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कब तक कहेंगे कुशवाहा 'ऐसी बात नहीं है'
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव बिहार में कुशवाहा वोटरों को साधने के फेर में राजग के घटक रालोसपा के सर्वेसर्वा उपेंद्र कुशवाहा पर लगातार डोरे डाल रहे हैं। एक बार फिर उन्होंने कुशवाहा से मुलाकात कर राजग की नैया को डगमगाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। इस मुलाकात के कारण राजग के अंदर कुशवाहा को लेकर ऊहापोह की स्थिति ऐसी बनी कि उन्हें खुद सामने आकर कहना पड़ा- ऐसी बात नहीं है।
जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन टूटकर जब से जदयू-भाजपा गठबंधन हुआ है, राजद बुरी तरह परेशान है। इस परेशानी में राजद के युवराज तेजस्वी यादव बार-बार उपेंद्र कुशवाहा को अपनी साइड में करने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास के कारण कुशवाहा इस साल जनवरी से ही 'हॉटकेक' बने हुए हैं, लेकिन जब-जब तापमान बहुत बढ़ जाता है तो वह खुद आकर कह जाते हैं- 'ऐसी बात नहीं है। वह राजग में हैं।' इस साल यह तीसरी बार है, जब कुशवाहा को लेकर राजद ने बड़ा गेम बिछाया। ऐसी हालत कर दी कि कुशवाहा को सामने आकर कहना पड़ा कि वह तेजस्वी यादव से मिलने नहीं गए, बल्कि तेज उनसे मिलने के लिए आए थे। दरअसल, कुशवाहा को राजद में लाना राजद की बड़ी मजबूरी है। अब तक उसके पास इस समाज से कोई बड़ा नाम नहीं है। दूसरी बात यह कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जिस 'लव-कुश' का नारा लेकर शुरुआत में सामने आए थे, उसमें से 'कुश' को अब उनके साथ नहीं माना जा रहा है। राजद इसका फायदा उठाने के प्रयास में है। विधानसभा चुनाव में विभिन्न जातीय समीकरणों को साधने के कारण महागठबंधन ने अकेली पड़ी भाजपा को करारी शिकस्त दी थी, इसलिए भी राजद उपेंद्र कुशवाहा के बहाने नीतीश कुमार की जदयू से 'कुश' की ताकत छीनना चाह रहा है।
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सालभर में कुछ खास नहीं बदला, उम्मीद ज्यादा नही
कुशवाहा को करीब से जानने वाले यह मान रहे हैं कि इस साल उनके राजग से बाहर होने की उम्मीद नहीं के बराबर है, हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा रहा है कि वह अगले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हिस्सा हो सकते हैं। जनवरी से लेकर अभी तक राजग के अंदर कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। बड़े नेताओं का आना-जाना भी नहीं दिखा है। लोकसभा की सीटों को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को लेकर भी भाजपा काफी हद तक निश्चिंत है। भले ही रामविलास के बेटे चिराग पासवान की तेजस्वी यादव से मुलाकात के कारण चर्चा बहुत गरम हुई हो, लेकिन भाजपा यह मान रही है कि राजद में बैठे हम (से) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के कारण लोजपा का महागठबंधन में जाना लगभग असंभव है। मांझी मौका-बेमौका अलग तरह के बोल बोल जाते हैं, लेकिन यह संकेत देने से एक बार भी नहीं हिचक रहे कि महागठबंधन में सीटों को लेकर समझौतापूर्ण और सम्मानजनक बंटवारा हो चुका है और नए हिस्सेदार के लिए कोई बड़ी जगह नहीं है। पासवान को लेकर तो नहीं, लेकिन कुशवाहा के बहाने ही मांझी ने साफ-साफ कह दिया था कि थोड़ा पहले आते तो महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें मिल जातीं। यानी, समीकरण में जहां राजद उपेंद्र कुशवाहा पर ध्यान दे रहा है, वहीं महागठबंधन में शामिल हम (से) पासवान को लेकर समझौता करने को तैयार नहीं और कुशवाहा के लिए भी अपना हक छोडऩे को राजी नहीं।
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भाजपा अब मूकदर्शक भी नहीं, अंदर ही अंदर परेशान
भाजपा अब तक राजग के घटक दलों की बयानबाजी को लेकर मूकदर्शक की स्थिति में रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय से लेकर अन्य बड़े नेताओं ने भी कुशवाहा या पासवान को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की। यह स्थिति लंबे समय से चली आ रही थी, लेकिन अब मूकदर्शक के साथ भाजपा परेशान भी है। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मुलाकात के बाद लोकसभा सीटों को लेकर जो फॉर्मूला निकला है, उससे भाजपा के अंदर भीषण घमासान है। कई सांसदों को संगठन में लाने की तैयारी है और इससे जुड़ी चर्चाओं के कारण पार्टी के प्रदेश कार्यालय में अजीब माहौल बना दिख रहा है। जिन सांसदों का टिकट कटने की चर्चा है, वह पहले ही शांत हो गए हैं। उभर रहे नए नेताओं ने संसदीय टिकट के लिए प्रयास छोड़ दिया है, जिसके कारण इनकी आवक अचानक घट गई है। कई जदयू की ओर टकटकी लगाए भी बैठे हैं।