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Parliament Attack 2001 Wikipedia: 13 दिसंबर 2001 का संसद हमला, एक राष्ट्र की संवेदनशीलता पर प्रहार

Parliament Attack 2001 Kab Hua: 13 दिसंबर, 2001 की तारीख भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इसी दिन संसद भवन पर भयावह हमला हुआ था।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 12 Dec 2024 8:46 AM IST
Parliament Attack 2001: 13 दिसंबर 2001 का संसद हमला, एक राष्ट्र की संवेदनशीलता पर प्रहार
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Parliament Attack (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Sansad Hamla 2001 Kya Hai: 13 दिसंबर, 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दिन संसद भवन, जो हमारे लोकतंत्र का प्रतीक है, पर आतंकवादियों द्वारा एक भयावह हमला (Attack On Parliament) किया गया। इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से देश के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करना और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करना था। इस घातक हमले को रोकने में हमारे बहादुर सुरक्षाकर्मियों ने असाधारण वीरता दिखाई और अपनी जान देकर एक बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी को टाल दिया। इस संघर्ष में आठ सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए, जिनका बलिदान देश सदैव याद रखेगा।

घटना का विवरण (Parliament Attack Kab Hua Tha In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

13 दिसंबर, 2001 का दिन था, ठंड का मौसम था। बाहर सूरज की हल्की धूप थी। संसद भवन में विंटर सेशन (Winter Session) चल रहा था और ‘महिला आरक्षण बिल’ (Women Reservation Bill) पर जोरदार बहस हो रही थी। इस दिन भी इस बिल पर चर्चा होनी थी। लेकिन ठीक 11:02 बजे संसद की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया।

इसके बाद, उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) संसद से जा चुके थे। उपराष्ट्रपति कृष्णकांत (Krishan Kant) का काफिला भी निकलने वाला था। संसद स्थगित होने के बाद, गेट नंबर 12 पर सफेद गाड़ियों की कतार लग गई।

तब तक सब कुछ सामान्य था। लेकिन कुछ ही मिनटों में संसद भवन पर जो हुआ, उसे न तो किसी ने सोचा था और न ही उसकी कल्पना की थी। करीब साढ़े ग्यारह बजे, जब उपराष्ट्रपति के सुरक्षा गार्ड उनके बाहर आने का इंतजार कर रहे थे, तभी सफेद एंबेसडर में सवार पांच आतंकवादी गेट नंबर 12 से संसद भवन में घुस गए। उस समय सुरक्षा गार्ड निहत्थे थे।

संसद भवन में अक्सर CRPF की एक बटालियन तैनात रहती है। गोलियों की आवाज सुनते ही यह बटालियन सतर्क हो गई और CRPF के जवान तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे। उस समय संसद में गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन समेत कई महत्वपूर्ण नेता और पत्रकार मौजूद थे। सभी को संसद भवन के भीतर सुरक्षित रहने के निर्देश दिए गए।

इस बीच, एक आतंकवादी ने गेट नंबर-1 से संसद में घुसने की कोशिश की। लेकिन सुरक्षा बलों ने उसे वहीं मार गिराया। इसके बाद, उसके शरीर पर लगे बम में भी विस्फोट हो गया। बाकी चार आतंकवादी गेट नंबर-4 से संसद में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन तीन को वहीं पर ढेर कर दिया गया। अंत में, बचा हुआ एक आतंकवादी गेट नंबर- 5 की तरफ भागा। लेकिन उसे भी सुरक्षाबलों की गोली से ढेर कर दिया गया। जवानों और आतंकवादियों के बीच 11:30 बजे शुरू हुई मुठभेड़ शाम 4 बजे खत्म हुई।

यह हमला पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद, द्वारा किया गया था, जिन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का समर्थन प्राप्त था। जांच में पता चला कि आत्मघाती दस्ते में शामिल सभी पांच आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे। ये आतंकवादी सुबह करीब 11:40 बजे, DL-3CJ-1527 नंबर वाली एंबेसडर कार में संसद भवन परिसर में घुसे।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सुरक्षा बलों की बहादुरी–सभी पांच आतंकवादियों को गेट नंबर 9 और गेट नंबर 5 के पास मार गिराया गया। संघर्ष में दिल्ली पुलिस, सीआरपीएफ और संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ के आठ सदस्य शहीद हुए। दिल्ली पुलिस के चार कर्मी: नानक चंद, रामपाल, ओम प्रकाश और घनश्याम। सीआरपीएफ की कमलेश कुमारी, संसद भवन के जगदीश प्रसाद यादव। एक सीपीडब्ल्यूडी कर्मचारी, देश राज।

