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शराबबंदी के बाद अब पॉली बैग पर बैन करेगा परेशान

raghvendra
Published on: 5 Oct 2018 3:44 PM IST
शराबबंदी के बाद अब पॉली बैग पर बैन करेगा परेशान
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: बिहार में पॉलीथिन बैग प्रतिबंधित होने वाला है। कभी खबर आ रही कि 50 माइक्रॉन तक के पॉलीथिन बैग बंद होंगे तो कभी पूर्ण प्रतिबंध की बात कही जा रही। सरकारी स्तर पर कुछ होर्डिंग्स लोगों को पॉलीथिन से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं। हाईकोर्ट लगातार सख्ती से फॉलोअप कर रहा है कि सरकार उसकी दी तारीख तक पॉलीथिन बंद को लेकर आदेश जारी करती है या नहीं। लेकिन, जनता परेशान है। सवालों से घिरी है कि बिहार में पॉलीथिन कहीं उसी तरह तो बैन नहीं होगा, जिस तरह शराब पर पाबंदी लगाई गई थी। आजतक पूर्ण शराबबंदी लागू नहीं हो सकी है और शराब के नाम पर पुलिस की मनमानी से जुड़ी खबरें बार-बार सामने आ रही हैं। यहां तक कि दरोगा को थाने से शराब का कारोबार करते पकड़ा जा चुका है। ऐसे में पॉलीथिन पर बैन को लेकर कई तरह के सवाल फिज़ा में हैं और सरकार को 25 अक्टूबर तक हर सवाल का जवाब सामने रख देना है।

कचरा फेंकने को लेकर होगा बड़ा संकट

लोग सब्जी लाने के लिए झोला लेकर जा सकते हैं। कपड़े के दुकानदार दूसरे बैग्स दे सकते हैं। सामान लाने की दूसरी व्यवस्था हो सकती है। अनाज को अखबार के ठोंगे में दिया जा सकता है। कई अन्य विकल्प बाजार में दिखने भी लगे हैं। लेकिन अभी तक कचरा जमा करने को लेकर विकल्प सामने नहीं आया है। दफ्तरों-घरों से निकलने वाला कचरा काले री-साइकल्ड पॉलीथिन बैग्स में बाहर आता है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल भी यही पॉलीथिन हो रहे हैं। सस्ता होने के कारण नॉनवेज के साथ ही छोटी दुकानों पर सामान देने के लिए भी इसी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है।

दुकानदार ऐसे पॉलीथिन में सामान देना छोड़ भी दें तो कचरा निस्तारण के लिए कोई ठोस विकल्प सामने नहीं है। पटना नगर निगम ने इसी 2 अक्टूबर से एक बार फिर डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन की शुरुआत की है। यह सेवा पहले भी कई बार शुरू-बंद हो चुकी है। इस बार भी यह सेवा शुरू हुई मगर हर घर तक पहुंचने में अभी बहुत समय लगेगा। हर घर को कचरा जमा करने के लिए पहले डस्टबिन के उपयोग की आदत लगानी होगी, जो पटना में भी अधिकतम 20 प्रतिशत आबादी की है। 80 फीसदी घरों में डस्टबिन का उपयोग नहीं होता है। सीधे पॉलीथिन में कचरा जमा होता है और मौका लगते ही लोग कचरा जमा होने वाली जगह पर इसे फेंक देते हैं। यही कचरा फिर टिपरों-ट्रैक्टरों के जरिए डंपिंग यार्ड तक ले जाया जाता है। जहां यह कूड़ा ठीक से नहीं उठाया जाता, वहां छोटी नालियों के जरिए बड़े नालों तक पहुंचकर उसके जाम का कारण बनता है। ऐसे पॉलीथिन के कारण ही हर बरसात में पटना के बड़े हिस्से को भीषण जलजमाव का सामना करना पड़ता है।

तो बदल जाएगा सिस्टम

बिहार में पॉलीथिन बैन को लेकर सरकारी स्तर पर प्रयास के तहत एक टीम को महाराष्ट्र भी भेजा गया था। टीम ने अपनी रिपोर्ट में पॉलीथिन के साथ थर्मोकोल से बनी प्लेट-कटोरी और डिस्पोजेबल ग्लास आदि पर भी बैन का जिक्र किया है। महाराष्ट्र मॉडल की सबसे खास बात यह बताई गई कि वहां की सरकार ने बैन को लागू करने के साथ ही पहले बड़े मॉल, होटल आदि पर छापेमारी की।

ऐसे एक्शन से डरकर छोटे कारोबारियों और आम लोगों ने इससे परहेज कर लिया। इस मॉडल के लागू होने पर पहली बार पॉलीथिन के साथ पकड़े जाने पर पांच हजार, दूसरी बार में 15 हजार और तीसरी बार में 25 हजार रुपए फाइन का प्रावधान होगा। महाराष्ट्र की तरह यहां भी पॉलीथिन पर बैन के लिए राजधानी पटना को मॉडल के रूप में पेश किया जा सकता है और स्पेशल फोर्स लगाकर इस मामले में सख्ती की जा सकती है। घरों में किस तरह से जांच की जा सकती है और किस मात्रा पर एक्शन लिया जाना है, इसपर अभी एकमत तैयार नहीं हुआ है। इन सभी बातों पर निर्णय के बाद अधिसूचना जारी होगी और अगर सबकुछ हाईकोर्ट के निर्देशानुसार हुआ तो पटना समेत पूरे बिहार को कई बड़ी परेशानियों से निजात का रास्ता भी दिख जाएगा।

