PM Modi's Mann Ki Baat: खास है केरल के अट्टापडी का करथुम्बी छाता

PM Modi's Mann Ki Baat: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' में करथुम्बी छाता का जिक्र किया है। आखिर क्यों इतना खास है ये। इसे आदिवासी महिलाएं अपने हाथ से बनाती हैं। इस छाते को ब्रांड नाम दिया गया "करथुम्बी।"

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 30 Jun 2024 2:08 PM GMT (Updated on: 30 Jun 2024 2:08 PM GMT)
he Karthumbi umbrella of Attappady in Kerala is special
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खास है केरल के अट्टापडी का करथुम्बी छाता: Photo- Social Media

Mann Ki Baat: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' रेडियो प्रोग्राम के लेटेस्ट एपिसोड में केरल में बने अनोखे "करथुम्बी" छाते के बारे में बात की है। स्वाभाविक है कि लोगों में इस छाते के बारे में उत्सुकता जगी है कि आखिर ये छाता है क्या? खासियत क्या है इसकी? किस ख़ासियत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपने 'मन की बात' का एजेंडा बनाया। तो जानते हैं कि करथुम्बी छाता क्यों खास है।

केरल और छाते

दरअसल, केरल की संस्कृति में छातों का खास महत्व है। छाते वहां की कई परंपराओं और रीति-रिवाजों का अहम हिस्सा हैं। चूंकि केरल में बरसात और धूप, दोनों ही काफी तेज होती है, सो रोजमर्रा की जिंदगी से छाते जुड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर केरल के ओलक्कुडा में ताड़ के पत्तों से छतरियाँ बनाई जाती हैं। यह ऐतिहासिक शिल्प कभी सोशल स्टेटस का प्रतीक था। इसका उपयोग नंबूदिरी ब्राह्मण और सीरियाई ईसाई करते थे। छतरियां केरल की समृद्ध विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं।

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अट्टापडी के छाते

अट्टापडी केरल का एक आदिवासी तालुका है जिसके तहत एक रिजर्व फ़ॉरेस्ट भी आता है। इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय रहते हैं, जो आमतौर पर मेहनत मजदूरी करके गुजर बसर करते हैं। अट्टापडी में छाते के साथ एक नया प्रयोग किया गया। जिसमें आदिवासी समुदाय को जोड़ा गया। यह कोई अलग तरह का छाता नहीं बल्कि सामान्य रोजमर्रा इस्तेमाल वाला छाता था। खासियत यह थी कि इसे आदिवासी महिलाएं अपने हाथ से बनाती हैं। इस छाते को ब्रांड नाम दिया गया "करथुम्बी।"

अट्टापडी का अपना ब्रांड

करथुम्बी ब्रांड की शुरुआत 2016 में हुई थी। ‘थम्पू’ नामक एक एनजीओ ने एक लाख रुपये के शुरुआती निवेश के साथ इस ड्रीम प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। छातों को बनाने के लिए सामग्री कोरिया से इम्पोर्ट की गई। पहले 50 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई थी। उन्होंने 1,000 छतरियाँ बनाईं। आज, लगभग 120 महिलाएँ करथुम्बी छतरियाँ बनाने में लगी हुई हैं। उन्हें एक छाता बनाने के लिए 50 रुपये मिलते हैं। वे प्रतिदिन 500 से 700 रुपये कमा रही हैं।

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इस पहल को सरकारी जनजातीय आपूर्ति निधि से 16.40 लाख रुपये का निवेश प्राप्त हुआ है। प्रत्येक छतरी की कीमत 350 रुपये है। इन छातों को अट्टापडी की वो आदिवासी महिलाएँ बनाती हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी छतरी का इस्तेमाल नहीं किया था। आज ये आदिवासी महिलाओं की आजीविका का साधन बन गया है। करथुम्बी ब्रांड का नाम दरअसल अट्टापडी में बच्चों के एक मनोरंजक क्लब का नाम है। इस नाम से छाते के ब्रांड का नामकरण बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किया गया था।

हाईप्रोफाइल खरीदार

अट्टापडी ब्रांड की छतरियों को खूब सपोर्ट मिला है। आईटी हब, टेक्नोपार्क और इन्फोपार्क, कोच्चि मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, कोचीन विश्वविद्यालय और राज्य भर के कई स्कूलों और कॉलेजों सहित कई हाई-प्रोफाइल खरीदार मिल रहे हैं। आदिवासी छात्रों के लिए स्कूलों और छात्रावासों में हजारों छतरियां सप्लाई की जा रही हैं। केरल के सभी 118 मॉडल आवासीय स्कूलों को भी इन छतरियों की सप्लाई करने पर विचार किया जा रहा है।

वरदान बने छाते

करथुंम्बी छतरियां अट्टापदी की महिलाओं के लिए वरदान बनकर आईं, जिन्हें गरीबी और अन्य दुश्वारियों से भी जूझना पड़ता था। इसी परिदृश्य में ‘थम्पू’ ने आदिवासी महिलाओं को छाते बनाने की कला सिखाने का फैसला किया। शुरुआत में थोड़े लोगों के एक समूह को त्रिशूर स्थित एनजीओ अथिजीवन सोसाइटी की मदद से प्रशिक्षण दिया गया। अब कल्लमाला, पोट्टीक्कल्लू, नल्लाशिंका, चोरियान्नूर और नेल्लिपथी में छाते बनाने के केंद्र हैं। हाल ही में, राज्य के प्रमुख आईटी पार्कों में काम करने वाले तकनीशियनों ने इस प्रयास का समर्थन करने के लिए हाथ मिलाया है। मुख्य रूप से तीन तरह के करथुम्बी छाते अभी बाजार में हैं। काले, लाल और हल्के नीले रंग के।

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लक्ष्मी उन्नीकृष्णन

करथुम्बी छाते के पीछे अट्टापडी की आदिवासी कार्यकर्ता लक्ष्मी उन्नीकृष्णन का उल्लेखनीय योगदान है। लक्ष्मी ने जिनेवा स्थित महिला विश्व शिखर सम्मेलन फाउंडेशन और एकता महिला मंच द्वारा संयुक्त रूप से दिए जाने वाले ग्रामीण जीवन में पहली महिला सेलिब्रिटी पुरस्कार जीता है।

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यह पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया है। लक्ष्मी और उनके दोस्तों ने 2013-14 में आदिवासी क्षेत्र में शिशु मृत्यु की बढ़ती दर के मद्देनजर अट्टापडी में छाता बनाने की इकाई शुरू की थी।

अब करथुम्बी ब्रांड नाम के तहत कई तरह के उत्पाद बनाने की योजना पर काम चल रहा है। इससे अट्टापडी के आदिवासी इलाकों में रोजगार के और अवसर पैदा होंगे।

Shashi kant gautam

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