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मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से तल्ख हुए नवजोत सिंह सिद्धू के रिश्ते

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Published on: 9 Feb 2018 9:28 AM GMT
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से तल्ख हुए नवजोत सिंह सिद्धू के रिश्ते
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दुर्गेश पार्थसारथी

चंडीगढ़: इन दिनों पंजाब की राजनीति में गर्मा गई है। यह गर्माहट सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उन्हीं के सरकार के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच बढ़ती दूरियों को लेकर है। सिद्धू की नाराजगी कोई नई नहीं है। जब वह भारतीय जनता पार्टी के अमृतसर से सांसद थे और उनकी पत्नी भाजपा से विधायक थी तब भी सिद्धू दंपति अपनी ही गठबंधन की सरकार से नाराज रहते थे। सिद्धू व उनकी पत्नी डॉ.नवजोत कौर सिद्धू तत्कालीन मुख्यमंत्री व शिअद प्रमुख प्रकाश सिंह बादल और उनकी सरकार को कोसने का कोई मौका नहीं चूकते थे।

भाजपा से सिद्धू की यह नाराजगी उस समय खुलकर सामने आ गई जब पार्टी ने उन्हें अमृतसर से टिकट नहीं दिया और उन्हें हरियाणा में स्टार प्रचारक बनाकर भेज दिया। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद सिद्धू को राज्यसभा का सदस्य बना दिया, लेकिन सिद्धू की नाराजगी दूर नहीं हुई। इधर राज्य सरकार में सिद्धू की विधायक पत्नी ने शिअद सरकार पर अपनी उपेक्षा और उनके विधानसभा क्षेत्र में विकास के लिए फंड न देने का आरोप लगाकर अपनी नाराजगी जाहिर करती रहीं। अंतत: 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान सिद्धू दंपति ने भगवा चोला छोडक़र कांग्रेस का हाथ थाम लिया, लेकिन एक साल के भीतर ही सिद्धू की नाराजगी दिखने लगी।

ऐसे आई रिश्तों में खटास

दिसंबर 2017 में राज्य में हुए तीन नगर निगमों अमृतसर, जालंधर और पटिया सहित 31 नगर कौंसिल चुनावों में कांग्रेस को मिली भारी जीत के बाद सूबे में पार्टी का हौसला बढ़ा था। चुनाव परिणाम आने के करीब एक माह बाद इस वर्ष जनवरी के आखिरी हफ्ते में इन तीनों नगर निगमों के मेयर के चुनाव में सिद्धू को दूर रखा गया। यहां तक कि सिद्धू के गृहनगर अमृतसर के मेयर के चुनाव में भी सिद्धू की सलाह नहीं ली गई, बल्कि मेयर के चयन की सारी जिम्मेदारी जिला कांग्रेस अध्यक्ष और यहां के चारों विधायकों को सौंप दी गई। अमृतसर नगर निगम के नवनिर्वाचित पार्षदों और मेयर के शपथग्रहण समारोह से भी सिद्धू ने दूरी बनाए रखी। यही नहीं इस समारोह में सिद्धू समर्थक 15 पार्षदों ने भी भाग लेने से इनकार कर दिया था। इससे हरकत में आए जिला कांग्रेस हाईकमान ने इन सभी 15 पार्षदों को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया। इसके दो दिन बाद इन पार्षदों ने कहा कि वे पार्टी के वफादार हैं। उनसे भूल हुई है। अत: उन्हें जालंधर नगर निगम के पार्षदों के साथ ही पद व गोपनीयता की शपथ दिला दी गई।

बिना बुलाए मंदिर व गुरुद्वारे में जाता हूं

सिद्धू की नाराजगी इस बात से भी झलकती है कि जब उनसे अमृतसर में पार्षदों के शपथग्रहण समारोह में शामिल न होने के बारे पूछा गया तो उन्होंने बड़ी साफगोई से कहा कि मैं बिना बुलाए केवल मंदिर व गुरुद्वारे में जाता हूं। इसके बाद कांग्रेस के जिला अध्यक्ष व पूर्व डिप्टी स्पीकर रह चुके जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि सिद्धू को इस समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया था, लेकिन खुद सिद्धू ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया था। सिद्धू का यह कहना गलत है कि निगम के मेयर चुनाव में उनकी अनदेखी की गई। मेयर का चुनाव पार्टी हाईकमान के आदेश पर किया गया है।