जांच और गिरफ्तारियां (Parliament Attack Investigation)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दिल्ली पुलिस ने कॉलेज लेक्चरर एस.ए.आर. गिलानी और अन्य संदिग्धों को गिरफ्तार किया। मुख्य आरोपी अफजल गुरु और उसके सहयोगी शौकत हुसैन गुरु को कश्मीर में गिरफ्तार किया गया। अफजल गुरु ने स्वीकार किया कि इस हमले का मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद का पाकिस्तानी आतंकवादी गाजी बाबा था। जांच में पता चला कि आतंकवादियों ने दिल्ली में ठिकानों का इस्तेमाल किया और विस्फोटक सामग्रियों को जमा किया।

पृष्ठभूमि और उद्देश्य

यह हमला पाकिस्तान- प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य भारत को अस्थिर करना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करना था। इस हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) और जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) का हाथ होने की पुष्टि हुई। ये संगठन पहले भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा (Jammu and Kashmir Assembly) और लाल किले पर हमले (Red Fort Attack) जैसे दुस्साहसिक कृत्य कर चुके थे।

प्रधानमंत्री का संदेश और आगे की कार्रवाई

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि यह हमला भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयास था। लेकिन देश आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्पित है। पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब कर सख्त आपत्ति दर्ज कराई गई और इन संगठनों पर कार्रवाई की मांग की गई। संसद भवन सहित देशभर में सुरक्षा उपायों को सख्त किया गया।

यह घटना न केवल हमारे सुरक्षाकर्मियों की वीरता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भारत आतंकवाद के किसी भी रूप के खिलाफ एकजुट है। उन बहादुर आत्माओं का बलिदान, जिन्होंने हमारे लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने प्राण दिए, देश के हर नागरिक के लिए प्रेरणा है। 13 दिसंबर, 2001 का हमला हमें याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई अडिग और निरंतर होनी चाहिए।

जैसे ही संसद पर हमले की खबर फैलनी शुरू हुई, देशभर में हड़कंप मच गया और फोन लगातार बजने लगे। सोनिया गांधी उस समय तक घर पहुंच चुकी थीं। वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा के अनुसार, खबर मिलते ही उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन किया, उनका हालचाल जाना और घटनाक्रम की जानकारी ली।

दिल्ली पुलिस ने हमले के दो दिन बाद, 15 दिसंबर, 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी और इस हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को गिरफ्तार किया। साथ ही एसएआर गिलानी, अफशान गुरु, और शौकत हुसैन को भी हिरासत में लिया गया। हमले को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने मिलकर अंजाम दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद गिलानी और अफशान को बरी कर दिया। हालांकि, अफजल गुरु की फांसी की सजा को बरकरार रखा, जबकि शौकत हुसैन की मौत की सजा को घटाकर 10 साल कैद में बदल दिया। आखिरकार, 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।

इस प्रश्न का एकमात्र उत्तर जो संतोषजनक रूप से इसे संबोधित करता है, वह यह है कि पाकिस्तान – जो स्वयं ही अक्षम्य द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का परिणाम है, जो स्वयं एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और जिसकी लोकतंत्र की परंपरा अत्यंत कमजोर है – वह एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, आत्मविश्वासी और लगातार प्रगति कर रहे भारत की वास्तविकता को स्वीकार करने में असमर्थ है। भारत की अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बढ़ती हुई प्रतिष्ठा समय के साथ-साथ निरंतर ऊंचाई पर पहुंच रही है।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 13 दिसंबर, 2001 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा की थी कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक चरण में पहुंच चुकी है। इस घटना में अपनी जान गंवाने वाले सुरक्षाकर्मियों द्वारा दिया गया सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा। संसद भवन पर हमले के पीछे जो लोग हैं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि भारत के लोग एकजुट हैं और देश से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

2001 के संसद हमले के बाद, भारतीय संसद पर कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। हालांकि, संसद की सुरक्षा को लेकर चिंताएं और कुछ सुरक्षा उल्लंघन समय-समय पर सामने आए। यहां ऐसे प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं:

1. सुरक्षा उल्लंघन और संभावित खतरे (2001 के बाद):

2003: संसद भवन के पास एक संदिग्ध वाहन देखा गया था। सुरक्षा एजेंसियों ने त्वरित प्रतिक्रिया दी। लेकिन यह एक झूठा अलार्म साबित हुआ।

2006: संसद परिसर में घुसपैठ के प्रयास की खबर आई, हालांकि इसे सुरक्षा बलों ने तत्काल विफल कर दिया।

2010: संसद के पास संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्टें आईं, जिसके बाद सुरक्षा एजेंसियों ने इलाके को सील कर दिया। यह किसी बड़े खतरे में नहीं बदला।

2. संसद की सुरक्षा को लेकर खतरे की चेतावनियां:

