TRENDING TAGS :
सत्ता की प्रतिष्ठा का सवाल होगा पटना विवि छात्र संघ चुनाव
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना। पटना में मेयर भारतीय जनता पार्टी की सीता साहू हैं। पटना शहरी क्षेत्र की तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा के नंदकिशोर यादव, अरुण कुमार सिन्हा और नितिन नवीन विधायक हैं। राजधानी क्षेत्र की दो संसदीय सीटों पर भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा और रामकृपाल यादव सांसद हैं। पटना विश्वविद्यालय के अंतिम छात्र संघ चुनाव में भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के आशीष सिन्हा अध्यक्ष बने थे। उसके बाद से चुनाव नहीं हुआ। इस गणित से देखें तो भाजपा को पटना में प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए पीयू छात्र संघ चुनाव में पूरी ताकत झोंकनी पड़ेगी।
पटना विवि छात्र संघ चुनाव के लिए भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि अभाविप के अध्यक्ष रहे आशीष सिन्हा पीयू से पढ़ाई कर निकल चुके हैं और अब भाजपा के विधि प्रकोष्ठ और जिला कार्यसमिति में व्यस्त हैं, जबकि पीयू में कोई एक नाम नहीं चल रहा है। सत्ता की प्रतिष्ठा का सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है कि इस बार मुकाबला अभाविप बनाम अन्य होने के आसार हैं और सत्तारूढ़ जनता दल यू भी अभाविप के साथ नहीं दिख रहा है।
पाक-साफ नाम ढूंढऩे की चुनौती
7-8 फरवरी को अधिसूचना जारी होने के साथ नामांकन शुरू होगा। १० फरवरी को दिन 3 बजे तक नाम वापसी का विकल्प रहेगा। 17 फरवरी को मतदान होगा।
‘अपना भारत’ ने अभाविप के संभावित नामों के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की तो सामने आया कि संगठन खुद संशय की स्थिति में है। दरभंगा हाउस के छात्र दिव्यांशु भारद्वाज, विजय प्रताप, पटना कॉलेज के मणिकांत मणि, विवि की राजनीति में सक्रिय नीतीश पटेल, तीन चार साल से सक्रिय राहुल के अलावा सर्वदीप आनंद इस चुनाव में शिरकत करेंगे। लेकिन, संशय के तीन बड़े कारण कई नामों की राह में रोड़ा अटका रहे हैं।
लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों के हिसाब से मुफीद नहीं होने और मुकदमे के कारण विवि की अनुशासन कमेटी में नाम रहने के आधार पर दो-तीन संभावित उम्मीदवारों का टिकट वैसे ही कट जाएगा। जो नाम बचेंगे, उनमें जातिगत समीकरण भी देखा जाएगा। चूंकि जदयू से गठबंधन की उम्मीद नहीं के बराबर दिख रही है, इसलिए संभव है कि जदयू का वोट काटने के लिए उसके कैडर जाति के प्रत्याशी पर अभाविप दांव खेले। वैसे, इसमें एक बिजनेसमैन का बेटा भी दांव खेल सकता है बशर्ते इसके लिए अभाविप के अंदर सहमति बन जाए।
पूर्व अध्यक्ष की अहम भूमिका
28 साल बाद 2012 में पटना विवि छात्र संघ का चुनाव हुआ था, जिसमें पटना मध्य (कुम्हरार) के विधायक अरुण कुमार सिन्हा के क्रिकेटर बेटे आशीष सिन्हा अध्यक्ष बने थे। एक साल का कार्यकाल चुनाव नहीं होने के आधार पर सीनेट में तीन साल तक खिंचता रहा। इसके बाद भी चुनाव नहीं हुआ तो आशीष ने खुद को छात्र राजनीति से निकाल जिला और प्रदेश की मुख्य धारा से जोड़ लिया।
आशीष अभाविप में भी सक्रिय हैं और पटना विवि में भी अपनी सक्रियता दिखाते हैं। आशीष के अनुसार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् नॉर्थ ईस्ट से आ रहे छात्रों के दल से जुड़े कार्यक्रम की तैयारी में लगा है। इसके बाद सभी चुनाव में लगेंगे और तभी नामों को लेकर कुछ स्थिति साफ हो सकेगी। वह यह जरूर कह रहे कि चुनाव में अभाविप एक-दो छात्राओं को भी मौका देगा।
गठजोड़ व त्रिकोण भी संभव
चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का एक मोर्चा संभालना तय है। जनता दल यूनाइटेड की छात्र इकाई के अध्यक्ष श्याम पटेल के अनुसार गठबंधन पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है। दूसरी तरफ अभाविप के अंदर यह तय माना जा रहा है कि उसे अकेले ही चुनाव लडऩा है। अब अगर अभाविप और जदयू अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो त्रिकोणात्मक मुकाबला संभव है।
