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पत्थरबाजों सावधान! पैलेट गन से ज्यादा खतरनाक है राजनाथ का 'PAVA'
नई दिल्लीः कश्मीर में अब पैलेट गन का दूसरा पैरलल हथियार खोज लिया गया है। पत्थरबाजों पर पैलेट गन के प्रयोग को लेकर भारी विरोध हो रहा था। इस पर होम मिनिस्टर ने 25 अगस्त को कहा था कि वह 2-3 दिन में इसका विकल्प खोज निकालेंगे। यह वैकल्पिक हथियार पैलेट गन से ज्यादा खतरनाक है।
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हालांकि इस नए हथियार से पत्थरबाजों की आंखें नष्ट नहीं होंगी, लेकिन दर्द पैलेट लगने से ज्यादा होगा। इतना दर्द होगा कि हिंसा करने वाले ये लोग शायद फिर कभी पत्थर लेकर सड़क पर उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे।
क्या है नया हथियार?
इस हथियार को पावा शेल्स कहा जाता है। पैलेट गन के छर्रे जहां आंखों में लगकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। वहीं, पावा शेल्स आंखों या शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन जब इन्हें दागा जाता है तो दर्द पैलेट गन के छर्रे लगने से ज्यादा होता है। पत्थरबाजों के बड़े से झुंड के लिए एक या दो पावा शेल काफी होते हैं। भीड़ में दागने के बाद इनसे निकलने वाली गैस से आदमी का शरीर सुन्न पड़ जाता है।
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क्यों असरदार होते हैं पावा शेल?
पावा का मतलब होता है पेलार्गनिक एसिड वैनिलिल एमाइड। इसे नोनिवेमाइड भी कहते हैं। मिर्च पाउडर की तरह काम करने वाला ये ऑर्गेनिक कंपाउंड होता है। पावा का इस्तेमाल खाने में तीखापन लाने के लिए भी किया जाता है। इसके शेल को आंसू गैस और चिली स्प्रे से ज्यादा असरदार पाया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक एक्सपर्ट कमेटी ने इसे ज्यादा असरदार पाया है।
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लखनऊ में चल रही थी टेस्टिंग
एक्सपर्ट कमेटी ने हाल ही में पावा शेल चलाने के असर को दिल्ली में परखा था। इस शेल को लखनऊ में इंडियन टॉक्सीकोलॉजी रिसर्च इंस्टीट्यूट में एक साल से टेस्ट किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि एक्सपर्ट कमेटी पैलेट गन की जगह पावा शेल के इस्तेमाल को हरी झंडी दिखा सकती है। कमेटी ने वैसे सिफारिश की है कि ग्वालियर में बीएसएफ की टियर स्मोक यूनिट में पावा शेल का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जाए।
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इसलिए हो सकते हैं इस्तेमाल?
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में बीती 8 जुलाई को आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कई जगह हिंसा हो रही है। हिंसा में 68 लोग मारे जा चुके हैं। सुरक्षाबलों के जवानों समेत करीब तीन हजार लोग घायल हुए हैं। सुरक्षाबलों ने पत्थरबाजों पर पैलेट गन का इस्तेमाल किया। इससे 400 पत्थरबाज घायल हुए और इनमें से कई की आंखों की रोशनी चली गई। इसकी वजह से पैलेट गन का विरोध हो रहा है। इस वजह से पावा को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
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क्या होती है पैलेट गन?
-ये दूसरी तरह की बंदूकों से अलग होती है।
-इससे दागे जाने वाले कारतूसों में सैकड़ों लेड के छर्रे होते हैं।
-भीड़ पर दागे जाने पर कारतूस कुछ दूरी पर फट जाता है और छर्रे तेजी से लोगों के शरीर में जा घुसते हैं।
-कई बार छर्रे लोगों की आंखों में भी लगते हैं और इससे उनकी आंख नष्ट हो जाती है।
कितने तरह के होते हैं छर्रे?
-सुरक्षाबल कई तरह के छर्रे वाले कारतूस इस्तेमाल करते हैं।
-इनमें गोल, नुकीले या अन्य बनावट के लेड के छर्रे होते हैं।
-ये छर्रे शरीर में जहां भी लगते हैं, वहां असहनीय दर्द होता है।
-इन छर्रों की खास बात ये है कि ये किसी की जान नहीं लेते।
साल 2010 से हो रहे इस्तेमाल
-जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल साल 2010 से हो रहा है।
-उस साल हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
-पैलेट गन से श्रीनगर में ही बीते पांच दिन में 120 के करीब लोग घायल हुए हैं।
-घायलों में से पांच लोगों की एक आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई है।
-जम्मू और कश्मीर के सभी दल पैलेट गन के खिलाफ हैं, लेकिन जिसकी भी सरकार आती है, वह इसका विरोध नहीं करता।