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Lok Sabha elections 2024: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों को लेकर राजनैतिक हलचल, बहुकोणीय मुकाबले में बसपा को सर्वाधिक संकट

Lok Sabha elections 2024: मायावती को अब अपने ही सांसदों पर भरोसा नहीं है, कहा जा रहा है कि वह अपने सभी 10 सांसदों के टिकट काटने जा रही है।

Mrityunjay Dixit
Published on: 28 Feb 2024 7:59 PM IST
BSP chief Mayawati
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BSP chief Mayawati  (Pic: social media) 

Lok Sabha elections 2024: वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों का शंखनाद बस होने ही वाला है। सीटों की संख्या की दृष्टि से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सभी दल अधिकतम सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रहे रहे हैं। इस लक्ष्य को साधने के लिए प्रदेश में विपक्ष का इंडी गठबंधन बनकर तैयार हो गया है, जिसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का काफी ना- नुकुर के बाद तालमेल हो गया है।

भारतीय जनता पार्टी रामलहर व विकास की लहर पर सवार होकर सभी 80 सीटों पर विजय प्राप्त करने की बात कह रही है और हर सीट पर केवल जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट देने का निर्णय कर चुकी है। वहीं बसपा अभी तक अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की बात कह रही है किंतु उसके सामने सबसे बड़ी समस्या टिकाऊ व जिताऊ उम्मीदवारों का न होना है। बसपा नेत्री मायावती को अब अपने ही सांसदों पर भरोसा नहीं रह गया है और कहा जा रहा है कि वह अपने सभी 10 सांसदो के टिकट काटने जा रही है, ऐसे में टिकट कटने के भय व अपनी राजनीति को सुधारने की दृष्टि से कई सांसद पाला बदलने की तैयारी में लग गये हैं और कुछ ने पाला बदल भी लिया है।

त्रिकोणीय संघर्ष में मायावती के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपना पिछला प्रदर्शन बचाकर रखना है। विगत 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा को सपा रालोद गठबंधन के साथ लड़ने के कारण 10 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त हुई थीं किंतु अब समीकरण और गठबंधन दोनों ही काफी बदल गए हैं। बसपा सांसद एक के बाद एक मायावती का साथ छोड़कर जा रहे हैं।

यह भी सुनने में आ रहा है कि बसपा के कई वर्तमान व पूर्व सांसद भाजपा व कांग्रेस के साथ संपर्क बनाकर चल रहे हैं। अभी तक बसपा के जो सांसद पाला बदल चुके हैं उनमें जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी सपा में जा चुके है जबकि बसपा के एक और चर्चित मुस्लिम चेहरा दानिश अली कांग्रेस में जा चुके हैं तथा एक और सांसद श्याम सिंह पहले यह भारतीय जनता पार्टी के साथ संपर्क में थे किंतु टिकट पक्का न हो पाने के कारण कांग्रेस में चले गये हैं। बसपा को सबसे बड़ा झटका दिया है उसके एकमात्र ब्राहण सांसद रितेश पाण्डेय का जो अब भारतय जतना पार्टी के साथ चले गये है और इस बात की प्रबल संभावना है कि उन्हें भाजपा से टिकट मिल सकता।

बसपा सांसद रितेश पाण्डेय उन सांसदों के समूह में भी शामिल थे जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के बजट सत्र के दौरान भोज पर बुलाया था। अंबेडकरनगर से बसपा सांसद रितेश पाण्डेय ने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बसपा से इस्तीफा दिया और उसी दिन कुछ ही क्षणों के बाद भाजपा में शामिल हो गये। रितेश पाण्डेय ने 2019 के लोकसभा चुनावों में योगी सरकार के सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को हराया था। यह 2017 अंबेडकरनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत जलालपुर विधानसभा सीट से विधायक भी बने थे। 2009 से 14 तक इनके पिता राकेश पाण्डेय भी बसपा के सांसद रह चुके हैं और इस परिवार का क्षेत्र में काफी गहरा प्रभाव माना जाता है। रितेश पाण्डेय बसपा के सबसे पढ़े लिखे सांसद थे। उन्होंने 2005 में लंदन के यूरोपियन बिजनेस स्कूल से इंटरनेशनल बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। रितेश ने ब्रितानी युवती कैथरीना से प्रेम विवाह कर अपना घर बसाया है। सांसद बनने के बाद मायावती ने 2020 में लोकसभा में दल का नेत भी बनाया था, इसके बावजूद उनका कहना है कि बसपा में उनकी उपेक्षा की जा रही है जबकि एक बड़ी सत्यता यह भी है कि चूंकि वह बसपा से अंबेडकरनगर के सांसद थे और अपनी व जनमानस की इच्छाओं के अनुरूप अपने क्षेत्र का विकास नहीं कर पा रह थे और आगामी लोकसभा चुनावों में रामलहर के कारण अपनी पराजय भी स्पष्ट रूप से समझ रहे थे क्योंकि जिस प्रकार बहिन मायावती ने श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया उसके कारण उनकी बची- खुची लोकप्रियता का किला भी ध्वस्त हो गया । बसपा सांसदों को यह भी पता है कि इस बार उन्हें सपा काडर का वोट नहीं मिलने जा रहा है। लाभार्थी योजनाओं के कारण भरतीय जनता पार्टी ने अब बसपा के असली वोटबैंक जाटव और दलित समाज तथा पसमांदा समाज के वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कस ली है।

