिंग है। मंदिर में भगवान गणेश, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान और देवी पार्वती की मूर्तियां भी हैं। माना जाता है कि मंदिर के पास की कुछ गुफाएं महाभारत काल की हैं। इन्हीं गुफाओं में पांडव अपने वनवास के अंतिम वर्ष में छह माह रुके थे।
प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है यह क्षेत्र
ब्यास और चोच नदियों के संगम स्थल इंदौरा से करीब सात किलोमीटर दूर रावी नदी पर बने रणजीत सागर बांध और निर्माणधीन शाहपुर कंडी बांध के बीच गांव ढूंग में स्थित मुक्तेश्वर महादेव का मंदिर। मंदिर से कुछ किमी पहले सड़क के किनारे पुरातत्व विभाग की तरफ से बोर्ड लगा है। यहीं से रावी नदी के बहने का शोर सुनाई देना शुरू हो जाता है।
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नदी के किनारे शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित 5500 साल पुरानी गुफा
काफी गहराई में पहाड़ियों के बीच नदी निर्मल धारा भी बहती दिखाई देती है। 164 सीढ़ियां उतरने के बाद मंदिर परिसर में पहुंच जाएंगे। मंदिर में चार गुफाएं हैं जो अपने स्तित्व के महाभारत कालीन होने की गवाही देती हैं। थोड़ा नीचे उतरने पर दो गुफाओं में से एक बड़ी गुफा में मंदिर, द्रौपदी की रसोई, परिवार मिलन कक्ष आज भी है। बाकी तीन गुफाएं थोड़ा ऊंचाई पर हैं। इनमें से एक गुफा में चक्की लगाई गई थी, जिसे भीम की चक्की कहते हैं। तीसरी गुफा द्रौपदी गुफा है और चौथी गुफा द्रोपदी की रसोई कही जाती है। मान्यता है कि इस गुफा में पांचाली भोजन बनाती थी।
गुफा में है शिव परिवार
मुक्तेश्वर धाम मंदिर पंजाब और हिमाचल के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। प्रकृति के नैसर्गिक सुंदर के बीच रावी नदी के किनारे शिवालिक की पहाडि़यों में स्थित इस धाम की मुख्य गुफा में गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, हनुमान और माता पार्वती की मूर्तियां मौजूद हैं। यहां अमावस्या, नवरात्र, बैसाखी और शिवरात्रि पर आयोजित होने वाले मेले में भारी पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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कैसे पहुंचे
मुक्तेश्वर धाम पठानकोट जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर और मीरथल चार किलोमीटर है। यहां रेल, सड़क और वायुमार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है। जबकि हवाई अड्डा अमृतसर और जम्मू है। पर्यटक रेलवे स्टेशन से ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं या खुद अपने वाहनों से पहुंच सकते हैं। यह मंदिर रावी नदी और चट्टानी पहाड़ियों के सुंदर दृश्यों से घिरा हुआ है। पर्यटक यहां पिकनिक का और श्रद्धालु तिर्थ का लाभ ले सकते हैं । यह मंदिर पठानकोट के पास शाहपुर कंडी बांध मार्ग पर स्थित है।
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