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Ban on PFI: कैसे हुआ PFI का गठन, क्या है इसका असली मकसद, किन बड़ी घटनाओं से जुड़ा हुआ है नाम
Ban on PFI: सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन में पीएफआई की काली करतूतों को भी उजागर किया गया है।
Ban on PFI: केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके नौ सहयोगी संगठनों पर शिकंजा कस दिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन के मुताबिक पीएफआई पर पांच साल का बैन लगा दिया गया है। एनआईए और अन्य सरकारी एजेंसियों ने पीएफआई और इसके सहयोगी संगठनों के खिलाफ हाल में देशव्यापी छापेमारी की थी। इस दौरान सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन में पीएफआई की काली करतूतों को भी उजागर किया गया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि पीएफआई का गठन कब और कैसे हुआ, इस संगठन से जुड़े हुए लोगों पर किस तरह के गंभीर आरोप लग चुके हैं और इस संगठन का असली मकसद क्या है।
2006 में पड़ी संगठन की नींव
दक्षिण भारत का राज्य केरल पीएफआई की गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र रहा है और इसी राज्य में 2006 में पीएफआई की नींव रखी गई थी। इसका जन्म नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के रूप में हुआ था। बाद में इसमें कई अन्य मुस्लिमों संगठनों जैसे मनीथा नीति पसराय, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, राष्ट्रीय विकास मोर्चा आदि का विलय हो गया। इन संगठनों के विलय के बाद इसे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के नाम से जाना जाने लगा।
दरअसल 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद दक्षिण भारत के राज्यों में मुस्लिम संगठनों का उभार काफी तेजी से हुआ। इन संगठनों को मिलाकर ही पीएफआई का गठन किया गया। इस संगठन का मुख्यालय पहले केरल के कोझीकोड में था मगर देश के कई राज्यों में संगठन का विस्तार होने के बाद पीएफआई का हेड क्वार्टर दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया।
2006 में पीएफआई के गठन के बाद 2007 में बेंगलुरु में हुई एक रैली के दौरान इस संबंध में औपचारिक ऐलान किया गया था। बेंगलुरु में एम्पावर इंडिया कॉन्फ्रेंस के दौरान इसके गठन की औपचारिक घोषणा की गई थी।
आखिर क्या है पीएफआई का मकसद
पीएफआई खुद को नए सामाजिक आंदोलन के अगुवा के रूप में दिखाने की कोशिश करता है। संगठन का दावा है कि वह लोगों को न्याय, सुरक्षा और स्वतंत्रता दिलाने के साथ ही उन्हें सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। संगठन की कई शाखाएं भी हैं जिनमें विशेष रूप से राष्ट्रीय महिला मोर्चा (एनएमएफ) और केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) का नाम उल्लेखनीय है। पीएफआई का दावा है कि देश के 23 राज्यों में इसकी शाखाएं काम कर रही हैं।
पीएफआई ने खुद को ऐसे संगठन के रूप में पेश करने की कोशिश की है जो अल्पसंख्यकों,दलितों और हाशिए पर रहने वाले लोगों की लड़ाई लड़ने की कोशिश करता है मगर पीएफआई पर गुप्त एजेंडे के तहत देश विरोधी और अन्य विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त होने के समय-समय पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं।
सीएए-एनआरसी के खिलाफ लोगों को भड़काया
पिछले कुछ वर्षों के दौरान पीएफआई का नाम कई बार सुर्खियों में आ चुका है। कानपुर में पिछले दिनों हुई हिंसा की बड़ी घटना में भी इस संगठन का नाम आया था। इससे पहले दिल्ली दंगों के दौरान भी इस संगठन का नाम सामने आया था। इसके साथ ही सीएए और एनआरसी के खिलाफ देश के कई शहरों में हुए आंदोलन के दौरान भी यह संगठन चर्चा में आया था। इस संगठन पर आंदोलन को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे।
सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन के समय भी पीएफआई पर बैन लगाने की मांग काफी जोरों से उठी थी। हालांकि उस समय केंद्र सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। पीएफआई पर सबसे बड़ा आरोप मुस्लिम युवाओं को भड़काने और उनका ब्रेनवाश करके उन्हें कट्टरपंथी बनाने का है।
कन्हैयालाल हत्याकांड में भी आया था नाम
बिहार के बेगूसराय में हुए गोलीकांड से भी संगठन का नाम जुड़ा। कर्नाटक में भाजपा कार्यकर्ता की हत्या और उदयपुर के बहुचर्चित कन्हैया लाल हत्याकांड में भी पीएफआई के सदस्यों पर गंभीर आरोप लगे थे। देश में कई अन्य आतंकी गतिविधियों में भी पीएफआई सदस्यों का नाम सामने आता रहा है।
पीएफआई के खिलाफ 22 सितंबर को की गई छापेमारी के बाद यह भी खुलासा हुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस वर्ष 12 जुलाई को पटना में आयोजित रैली पीएफआई के निशाने पर थी। हालांकि पीएफआई से जुड़े हुए लोग इस बात से इनकार करते हैं मगर इस तरह के कई मामले उजागर हो चुके हैं।
2009 में हुआ एसडीपीआई का गठन
पीएफआई और इससे जुड़े हुए लोगों ने कभी चुनाव मैदान में किस्मत नहीं आजमाई। यह संगठन अभी तक चुनावी राजनीति से दूर रहा है और संगठन की ओर से दावा किया जाता है कि वह सामाजिक और इस्लामी धार्मिक कार्यों को करने में जुटा हुआ है। पीएफआई से ही 2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) निकला।
इस संगठन का उद्देश्य मुसलमानों दलितों और समाज के पिछड़े लोगों से जुड़े हुए राजनीतिक मुद्दे को उठाना था। एसडीपीआई की ओर से दावा किया जाता है कि उसका मकसद मुस्लिमों,दलितों पिछड़ों और आदिवासियों सहित देश के सभी नागरिकों के विकास का है।
हलफनामे में हुआ था बड़ा खुलासा
केरल में पीएफआई की सबसे दमदार उपस्थिति रही है और इस संगठन पर समय-समय पर दंगों और हत्या की घटनाओं में लिप्त होने और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने का आरोप लगाया जाता रहा है। केरल की ओमन चांडी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने 2012 में हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई प्रतिबंधित सिमी जैसा ही संगठन है। सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में पीएफआई कार्यकर्ताओं के हत्या के 27 मामलों में लिप्त होने की बात कही गई थी।
केरल सरकार की ओर से दो साल बाद दाखिल किए गए एक अन्य हलफनामे में भी पीएफआई पर गंभीर आरोप लगाया गया था। इस हलफनामे में कहा गया था कि पीएफआई का गुप्त एजेंडा कुछ और ही है। इस गुप्त एजेंडे के तहत पीएफआई लोगों के इस्लाम में धर्मांतरण, सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने और समाज के इस्लामीकरण जैसी गतिविधियों में लिप्त है। हलफनामे में पीएफआई कार्यकर्ताओं के सांप्रदायिक घटनाओं में शामिल होने की बात भी कही गई थी।