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श्रद्धालुओं से लूट का खुला खेल, करोड़ों हिंदुओं की जुड़ी है आस्था

raghvendra
Published on: 22 Dec 2017 6:32 AM GMT
श्रद्धालुओं से लूट का खुला खेल, करोड़ों हिंदुओं की जुड़ी है आस्था
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हरिद्वार: हरिद्वार या हरद्वार। दोनो ही नाम एक ही शहर के हैं। इसे मायापुरी या पंचपुरी भी कहते हैं। ये शहर और इसके तीर्थ देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े हुए हैं। प्रतिदिन लाखों तीर्थ यात्री यहां के तीर्थों का दर्शन करने या यहां से आगे चार धाम बदरीनाथ केदारनाथ गंगोत्री और यमनोत्री के लिए प्रस्थान करते हैं। इसीलिए इसे द्वार कहा गया है यह चार धाम द्वार है। शिव की प्रथम ससुराल है। यानी सती का मायका है। दक्ष प्रजापति के यज्ञ का शिव ने यहीं ध्वंस किया था। कनखल के लिए कहते हैं कि कौन दुष्ट यहां आ के तर नहीं जाता अर्थात क: न खल मिलकर हुआ कनखल। इसी तरह अच्युत चरण तरंगिणी जहां भगवान श्रीहरि की चरण को छूती हुई बह रही है वह हुआ हरिकी पैड़ी। लेकिन अफसोस धर्म और आस्था के नाम पर धर्म नगरी हरिद्वार में आने वाले श्रद्धालुओं से लूट का खुला खेल चल रहा है।

कनखल से हरिकी पैड़ी या सप्तधारा तक घाटों पर पंडों का कब्जा है। घाट पुजारी कमाई के लिए श्रद्धालुओं के सामने ही मरने मारने पर तैयार हो जाते हैं। मांस मदिरा वॢजत क्षेत्र होने के बावजूद कमाई के लालच में सब कुछ सुलभ करा दिया जाता है। रात में यहंा के घाटों की स्थिति अराजक व बद से बदतर हो जाती है।

प्रतिदिन होने वाली गंगा आरती के बाद जिस तरह से श्रद्धालुओं से नेत्रहीन बच्चों, विकलांगों, भंडारे व बटुकों के नाम पर धन उगाही की जाती है वह किसी से छिपी नहीं है। यह बताने वाला कोई नहीं है कि प्रति दिन रसीदें कटती हैं और जो पैसा आ रहा है वह जा कहां रहा है।

श्रद्धालु ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे है। लोगों का कहना है कि इससे हरिद्वार की छवि देश-दुनिया में खराब हो रही है। नगर पालिका की नियमावली के अनुसार गंगा सभा और सेवा समिति को एक निश्चित स्थान पर बैठकर चंदा लेने की अनुमति है, लेकिन यहंा पर लोग घूम-घूमकर चंदे की उगाही होती है। खुद को प्रचारक बताने वालों का कहना है कि उनके पास अनुमति है कि वह घूमकर चंदा ले सकते हैं।

हरकी पैड़ी पर पिछले कई सालों से पूजा पाठ कराने वाले चमोली के पंडित प्रकाश भट्ट ने इसके खिलाफ आवाज उठायी थी। उन्होंने कहा था कि हरिकी पैड़ी पर गंगा सभा व्यवस्था देखने में नाकाम साबित रही है। गंगा सभा असामाजिक तत्वों को संरक्षण दे रही है। उन्होंने कहा था कि इसके खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें धमकी दी जाती है और उनके साथ मारपीट भी की गई। उन्होंने कई बार पुलिस से भी शिकायत की लेकिन हुआ कुछ नहीं। उन्होंने कहा था कि सरकार को हरकी पैड़ी का अधिग्रहण कर लेना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि श्राइन बोर्ड बनाकर यहां की व्यवस्थाओं को चलाया जाना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में राज्यपाल और सूबे के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी पत्र लिखा था लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।

प्रकाश भट्ट से पहले भी कई बार इस तरह की मांग उठ चुकी है। सामाजिक कार्यकर्ता जेपी बडोनी भी इसको लेकर हाईकोर्ट जा चुके हैं। बडोनी ने भी कहा था कि कुछ लोग अपनी मनमर्जी चला रहे हैं। भट्ट का आरोप था कि उनके पिता हरकी पैड़ी पर पूजा कराते थे और उन्हें नगर निगम से लाइसेंस भी प्राप्त था। लेकिन यहंा कुछ लोगों ने उन्हें पूजा कराने देने से इनकार कर दिया। उनका तख्त भी छीन लिया।

