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Ban on PFI: जानिए क्या कहती हैं यूएपीए की धाराएं
Ban on PFI: पीएफआई को यूएपीए की धारा 35 के तहत 42 प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की सूची में जोड़ा गया है।
Ban on PFI: केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सभी सहयोगियों और मोर्चों को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत पांधाराएंच साल की अवधि के लिए अवैध घोषित कर दिया गया है। इसके साथ ही पीएफआई को यूएपीए की धारा 35 के तहत 42 प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की सूची में जोड़ा गया है।
पीएफआई के सहयोगी संगठन हैं - रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ) , नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल। इन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
यूएपीए की धारा-35 के तहत, केंद्र सरकार के पास किसी संगठन को आतंकी संगठन घोषित करने का अधिकार केवल तभी होता है जब वह मानता है कि वह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है। कानून कहता है कि किसी संगठन को आतंकवाद में शामिल माना जाएगा यदि वह आतंकी घटनाओं में लिप्तआ पाया जाता है, आतंकवाद को बढ़ावा देता है या लोगों को आतंकवाद के लिए तैयार करता है।
किसी संगठन को यदि आतंकी समूह घोषित कर दिया जाता है तो उस संगठन के वित्त पोषण और उसके साथ जुडे़ व्यक्तियों को अपराधी माना जाता है।
यूएपीए की धारा-38 कहती है कि जो व्यपक्ति आतंकी गतिविधियों में लिप्तह है, या किसी आतंकी संगठन से जुड़ा है उसे दस साल की कैद हो सकती है। उन व्यक्तियों को इस प्रावधान के दायरे से बाहर रखा गया है जो संगठन को आतंकी संगठन घोषित किए जाने से पहले इसके सदस्य रहे हैं।
सजा का प्रावधान
यूएपीए की धारा-20 भी आतंकी संगठन का सदस्य होने के लिए सजा का प्रावधान करती है। इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो आतंकी समूह या आतंकी संगठन का सदस्य है, जो आतंकवादी कृत्य में शामिल है, उसे एक निश्चित अवधि की जेल हो सकती है।
हालांकि इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। यही नहीं, दोषी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
आय की जब्ती
यूएपीए की धारा- 24ए के तहत में आतंकवाद में लिप्त संगठन की आय को जब्त करने का भी प्रावधान है। प्रतिबंधित संगठन केंद्र सरकार के पास प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की समीक्षा किए जाने की गुहार भी लगा सकता है। फिर एक समीक्षा समिति नियुक्त की जाती है, जिसकी अध्यक्षता किसी उच्च न्यायालय के मौजूदा या पूर्व न्यायाधीश करते हैं।