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बढ़ती जा रही पेट्रोल-डीजल की मार
नयी दिल्ली : देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत बढऩे का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसा लगता है मानो सरकार ने हालात के आग हाथ खड़े कर दिए हैं। 11 सितम्बर का हाल ये था कि महाराष्ट्र के परभणी में पेट्रोल की कीमत 90.02 रुपए प्रति लीटर पहुंच गई। मुंबई में पेट्रोल 88.26 रुपए प्रति लीटर है और दिल्ली में 80.87 रुपए। दिल्ली में डीजल 72.97 रुपए प्रति लीटर है और मुंबई में 77.47 रुपए। विपक्षी दल देश भर में इसके खिलाफ भारत बंद का आयोजन कर चुका है। सरकार का कहना है कि तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय कारणों से बढ़ रही है और सरकार इस पर कुछ नहीं कर सकती। वैसे, संकट ये भी है कि अमेरिका ने ईरान से तेल आयात करने पर प्रतिबंध लगा रखा है। सऊदी अरब और इराक रुपए से तेल देने पर राजी नहीं हैं।
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अगर पेट्रोल की कीमत 90 रुपए प्रति लीटर है तो इसमें आधा सरकार की तरफ से लगाए जाने वाले टैक्स हैं। इसमें केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाती है तो राज्य सरकारें वैट लगाती हैं। हर साल भारत में कच्चे तेल की जितनी खपत है उसका 80 फीसदी से ज़्यादा हम आयात करते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही डॉलर की तुलना में रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। इसका असर तो पडऩा ही है। इसके अलावा मोदी सरकार ने तेल की कीमतें तब भी कम नहीं कीं जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 30 डॉलर प्रति बैरल थी। देश की सभी सरकारें तेल बेचकर राजस्व का बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में जुटाती रही हैं। तेल पर केंद्र सरकार 30 से 40 फीसदी उत्पादन शुल्क लगाती है। तेल से कमाई इसलिए भी ज़्यादा है क्योंकि तेल सरकारी कंपनियां ही बेच रही हैं। २०१४ में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल थी।
जनवरी 2015 में कच्चा तेल 25 डॉलर प्रति बैरल हो गया। इसके बाद तेल की कीमत धीरे-धीरे बढ़ी और आज 72 से 75 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। जब कच्चा तेल बहुत कम दाम के स्तर पर था तब इसका पूरा फायदा भारत सरकार ने अपना खजाना भरने में उठाया। मोदी सरकार ने अपने राजस्व में 10 लाख करोड़ जुटाए। सस्ते कच्चे तेल का कोई फायदा उपभोक्ताओं को नहीं मिला।
जिस कीमत पर डीलरों को सरकार तेल देती है वो काफी कम होती है, लेकिन उत्पाद शुल्क और राज्य सरकारों के वैट के बाद कीमतें दोगुनी हो जाती हैं। सरकारों के राजस्व का बड़ा हिस्सा पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स से आता है। सभी राज्य सरकारों ने पेट्रोल पर 20 फीसदी से ज्य़ादा वैट लगा रखा है। गुजरात और ओडिशा को छोड़ बाकी राज्यों ने डीजल पर कम वैट रखा है।
जहां तक जीएसटी की बात है तो राज्य सरकारें तेल को इसके दायरे में लाने को तैयार नहीं हैं। जीएसटी की अधिकतम दर 28 फीसदी है और इसमें राज्यों का शेयर 14 फीसदी होगा। चूंकि वैट से मिलने वाले राजस्व में भारी कमी आएगी इसीलिए डीजल और पेट्रोल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क को देखें तो कुल टैक्स राजस्व में इसका हिस्सा 23 फीसदी है और उत्पाद शुल्क से हासिल होने वाले राजस्व में डीजल-पेट्रोल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क का हिस्सा 85 फीसदी है। केंद्र के कुल कर राजस्व में इसका हिस्सा 19 फीसदी है।
भारत में पेट्रोलियम से जुड़े उत्पाद में डीजल की खपत 40 फीसदी है। सार्वजनिक परिवहनों में डीजल सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है इसलिये डीजल का महंगाई दर पर असर पड़ता है।