अभी भी सवाल, किस हद तक बैन, किस तरह का कानून होगा

बिहार के शहरी क्षेत्रों में 25 अक्टूबर से और ग्रामीण इलाकों में 25 नवंबर से पॉलीथिन पर पूर्ण प्रतिबंध की बात कही गई। लेकिन, ‘अपना भारत’ की पड़ताल बता रही है कि गांधी जयंती तक बिहार सरकार के सारे विभाग ‘पूर्ण प्रतिबंध’ को लेकर स्पष्ट राय नहीं बना सके हैं। सरकार ने 01 अक्टूबर को पटना हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया है कि वह 25 अक्टूबर से शहरी और इसके एक महीने बाद ग्रामीण इलाकों में पॉलीथिन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देगी, लेकिन सरकारी विभागों में कहीं हर तरह के पॉली बैग तो कहीं 50 माइक्रॉन तक के पॉलीथिन बैग्स पर पूर्ण प्रतिबंध को लेकर चर्चा है। ऐसी चर्चा इसलिए भी है क्योंकि सरकार ने पॉलीथिन प्रतिबंधित राज्यों में अपनी टीम भेजकर जो सर्वे कराया, वहां पूर्ण का मतलब हर तरह के पॉलीथिन बैग से है। जबकि, बिहार के जमीनी हालात बता रहे कि एक झटके में ऐसा किए जाने से आम लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। व्यावहारिक रूप से यह इतना आसान नहीं है क्योंकि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 के तहत केंद्र सरकार की ओर से लगाए 50 माइक्रॉन के पॉलीथिन बैन को भी अब तक बिहार में पूर्णत: लागू नहीं कराया जा सका है।

विभागीय स्तर पर परेशानी की एक बड़ी वजह यह भी है कि माइक्रॉन के हिसाब से पॉलीथिन का वर्गीकरण करने की कोई स्पष्ट प्रणाली सरकार के पास नहीं है। यानी, अगर पूर्ण प्रतिबंध लागू नहीं हुआ तो कारोबारी या आम उपभोक्ता के पास पॉलीथिन मिलने की स्थिति में पकडऩे वाले सरकारी सिस्टम को मनमानी का अधिकार मिल जाएगा। ऐसे में हाईकोर्ट की सख्ती के बहाने ही सरकार में ऊपरी स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध की बात कही जा रही है। लेकिन, यहां भी एक पेंच फंस रहा है कि पूर्ण प्रतिबंध के हिसाब से जनता के बीच तैयारी नहीं हो सकी है। जनता के बीच पॉलीथिन जिस तरह प्रचलित हो चुका है, उसकी जगह लेने के लिए विकल्प सामने रखना बिहार सरकार के लिए चुनौती बन गया है। सरकार आने वाले दिनों में होर्डिंग और अखबारी विज्ञापनों के जरिए मुनादी कराने की तैयारी में तो जुटी है, लेकिन कई जगह पॉलीथिन का विकल्प सामने नहीं पाकर परेशान भी है। अगर कोई विकल्प नहीं निकला तो सरकार हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर सीधे-सीधे अपना निर्णय जनता पर लागू करा देगी।

किस हद तक बैन होगा, कानून की क्या सीमाएं होंगी, इस पर भी सरकारी विभागों के बीच पत्राचार का दौर ही चल रहा है। वन एवं पर्यावरण विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के साथ वित्त और विधि विभाग को भी इसमें अपने-अपने स्तर पर काम करना है। अगर पूर्ण प्रतिबंध लागू हुआ तो कारोबार करने वालों को पकडऩे की जिम्मेदारी किस पर होगी और उसे किस कानून के तहत किन स्थितियों में गिरफ्तार किया जा सकता है, इस पर स्पष्ट आदेश अधिसूचना की शक्ल में ही जारी हो सकता है। इसी तरह आम उपभोक्ता के पास पॉलीथिन बैग पकड़ों जाने की स्थिति में क्या किया जाएगा और घरों में पॉलीथिन बैग ढूंढऩे का अधिकार दिया जाए या नहीं, इसपर भी अधिसूचना में स्पष्ट नियम देना होगा।

बैन हो गया तो भविष्य में दिखेंगे बड़े फायदे

  • पॉलीथिन बंद हुआ तो नालियों-नालों में कचरा निस्तारण होगा सहज। नाला जाम का संकट होगा खत्म तो अगली बारिश से जलजमाव नहीं होगा बड़ा संकट।
  • खाद्य पदार्थों में इसके कारण होने वाला रासायनिक संक्रमण नहीं होगा। जन-स्वास्थ्य में होगा बड़ा सुधार।
  • पशुओं, खासकर गाय-भैंस के पेट में नहीं फंसेगा कचरे में लिपटा पॉलीथिन। इससे इन पशुओं की असामयिक मौत का सिलसिला भी एक हद तक होगा खत्म।
  • कचरा में आग लगने के कारण पॉलीथिन के धुएं से वायु प्रदूषण कम होगा।
  • वेस्ट मैनेजमेंट भी होगा आसान। जमीन की उर्वरक क्षमता में भी वक्त के साथ आएगा सुधार।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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