भाजपा भी हुई हमलावर

मेयर चुनाव में सिद्धू की अनदेखी, उनकी अपनी पार्टी से नाराजगी को लेकर भाजपा के नेता भी हमलावर हो गए हैं। पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी ने कहा कि जब सिद्धू भाजपा के नहीं हुए तो वे कांग्रेस के क्या होंगे। सिद्धू केवल स्वार्थ की राजनीति करते हैं। उन्हें लोगों के हितों से कोई मतलब नहीं है। वे केवल गुरुनगरी व पंजाब के विकास का ढोंग करते हैं। उन्होंने सवाल किया कि अपने एक साल के मंत्रीत्वकाल में उन्होंने क्या किया। नगर निगमों का फंड रोककर विकास कार्य अवरुद्ध कर दिया और बड़ी बेशर्मी के साथ यह भी कहने से नहीं हिचके कि नगर निगमों का फंड हमने रोका था क्योंकि वे अकाली-भाजपा के मेयर थे। वहीं जिला अध्यक्ष राजेश हनी ने कहा कि अब सिद्धू अंदाजा लगा लें कि भाजपा छोडऩे के बाद उनकी क्या स्थिति है। स्थानीय निकाय मंत्री होने के बावजूद मेयर के चुनाव में सिद्धू को हाशिए पर रखा गया। उन्होंने कहा कि सिद्धू की हालत उस बच्चे की तरह हो गई जिसे टॉफी दो तो वह खुश हो जाता है, नहीं तो मुंह फुलाकर बैठ जाता है।

सिद्धू पर कांग्रेसी भी हमलावर

बताया जाता है कि सिद्धू अपनी नाराजगी लेकर राहुल गांधी के पास भी पहुंचे थी, लेकिन वहां भी उनकी नहीं सुनी गई। यहीं नहीं स्थानीय स्तर भी कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें कोसना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के पूर्व सेक्रेटरी रहे मनदीप सिंह मन्ना ने कहा कि सिद्धू केवल अपने निजी हितों को साधने के लिए कांग्रेस में आए हैं। वह भाजपा के एजेंट हैं क्योंकि उन्होंने आज तक प्रधानमंत्री मोदी सहित अन्य नेताओं को एक शब्द नहीं कहा। यहां तक कि चुनाव प्रचार में भी उन्होंने दूरी बनाए रखी।

सार्वजनिक मंच पर दिखी कैप्टन व सिद्धू की दूरी

अमृतसर के मेयर के चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिंद्धू के बीच की दूरियां बढ़ गयी थीं। पिछले दिनों अमृतसर के मेयर के चुनाव के करीब एक सप्ताह बाद स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करने वाले सिद्धू ने खुद शहर के मयर रनदीप सिंह बिट्टïू से मिलकर उन्हें बधाई दी और उनके साथ शहर की सफाई में उतरे तो एकबारगी कांग्रेसियों सहित सभी को लगा कि अब कांग्रेस से सिद्धू की नाराजगी दूर हो गई है, लेकिन ऐसा नहीं था।

इसके ठीक तीन दिन बाद मुख्यमंत्री के गृहनगर पटियाला में आयोजित यादविंद्रा पब्लिक स्कूल के स्थापना दिवस समारोह में खुद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सहित कांग्रेस के कई दिग्गज नेता यहां तक कि डाक्टर कर्ण सिंह भी समारोह में मौजूद थे और समारोह को संबोधित भी किया। इस कार्यक्रम में सिद्धू पहुंचे तो जरूर, लेकिन वह मुख्यमंत्री से तीसरी पंक्ति की कुर्सी पर बैठे। करीब एक घंटे तक चले कार्यक्रम में सिद्धू आधे घंटे तक बैठे रहे। इस दौरान न तो सिद्धू ने मुख्यमंत्री से कोई बात की और नहीं मुख्यमंत्री ने उन्हें कोई तवज्जो दी और तो और सिद्धू कार्यक्रम बीच में ही छोडक़र चले गए। बताया जाता है कि कार्यक्रम में सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी व पूर्व विदेश मंत्री परनीत कौर से तो मिले, लेकिन कैप्टन से नहीं। यही नहीं खबर यह भी थी कि सिद्धू पूरे दिन पटियाला में ही रहे।

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