2001 के हमले के बाद, सुरक्षा बलों ने कई बार आतंकवादी संगठनों द्वारा संसद पर संभावित हमले की योजनाओं के बारे में सतर्क किया। इन चेतावनियों के चलते सुरक्षा कड़ी कर दी गई और कई योजनाओं को समय रहते विफल किया गया।

3. संसद के पास विरोध प्रदर्शन और अन्य घटनाएं:

आतंकवादी हमले तो नहीं हुए, लेकिन संसद भवन के आसपास कई विरोध प्रदर्शन हुए, जिनके कारण सुरक्षा बलों को अलर्ट पर रहना पड़ा।

2001 के बाद से, संसद भवन की सुरक्षा को कई गुना बढ़ा दिया गया है। नई तकनीक, अत्याधुनिक निगरानी प्रणाली, और अधिक प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति के कारण, संसद को आतंकवादी हमलों से सुरक्षित रखा गया है।

संसद भवन की सुरक्षा सुनिश्चित करना

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

संसद भवन जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं को आतंकवादी हमलों और सुरक्षा उल्लंघनों से बचाने के लिए बहु-स्तरीय सुरक्षा उपायों और एकीकृत रणनीतियों की आवश्यकता होती है। यहां कुछ महत्वपूर्ण उपाय दिए गए हैं जो संसद भवन की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं-

1. सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना

पूरे परिसर में सीसीटीवी कैमरे, थर्मल इमेजिंग, और ड्रोन निगरानी तैनात करें। प्रवेश बिंदुओं पर अत्याधुनिक मेटल डिटेक्टर और बैगेज स्कैनर लगाएं।संसद भवन में केवल अधिकृत व्यक्तियों को बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली द्वारा प्रवेश की अनुमति दें। ड्रोन द्वारा किए जा सकने वाले हवाई खतरों का सामना करने के लिए एंटी-ड्रोन तकनीक का उपयोग करें।

2. सुरक्षा बलों की तत्परता

संसद भवन की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी (एनएसजी कमांडो, सीआरपीएफ, और दिल्ली पुलिस) तैनात रहें। संसद परिसर के भीतर हमेशा एक क्विक रेस्पॉन्स टीम मौजूद हो, जो आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई कर सके। नियमित रूप से सुरक्षाकर्मियों के लिए आतंकवादी हमले से निपटने की मॉक ड्रिल आयोजित की जाए।

3. साइबर सुरक्षा

संसद की डिजिटल प्रणाली को साइबर हमलों से बचाने के लिए मजबूत फ़ायरवॉल और साइबर सुरक्षा प्रणाली लगाई जाए। संवेदनशील डेटा को एन्क्रिप्टेड सर्वर पर रखा जाए और नियमित सुरक्षा ऑडिट किया जाए।

4. आसपास के क्षेत्र की सुरक्षा

संसद भवन के आसपास के इलाकों को उच्च-सुरक्षा क्षेत्र घोषित किया जाए।संदिग्ध वाहनों की निगरानी के लिए स्वचालित नंबर प्लेट पहचान (ANPR) प्रणाली लगाई जाए। क्षेत्र में प्रवेश और निकास पर कड़ी निगरानी रखें।

5. खुफिया तंत्र और समन्वय

खुफिया एजेंसियों को सक्रिय रखा जाए और आतंकवादी संगठनों की योजनाओं को विफल करने के लिए सतर्कता बढ़ाई जाए। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों, जैसे एनआईए, आईबी, और दिल्ली पुलिस के बीच कुशल समन्वय स्थापित किया जाए। समय पर खुफिया जानकारी साझा करना सुनिश्चित किया जाए।

6. सार्वजनिक जागरूकता

नागरिकों को सतर्क रहने और संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।संसद भवन के आसपास के क्षेत्र में निवासियों और दुकानदारों को जागरूकता प्रशिक्षण दिया जाए।

7. प्रौद्योगिकी का उपयोग

संदिग्ध गतिविधियों का पता लगाने और रोकने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निगरानी उपकरणों का उपयोग।परिसर की सुरक्षा योजनाओं में मदद के लिए जियोस्पेशियल मैपिंग का उपयोग।

8. कानूनी और प्रशासनिक उपाय

संसद भवन के आसपास प्रदर्शन और भीड़ नियंत्रण के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं।अनधिकृत व्यक्तियों और वाहनों के प्रवेश को रोकने के लिए सख्त कानून लागू किए जाएं।

इन उपायों का पालन करके संसद भवन को आतंकवादी खतरों और अन्य सुरक्षा उल्लंघनों से बचाया जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हमारे लोकतंत्र का यह प्रमुख स्थल सुरक्षित रहे।



Shreya

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