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आज संसद भवन में धरने के साथ मोदी सरकार से सीधे टकराव में उतरेगा विपक्ष
नई दिल्ली: संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में एक ओर नए राष्ट्रपति की ताजपोशी की गहमागहमी होगी तो विपक्षी पार्टियों का कांग्रेस के छह सांसदों को लोकसभा से इस पूरे सप्ताह के लिए निलंबित करने के खिलाफ धरने पर बैठने का फैसला सरकार के साथ सीधे टकराव की चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।
सरकार के लिए मंगलवार सुबह यह मुश्किल खड़ी होगी कि जहां एक ओर नए राष्ट्रपति की शपथ ग्रहण समारोह तैयारियों के लिए सजा होगा तो उसी बीच संसद भवन के बाहर महात्मा गांधी की प्रतिमा पर करीब 18 विपक्षी दल एक साथ धरने पर बैठकर प्रतिरोध करेंगे।
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विपक्ष की तरकश में अभी कई और मुद्दे भी हैं लेकिन उसने तय किया कि एक-एक करके इस सत्र के बचे हुए दिनों में सरकार को रोज ब रोज किसी न किसी मामले में कटघरे में खड़ा करने का क्रम जारी रखा जाएगा। बाकी विपक्षी पार्टिंयों को साथ लेने की दिशा में कांग्रेस ने उन सभी दलों को अपने साथ जोड़ा है जो पहले राष्ट्रपति चुनाव व आगामी 5 अगस्त को उप राष्ट्रपति चुनाव में आपस में मिलकर चल रहे हैं।
विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि संसद सत्र के बाद भी सड़कों पर इस मुहिम को आगे बढ़ाया जाएगा क्योंकि भीड़ द्वारा समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाने और देश में भय का वातावरण बनाए रखने के एजेंडे के मुखर विरोध के लिए सीधी लड़ाई के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
कांग्रेस ने इस मामले में बाकी विपक्षी पार्टियों को साथ लेकर इस अभियान के पहले चरण में पूरे मानसून सत्र के बीच और संसद सत्र समाप्ति के बाद आगे विपक्ष के साझा आंदोलन का हिस्सा बनाने की व्यूह रचना तैयार की है। इधर सरकार विपक्ष को यह समझाने में नाकाम रही है कि भीड़ द्वारा देश के कई भागों में कुछ लोगों को पीट पीटकर मारने की घटना पर कामरोको प्रस्ताव की विपक्ष की मांग को स्वीकार करने में क्या अड़चन थी।
ज्ञात रहे कि कांग्रेस सदस्यों ने सोमवार सुबह कामरोको प्रस्ताव पेश कर लोकसभा में बाकी कामकाज रोककर मॉब लैंचिंग के मामले पर पहले चर्चा कराने का नोटिस दिया था लेकिन सरकार व लोकसभा स्पीकर की ओर से इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया।
गैर कांग्रेस विपक्ष की ओर से भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को हाल में यही मशविरा दिया गया कि नीतियों व कार्यक्रमों पर हमें एकजुट होना होगा।
संसद में मिलकर चलना होगा और मानसून सत्र समाप्त होने पर जहां भी जो विपक्षी दल मजबूत है वहां निचले स्तर तक आंदोलन को कमर कसनी होगी। मॉब लैंचिंग के अलावा देश के कई प्रदेशों में किसानों का संकट, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और जीएसटी से हताश हुए व्यापारियों को साथ लाने जैसे कई दूसरे मामले सरकार के एजेंडे पर हैं।
आगामी साल के तीन माह बाद गुजरात, हिमाचल पांच माह बाद कनार्टक में चुनाव होने हैं। इन प्रदेशों में विपक्ष से ज्यादा भाजपा का सब कुछ दांव पर लगा है। कर्नाटक में तो मुसलिम आबादी 11 प्रतिशत है। कांग्रेस,भाजपा व जद सैकुलर में वोटों के विभाजन के बीच मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। इसी तरह गुजरात में भी पीएम मोदी व अमित शाह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहां मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधा है।