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नीतीश सरकार शिक्षा पर कर रही फोकस, मगर तैयारी अधूरी

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 10:34 AM GMT
नीतीश सरकार शिक्षा पर कर रही फोकस, मगर तैयारी अधूरी
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पिछले कुछ वर्षों में बिहार की मैट्रिक-इंटर परीक्षा कुछ ज्यादा ही बदनाम होती रही है। कभी परीक्षा केंद्रों पर चिट-पुर्जे पहुंचाने वालों की तस्वीरें वायरल हुईं तो कभी आसपार बैठे परीक्षार्थियों को। लेकिन, पिछले दो साल में मैट्रिक-इंटर परीक्षा परिणामों को लेकर बिहार सरकार की ज्यादा किरकिरी हो गई। विपक्ष के लिए यह बड़ा मुद्दा कभी नहीं रहा, लेकिन राज्य की आम जनता के लिए शिक्षा अब बेहद भचता का विषय बन गया है। यह भचता सरकारी स्कूलों की हालत से लेकर बिहार बोर्ड के रवैए तक को लेकर है। बिहार बोर्ड 2018 से मैट्रिक परीक्षा में वस्तुनिष्ठ क्रांति की शुरुआत करने जा रहा है, एक रिपोर्ट :

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना। बिहार बोर्ड ने पिछले दो साल में ‘अद्भुत’ टॉपर दिए। देशभर में चर्चा रही। फिलहाल उन परीक्षाॢथयों की चर्चा है, जिनकी मार्कशीट में किसी खास विषय में दो-तीन नंबर देकर $फेल कर दिया गया और फिर आरटीआई के जरिए जांच में प्रथम श्रेणी की उत्तीर्णता से ज्यादा अंक मिले। इतने कारनामों के साथ चर्चा में रही बिहार विद्यालय परीक्षा समिति अब खुद को ठीक करने की कथित कवायद के साथ इस बार की मैट्रिक परीक्षा से वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर खुद को फोकस करने जा रही है। अब आधे नंबर के प्रश्न वस्तुनिष्ठ, यानी ऑब्जेक्टिव होंगे।

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बिहार बोर्ड की इस घोषणा के साथ ही विद्याॢथयों के साथ शिक्षकों की भी चिंता बढ़ गई है, हालांकि बोर्ड अपनी राह पर अडिग है। वह पैटर्न के हिसाब से मॉडल प्रश्नों का सेट तैयार करवा रहा है। इसी हिसाब से परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र भी सेट करने को दिए जाएंगे। लेकिन, वस्तुनिष्ठ प्रणाली की मूलभूत समस्या पर बोर्ड फिलहाल चुप है।

राज्य सरकार कभी स्कूलों की हालत सुधारने की बात कह रही तो कभी शिक्षकों को, लेकिन इस मूलभूत समस्या पर किसी का फिलहाल ध्यान नहीं है। यह समस्या है पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकों की। बिहार बोर्ड का पाठ्यक्रम 2009 से नहीं बदला गया है। पाठ्यक्रम के कारण ही अब भी 2001 की जनगणना के आंकड़े चल रहे हैं।

पाठ्य पुस्तकों में अशुद्धि की बात वर्षों से सामने आ रही, लेकिन संशोधन नहीं किया गया। नतीजा है कि बच्चे या तो बहुत सारी अशुद्धि के साथ बिहार स्टेट टेक्स्टबुक पब्लिभशग कॉरपोरेशन की 2009 में छपी किताबें पढ़ रहे या प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें।

‘अपना भारत’ ने राजधानी पटना के अलावा लखीसराय, दरभंगा, समस्तीपुर और खगडिय़ा के दो-दो हाईस्कूलों में विद्याॢथयों से बात की तो सामने आया कि शिक्षक सरकारी किताबों में अशुद्धि का हवाला देकर प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों से पढऩे की ताकीद करते हैं। अभिभावक सीधे-सीधे इसके लिए शिक्षकों को कमीशन मिलने की बात करते हैं, हालांकि हकीकत यह भी है कि सरकारी किताबें वर्षों पुरानी बातों को पढ़ा रहे हैं और प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पाठ्यक्रम से आगे निकल अद्यतन जानकारी देने में जुटे हैं।

किताबों के कारण नए पैटर्न पर बड़ा सवाल

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का पाठ्यक्रम चलाने वाले स्कूलों में जो किताबें पढ़ाई जा रही हैं, उसे 2009 में राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् (एससीईआरटी) ने तैयार किया था। इन किताबों में 2009 के कुछ वर्षों पहले तक विकसित विज्ञान की चर्चा है। उसी समय की भौगोलिक स्थितियों का अध्ययन है।

जनसंख्या को समाज अध्ययन का आधार माना जाता है और बिहार की सरकारी किताबें 2001 के जनगणना आंकड़े को पढ़ा रही हैं। उसी के हिसाब से देश-प्रदेश में जनसंख्या घनत्व, सामाजिक वर्गीकरण आदि को पढ़ाया जा रहा है। जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों में 2011 के आंकड़े हैं और उसी हिसाब से तमाम बातें पढ़ाई जा रही हैं। अब बिहार बोर्ड ने आधे अंक वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को देने की तैयारी की है तो छात्रों के सामने बड़ा सवाल है कि वह किसे सही मानें।

सरकारी किताबों का आब्जेक्टिव ज्ञान कुछ और बताता है, जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें कुछ और बताती हैं। जैसे भारत की जनसंख्या कितनी है या जनसंख्या घनत्व के हिसाब से कौन-सा राज्य सबसे बड़ा है। एक-एक विषय में ऐसे दर्जनों सवाल हैं, जिनका दोनों किताबों में अलग जवाब है। छात्र शिक्षक से पूछ रहे हैं और उनके पास जवाब

नहीं है।

‘अपना भारत’ ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए बिहार बोर्ड के कुछ अफसरों से बात की तो सामने आया कि पिछले महीने जब नए पैटर्न को लेकर मॉडल प्रश्नपत्र की तैयारी शुरू हुई थी, तब यह सवाल उठा था लेकिन बोर्ड ने इस पर कुछ खास पहल नहीं की। बताया जाता है कि ऐसे सवाल करने वाले शिक्षकों को पैटर्न के मॉडल प्रश्नपत्र बनाने वाली टीम से हटा दिया गया, जिसके कारण बाद में पूरी प्रक्रिया सवालों में घिर गई।

बोर्ड से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मैट्रिक परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र तैयार करने वालों को वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के मामले को ऐसे सवालों से बचने का निर्देश देने की तैयारी है। जो प्रश्न जरूरी भी होंगे, उसमें ओएमआर शीट की जांच के समय इस बात का ख्याल भी रखा जाएगा कि परीक्षार्थी ने सवाल का जवाब 2009 की सरकारी किताब से दिया है तो भी सही है और अद्यतन प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब से दिया तो भी ठीक।

बोर्ड ने वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की प्रणाली को स्वीकार किया है ताकि ठीक तरीके से पढऩे वाले हर सवाल का जवाब दे सकें, खासकर ऑब्जेक्टिव। जहां तक कोर्स अपडेट का सवाल है तो सरकार से निर्देश पर इसके लिए एससीईआरटी अलग से काम करेगी। किताबें सरकारी ही मान्य हैं, लेकिन अगर कोई छात्र अद्यतन जानकारी रखता है तो उसे निराश नहीं होना पड़ेगा।

आनंद किशोर, अध्यक्ष

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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