कहा तो यह भी जा रहा है कि हर की पैड़ी पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए निशुल्क बने तख्तों पर अधिकारियों की मिली भगत से व्यापार होता है व हर तख्त पर श्रद्धालुओं को सुविधा देने के बजाय लूट होती है। 10-20 रुपये की मिलने वाला कैन यहां 40-50 का और 5 रुपये की धूप 20 में बेची जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हर की पौड़ी पर किसी भी प्रकार का व्यापार कानूनन अपराध है। नगर निगम की नियमावली में हर की पौड़ी व्यापार मुक्त क्षेत्र बतायी गयी है। लेकिन इन तख्तों पर कारोबार जारी है। महिलाओं को कपड़े बदलने के लिए आड़ देने की एवज में सौ रुपए तक वसूल किये जाते हैं।

आरोप तो यह भी है कि घाटों पर अवैध कब्जे कराने में नगर निगम कर्मियों की मिली भगत रहती है। और इतनी अधिक दुकानें खुलवा दी गई हैं कि घाट पर जाने के लिए भी जगह नहीं बची है।

अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा मंदिरों को सरकारी प्रभाव से अलग रखने की मांग तो जब तब उठाती रहती है लेकिन तीर्थयात्रियों व श्रद्धालुओं को सुविधाएं देने व उन्हें लूटे जाने से बचाने के अपने दायित्व से पीछे हटती नजर आती है।

गंगा है या नहर

इस बीच एनजीटी के ताजा फैसले से हरिद्वार में एक बार फिर बहस शुरू हो गई है कि हरकी पैड़ी पर गंगा है या नहर। दरअसल, राज्य सरकार वर्ष 2016 में शासनादेश जारी कर हरकी पैड़ी तक आने वाली धारा को नहर घोषित कर चुकी है। दूसरी ओर गंगा सभा जिसकी कमाई का गंगा मुख्य आधार है उसका कहना है कि यही असली गंगा है। हरिद्वार में भीमगौड़ा से गंगा की एक धारा मुख्य धारा से अलग होकर हरकी पैड़ी आती है।

एनजीटी ने हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा के किनारे सौ मीटर के दायरे में निर्माण और पांच सौ मीटर के दायरे में कूड़ा फेंकने पर रोक लगाई हुई है। ताजा आदेश में हरिद्वार, ऋषिकेश व उत्तरकाशी में गंगा में कचरा व प्लास्टिक बहाने पर रोक की बात है लेकिन सवाल यह है कि एनजीटी के आदेश की जद में कौन सी धारा आएगी। मुख्य धारा या हरकी पैड़ी का क्षेत्र।

वर्ष 2016 में एनजीटी और हाईकोर्ट ने हरिद्वार में गंगा के किनारे दो सौ मीटर के दायरे निर्माण ध्वस्त करने के आदेश दिए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने हरकी पैड़ी की धारा को ‘स्कैब चैनल’ (नहर) करार दे दिया। उनका तर्क था कि व्यावसायिक नुकसान से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया। तब इसका गंगा सभा ने जबरदस्त विरोध किया था। अब वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगा सभा को आश्वस्त किया है कि फैसला बदल दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हरीश रावत ने कहा था कि ‘अगर मैंने गलत काम किया है तो वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री उसमें सुधार कर दें, मैं माफी मांगने को तैयार हूं।’ हालांकि शासनादेश अभी तक पूर्ववत है। और हरकी पैड़ी पर लूट भी बरकरार है।

मोदी के स्वच्छता अभियान को भी चूना

शासन प्रशासन के आदेशों के बावजूद गंगा में गंदगी गिराया जाना जारी है। यहां का हर ट्रीटमेंट प्लांट फेल है। गंगा में कूड़ा-करकट, टूटी मूर्तियां और गंदगी गिराने में घाट से जुड़े कारोबारी, पुजारी व पंडा समाज बाज नहीं आ रहा है। एनजीटी का पालिथिन पर रोक का ये आदेश तो नया है इसका भी पालन हो पाएगा या नहीं ये वक्त बताएगा। इससे पहले के एनजीटी के आदेश का पालन कहीं नजर नहीं आता है। ये अराजकता किसी को दिखाई नहीं दे रही क्योंकि इसमें कोई एफआईआर नहीं हो रही।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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