बसपा की एक और संसद संगीता आजाद भी भाजपा नेताओं के साथ संपर्क में बनीं हुई हैं। इसी प्रकार कई अन्य बसपा नेता भी भाजपा के सपर्क में बताये जा रहे हैं। इस बीच यह भी खबर है कि बसपा के मुस्लिम सांसद गुडडू जमाली सपा के साथ संपर्क में हैं। बसपा के समक्ष उसकी सबसे बड़ी समस्या है कि उसके पास अपने गिरते ग्राफ को सुधारने के लिए कोई होनहार नेता नहीं है। बसपा को उत्तर प्रदेश में वर्ष 2007 में 30 प्रतिशम मत मिले थे जबकि 2022 के विधानसभा चुनावों में मात्र 12 प्रतिशत मत मिल और केवल एक विधायक ही विधानसभा में पहुंच सका। बहिन मायावती जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बनी तब उनकी सरकार में घोटालों की बाढ़ आयी हुई थी और मुस्लिम तुष्टिकरण भी चरम सीमा पर रहता था।मायावती के कई बाहुबली विधायकों पर महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने के आरोप भी लगे। इनके कारनामों के कारण 2014 में बसपा को एक सीट भी नहीं मिली।

बसपा नेत्री मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी पार्टी का नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है किंतु उनकी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता उनके इस निर्णय को पूरी तरह से पचा नहीं पा रहे हैं और अभी उनकी इतनी पकड़ भी प्रदेश की रानजीति में नहीं है। बसपा नेता मायावती सदा भ्रम में रहती हैं और कभी भी स्पष्ट विचारों वाली राजनीति नहीं कर पा रही हैं।हालांकि वह महिलाओं, दलितों व अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर आरक्षण के नाम पर हमलावर रहती हैं लेकिन अब उनमें अपील नहीं बची है हालांकि जाटव समाज का एक बड़ा तबका आज भी मायावती को ही अपनी पहली पसंद बताता है।

मायावती राजनैतिक भ्रम का शिकार हैं। कभी ब्राहमणों पर हो रहे अत्याचार को मुददा बनाकर चुनावी मैदान में उतर जाती हैं जब वह चुनाव नहीं जीत पाती तब वह ब्राहमण समाज को भूल जाती हैं।उनकी राजनीति की सबसे बड़ी समस्या मुस्लिम समाज का वोटबैंक भी हैं दरअसल यह वही मायावती हैं जिन्होंने विगत विधनसभा चुनावों में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को पैनी धार देने के लिए मुस्लिम समाज से अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाने का वादा किया था और एक 50 पृष्ठों की एक बुकलेट प्रकाशित करवायी थी। बसपा की वेबसाइट पर आज भी हिंदू सनातन विरोधी बयानों को देखा जा सकता है। बसपा का मूल विचार हिंदू सनतान विरोधी है और यह लोग हिंदू देवी देवताओं का घोर अपमान करते हैं तथा दूर दराज के गांवों में बसपा कार्यकर्ता जाटव व अन्य दलित समाज को भड़काते रहते है।बसपा कभी तिलक, तराजू और तलवार के खिलाफ नारा लगाती है और फिर अपनी जमीन को सुधारने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों में जयश्रीराम भी बोलती हैं ।

देश का जनमानस इन मायावी नेताओ को अच्छी तरह से समझ चुका है। बसपा ने अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करके अपना राजनैतिक अंत कर लिया है और यही कारण है कि बसपा के अच्छे सांसद व नेता अब अपना राजनैतिक भविष्य सुधारने की तैयारी करने के लिए पार्टी छोड़कर जा रहे हैं।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)



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Ashish Kumar Pandey

Ashish Kumar Pandey

Senior Content Writer

I have 17 years of work experience in the field of Journalism (Newspaper & Digital). Started my journalism career on 1 April 2005 as a sub-editor from Dainik Bhaskar Jaipur. After that, on January 1, 2008, I worked as a sub editor in I- Next News Paper (Hindi Daily) till July 31, 2009. During this I handled the responsibility of the National Desk. From August 1, 2009 to September 13, 2010, worked in Amar Ujala on National Desk and City Desk in Bareilly and Moradabad as Senior Sub Editor. From 15 September 2010 to 31 October 2011, worked as Senior Sub Editor/Senior Reporter in Hindustan newspaper Bareilly. From November 1, 2011, worked in Gwalior on the post of Chief Sub Editor in Rajasthan Patrika Hindi daily newspaper. From July 1, 2017 to January 31, 2019, worked in Patrika Dotcom Hindi Web portal, Lucknow. Worked as News Editor in Amrit Prabhat from 1 February 2019 till 31 January 2021. During my career I got opportunity to work at General Desk, Sports, City Desk and have vast experience of journalism business. Whatever responsibilities were given, I accepted it with a challenge and performed it well. My Qualifications : - ‌MA Political Science from Gorakhpur University, Gorakhpur ‌PG Diploma in Mass Communication - Guru Jamveshwar University Hisar, Haryana My Interests: Reading, writing, playing, traveling. Interest in Media: Special interest in political news and also in the field of sports, crime, health etc.

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