वैसे, ऐसा मुकाबला अभाविप को सीधे-सीधे मुसीबत में डाल सकता है क्योंकि तब वाम दलों के साथ पप्पू यादव की पार्टी ‘जाप’ भी रहेगी और अंतिम समय में इसे कांग्रेस और राजद की छात्र इकाई का भी समर्थन मिल सकता है। अभाविप यह चाहेगी कि अगर जदयू अलग से चुनाव लड़े तो राजद-कांग्रेस भी अलग लड़ें ताकि वामपंथी छात्र संगठनों एआईएसएफ, एआईडीएसओ आदि अभाविप के सामने कमजोर रहें।
विधान परिषद् और रा.स. चुनाव का गणित
अप्रैल-मई में बिहार विधान परिषद और राज्यसभा की कुछ सीटों के लिए चुनाव-उपचुनाव होने हैं। छात्र संघचुनाव में इन दोनों चुनावों का भी कुछ न कुछ गणित जरूर चलेगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री व राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद जैसे नेता पटना विवि छात्र संघ से ही निकले हैं, इसलिए छात्र संघ का चुनाव सभी के लिए आज भी मायने रखता है।
अप्रैल-मई में राज्यसभा की छह और विधान परिषद की 11 सीटों पर चुनाव संभावित है। दोनों की एक-एक सीट पहले से खाली है, जबकि राज्यसभा की पांच और विप की 10 सीटें खाली होने जा रही हैं। विधान परिषद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जदयू प्रवक्ता संजय सिंह के अलावा पार्टी से उपेंद्र प्रसाद, चंदेश्वर चंद्रवंशी, राजकिशोर कुशवाहा की सीटें खाली होंगी। भाजपा से उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, स्वास्थ्य मंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय के अलावा लालबाबू प्रसाद और सत्येंद्र नारायण सिंह का नाम है।
राजद के कोटे से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का भी कार्यकाल खत्म हो रहा है। राज्यसभा में भाजपा के रविशंकर प्रसाद व धर्मेंद्र प्रधान, जबकि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, बिजनेसमैन किंग महेंद्र प्रसाद व अनिल साहनी का कार्यकाल खत्म हो रहा है। जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव व अली अनवर पहले ही अपने पद गंवाकर बैठे हैं। इन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में वही दल ताकत के साथ उतरेगा, जो पटना विवि के प्रतिष्ठित चुनाव में दमखम दिखा सकेगा। इस बात को सभी नेता मानते हैं।
एक नजर चुनाव पर
छात्र संघ चुनाव में एक मतदाता छह वोट करेंगे। पांच सेंट्रल पैनल के उम्मीदवारों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष) के लिए जबकि एक कॉलेज रिप्रजेंटेटिव या फैकल्टी रिप्रजेंटेटिव के लिए। पीजी के छात्र फैकल्टी रिप्रजेंटेटिव के लिए वोट करेंगे जबकि कॉलेज के छात्र कॉलेज रिप्रजेंटेटिव के लिए वोट करेंगे।
सेंट्रल पैनल के उम्मीदवारों के लिए अधिकतम पांच हजार, जबकि कॉलेज रिप्रजेंटेटिव के लिए दो हजार रुपए खर्च की सीमा रखी गई है। वॉलेंट्री कंट्रीब्यूशन के अलावा उम्मीदवारों को कहीं और से खर्च करने की इजाजत नहीं दी गई है। राजनीतिक पार्टियों की ओर से छात्र संघ चुनाव में फंड के दुरुपयोग को देखते हुए बाहरी स्रोत से पैसे का उपयोग प्रतिबंधित है। ऐसे लोगों की कोई भागीदारी नहीं होने दी जाएगी, जो छात्र नहीं हैं। कोई भी छात्र संगठन अगर इस नियम का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई होगी।
अंडरग्रेजुएट के चुनाव लडऩे की उम्र सीमा 22 साल है, जबकि पीजी में अध्ययनरत के लिए 25 साल है। एलएलबी के छात्रों के लिए 25 वर्ष, जबकि एलएलएम कर छात्रों के लिए 27 साल और रिसर्च स्टूडेंट्स (पीएचडी) के लिए 28 साल उम्र सीमा निर्धारित है। साथ ही किसी भी एक पेपर में फेल स्टूडेंट्स भी उम्मीदवार नहीं बन सकते हैं।
सकारात्मक ऊर्जा देगा छात्र संघ
‘ऐसा छात्र संघ बनाया जाएगा जो शिक्षा, शोध व विश्वविद्यालय की अन्य शैक्षणिक गतिविधियों में योगदान करे। राजभवन की ओर से 16 जनवरी को पत्र मिलने के बाद चुनाव की घोषणा की गई है। यह विवि के लिए उत्सव हो और सकारात्मक तरीके से छात्र हिस्सा लें। कोड ऑफ कंडक्ट का पालन करें। इसे महायुद्ध नहीं, प्रजातांत्रिक प्रतिनिधित्व का मौका समझें।’
प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह
कुलपति, पटना विवि