अब संसद बनेगी जंग का अखाड़ा, आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में विपक्ष

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने साफ कर दिया है कि 19 विपक्षी दल नए कृषि कानूनों पर अपना विरोध जताने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के दौरान सदन में मौजूद नहीं रहेंगे।

Roshni Khan
Published on: 29 Jan 2021 5:12 AM GMT
अब संसद बनेगी जंग का अखाड़ा, आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में विपक्ष
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अब संसद बनेगी जंग का अखाड़ा, आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में विपक्ष (PC: social media)

नई दिल्ली: दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन की गूंज अब संसद में भी सुनाई देगी। विपक्ष की ओर से नए कृषि कानूनों समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार की घेरेबंदी की तैयारी से साफ है कि अब संसद जंग का अखाड़ा बनेगी।

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शुक्रवार को होने वाला राष्ट्रपति का अभिभाषण भी सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह जाएगा क्योंकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत 19 सियासी दलों ने किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला किया है। हालांकि सरकार की ओर से विपक्ष के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है मगर विपक्ष अपने फैसले पर डटा हुआ है।

किसानों के साथ एकजुटता दिखाएगा विपक्ष

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने साफ कर दिया है कि 19 विपक्षी दल नए कृषि कानूनों पर अपना विरोध जताने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के दौरान सदन में मौजूद नहीं रहेंगे। उनका कहना है कि तीनों नए कृषि कानूनों को विपक्ष के बिना सदन में जबर्दस्ती पास किया गया है और विपक्ष किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए प्रतिबद्ध है।

farmer-rally farmer-rally (PC: social media)

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने जिद्दी रवैया अपना रखा है और यही कारण है कि कई दौर की बातचीत के बाद भी इन कानूनों को अभी तक वापस नहीं लिया गया है। उल्टे किसान नेताओं को दिल्ली उपद्रव में फंसाने की साजिश रची जा रही है।

किसानों की आवाज दबाने की कोशिश

विपक्षी दलों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारी ठंड और बारिश का सामना करते हुए किसान दिल्ली के सीमाओं पर डटे हुए हैं और 150 से अधिक किसान इस दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद सरकार कृषि कानूनों पर अड़ी हुई है और पानी की बौछारों, आंसू गैस और लाठीचार्ज के जरिए किसानों की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

केंद्र सरकार की ओर से मनमाने ढंग से लागू किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की जंग के प्रति सरकार का रवैया पूरी तरह अमानवीय है। विपक्षी दलों ने इसी कारण राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला किया है।

आर-पार की जंग लड़ेगा विपक्ष

विपक्ष के इस रवैये से साफ है कि बजट सत्र की शुरुआत के साथ ही विपक्ष ने आर-पार की जंग लड़ने का मूड बना लिया है। किसान संगठनों की ओर से भी काफी दिनों से संसद का विशेष सत्र बुलाकर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की जाती रही है।

ऐसे में विपक्ष किसानों के साथ एकजुटता दिखाकर सरकार की घेराबंदी करने में जुट गया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार विपक्षी दलों की इस गोलबंदी से कैसे निपटती है।

सरकार ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया

Pralhad Joshi Pralhad Joshi (PC: social media)

केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने विपक्षी के रवैये को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि राष्ट्रपति को दलगत राजनीति में नहीं खींचा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति दलगत राजनीति से ऊपर हैं और विपक्ष को बहिष्कार संबंधी फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्ष विभिन्न मुद्दों को उठा सकता है मगर अभिभाषण के बहिष्कार की बात गले के नीचे नहीं उतरती।

गणतंत्र दिवस की घटना से माहौल गरमाया

विपक्ष की ओर से नए कृषि कानूनों के साथ ही अर्थव्यवस्था की चरमराती स्थिति, पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध, बढ़ती महंगाई और विभिन्न मुद्दों पर सरकार की मनमानी के खिलाफ घेरेबंदी की रणनीति बनाई गई है।

गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में हुई हिंसा और लाल किले की घटना ने सियासी माहौल और गरमा दिया है। इसके बाद दिल्ली पुलिस का सख्त रवैया और किसानों के आंदोलन को जबर्दस्ती तोड़ने की सरकार की कोशिशों से भी विपक्ष खफा है। सियासी जानकारों का मानना है कि इसे लेकर संसद में जोरदार हंगामा हो सकता है।

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कांग्रेस के साथ कई अन्य दलों ने बनाई रणनीति

कांग्रेस के साथ ही माकपा, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, सपा, राजद, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी और शिवसेना की ओर से सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने की योजना बनाई गई है। कभी भाजपा का सहयोगी रहा अकाली दल भी नई कृषि कानूनों को लेकर सरकार के खिलाफ हो गया है और ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि सरकार विपक्ष की घेरेबंदी को तोड़ने में कहां तक कामयाब हो पाती है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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