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पटना यूनिवर्सिटी चुनाव: पहली बार जदयू ने टेढ़ी की उंगली, अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा

raghvendra
Published on: 14 Dec 2018 7:33 AM GMT
पटना यूनिवर्सिटी चुनाव: पहली बार जदयू ने टेढ़ी की उंगली, अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा
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पटना: पटना यूनिवर्सिटी में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की छात्र इकाइयों के खाते में ही सारी सीटें गईं, लेकिन लड़ाई भी राजग के अंदर की ही नजर आई। भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पीयू में वर्चस्व रहा है, लेकिन इस बार सत्ता में उसके बड़े भाई जदयू ने भाजपा को काबू में रखने की ऐसी ठानी कि अध्यक्ष पद अपनी झोली में पहले से सुनिश्चित कर ली। पीयू चुनाव में ऐसा पहली बार नजर आया, जब जदयू ने एबीवीपी को हराने के लिए पहले सीधी उंगली से काम चलाया और फिर टेढ़ी उंगली से भी परहेज नहीं किया। इस बार आश्चर्यजनक रूप से जदयू ने पार्टी के तीन दिग्गजों को इस चुनाव में अध्यक्ष पद की जीत के लिए साम-दाम-दंड-भेद के लिए उतार दिया था। परिणाम आया और अध्यक्ष पद हासिल हो गया तो पीठ ठोकते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीरों ने वैसे भी सबकुछ कह दिया।

तिकड़ी की नजर थी अध्यक्ष पद पर, भाजपा नहीं देख सकी

जदयू ने पीयू चुनाव में रणनीतिक जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रशांत किशोर को उतारा था। पीके का पीयू वीसी से मिलना और उसके बाद विरोध में भाजपा का मुखर होना मैनेजमेंट का ही हिस्सा था। भाजपा और उसकी छात्र इकाई एबीवीपी पीके के मैनेजमेंट में अटक कर रह गई। एबीवीपी ने भाजपा विधायकों को भी विरोध में अपने साथ उतार लिया और उधर जदयू की तैयारी दिगाम के स्तर पर काम करती गई। एबीवीपी इस पूरी चाल को समझ ही नहीं सका।

जदयू का ध्यान सिर्फ अध्यक्ष पद पर था, क्योंकि इसके लिए दावेदार की ओर से धन की कोई कमी नहीं थी। यानी, मैनेजमेंट के साथ धन की व्यवस्था थी। अध्यक्ष उम्मीदवार मोहित प्रकाश पटना जिले के एक नव-धनाढ्य परिवार से आते हैं। इस परिवार का राजनीति से जुड़ाव भी चर्चा में रहा है। रही-सही कसर दिमाग ने पूरी कर दी। दिमाग के लिए भी जदयू को काफी दूर नहीं भटकना पड़ा। एक जमाने में पीयू के अंदर एबीवीपी के सबसे मजबूत नेता रहने के बाद भाजपा में पर्याप्त सम्मान नहीं मिलने पर जदयू में आए रणवीर नंदन को दिमाग लगाने के लिए बैठाया गया था। प्रशांत किशोर और रणवीर नंदन ने भाजपा के अगड़ा कार्ड को मात देने के लिए भूमिहार जाति के मजबूत बैकग्राउंड वाले छात्र नेता को अध्यक्ष पद के लिए आगे किया था।

कैडर के मामले में सबसे कमजोर जदयू ने जब अगड़ी जाति से उम्मीदवार दिया तो मुकाबला कांटे का नजर आने लगा। रणवीर नंदन पीयू की राजनीति को बहुत अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए उन्होंने पटना जिला के वोटरों पर दिमाग लगाया। इतना ही नहीं, पटना वीमेंस कॉलेज से एबीवीपी के ज्यादा वोटर होने के कारण वहां अलग रणनीति अपनाई और मिले-जुले वोटर्स वाले मगध महिला कॉलेज के लिए अलग। मगध महिला कॉलेज की वोटर्स ही निर्णायक रहीं, क्योंकि जदयू ने सबसे ज्यादा मेहनत यहीं की। को-एड के कॉलेजों में जाति और स्थानीयता का कार्ड चला तो मगध महिला की छात्राओं को बूथ तक आकर्षित करने का।

कहा जा रहा है कि पहली बार पीयू छात्र संघ के चुनाव में किसी राजनीतिक दल का एक पद के लिए खर्च 50 लाख के पार चला गया, क्योंकि हर तरह के मैनेजमेंट में हद पार ताकत झोंकी गई थी। चुनाव के लिए मतदान से लेकर मतगणना के बाद भी जदयू को छोड़ बाकी छात्र संगठन हेरफेर का आरोप लेकर यहां-वहां घूम रहे हैं। एबीवीपी का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल-सह-कुलाधिपति लालजी टंडन से भी मिल चुका है, हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद जदयू के प्रत्याशियों से मिलकर यह संकेत दे दिया है कि जो होना था, हो चुका है। अब कुछ होने वाला नहीं है। एबीवीपी भले ही उछलकूद ले, लेकिन भाजपा अब बैकफुट पर है। उसने पीयू चुनाव से पल्ला झाड़ लिया है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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