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Exclusive: ओ तेरी! यूपी में दवा का सालाना बजट इतना कम की हैरान रह जाएंगे आप

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Published on: 18 Aug 2017 5:15 PM IST
Exclusive: ओ तेरी! यूपी में दवा का सालाना बजट इतना कम की हैरान रह जाएंगे आप
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UP: दवा के मद का बजट इलाज में लापरवाही की कर रहा तस्दीक

अनुराग शुक्ला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मेडिकल कालेजों में अगर आप इलाज कराने आएं हैं तो आप को रामभरोसे ही इलाज मिल सकता है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि खुद यूपी सरकार के आंकड़े चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में दवा के नाम पर दिए जाने वाले बजट को देखें तो इस भयावह पहलू की पुरजोर तस्दीक भी हो जाती है।

दरअसल उत्तर प्रदेश के मेडिकल कालेज हों या अस्पताल, सभी जगह दवाइयों पर सालाना बजट इतना भी नहीं होता कि किसी एक बेड पर एक दिन भी इलाज हो सके। उत्तर प्रदेश में हालात कुछ ऐसे हैं मानो सेना में बंदूकें खरीदकर दे दी गईं पर उसमें गोलियां नहीं हैं। अगर गोरखपुर की बात की जाए तो मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के पीछे की समस्या की असली जड़ भी यही है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बढिय़ा भवन है। अच्छी मशीनें हैं, मरीजों के लिए बेड हैं परंतु इलाज के लिए सबसे जरूरी चीजें यानी दवा और सर्जिकल आइटम के लिए पैसा नहीं है।

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 955 बेड हैं, जिनमें से 150 बेड वेंटीलेटर युक्त हैं। सरकार द्वारा पूरे वर्ष के लिए इस मद में केवल 5 करोड़ 32 लाख रुपए ही आवंटित किए जाते हैं यानी अगर हर बेड पर एक मरीज हो तो उसे 365 दिन में आंकड़ा बनता है 3,48,575 रुपए। इस आंकड़े से अगर हम 5 करोड़ 32 करोड़ को भाग दें तो इस प्रकार प्रति बेड पर मात्र 152 रुपए 62 पैसे ही दिए जाते हैं।

गोरखपुर में साल में छह लाख मरीज देखे जाते हैं ओपीडी में

इसके अलावा गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन 2000 से अधिक मरीजों की ओपीडी होती है। साल भर में लगभग 300 दिन की ओपीडी होती है यानी पूरे साल में छह लाख मरीज देखे जाते हैं। यदि प्रति मरीज के इलाज पर आने वाला न्यूनतम खर्च 250 रुपये रखा जाए तो 15 करोड़ रुपये की राशि औषधि और रसायन मद में आवंटित की जानी होगी मगर ओपीडी की दवा और रसायन का खर्च भी 5 करोड़ 32 लाख रुपए में ही है।

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केजीएमयू की ओपीडी में 10 हजार लोग रोजाना

लखनऊ स्थित केजीएमयू यानी किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की बात की जाए तो आंकड़ों के लिहाज से यह सबसे अच्छी स्थिति में है। केजीएमयू में 5500 बेड हैं, लेकिन 365 दिन बेड की मारामारी रहती है। यहां का औषधीय बजट करीब 400 करोड़ रुपए का है। इस हिसाब से प्रतिदिन का आंकड़ा 1992 रुपए बैठता है,लेकिन यहां ओपीडी की संख्या प्रतिदिन करीब 10 हजार है। ऐसे में यह आंकड़ा महज मन बहलाने के लिए बेहतर है।

कानपुर मेडिकल कॉलेज का हाल सबसे बुरा

सबसे बुरी स्थिति तो कानपुर में है। यहां के मेडिकल कॉलेज में 1825 बेड हैं। 365 दिन तक मरीज भर्ती रहने पर दवा और जांच के केमिकल का कुल बजट है 5 करोड़ 28 लाख रुपए। इस हिसाब से प्रतिदिन 79.26 रुपए ही प्रति बेड पर दवाओं के लिए मिल पाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सामान्य परेशानी में भी मरीज के ऊपर 24 घंटे में कम से कम एक हजार रुपए का खर्च आता है। ऐसे में मरीज स्वयं ही अपनी दवाएं और किट बाजार से लेकर आएगा तभी उसका इलाज किया जा सकेगा।

लोहिया संस्थान थोड़ा बेहतर स्थिति में

प्रदेश की राजधानी में राममनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज इस लिहाज बेहतर है कि यहां 904 रुपए प्रति बेड का बजट है। लेकिन यहां ओपीडी में होने वाले मरीजों की भीड़ इस आंकड़े को बौना साबित करती है। अगर इस सामान्य गणित के हिसाब से देखें तो आजमगढ़ में प्रतिदिन बेड के लिए 164.38 रुपए, झांसी में प्रति बेड 156.55 रुपए, 1040 बेड वाले मेरठ में प्रति बेड महज 140.14 रुपए, इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में प्रति बेड 128.92 रुपये, आगरा मेडिकल कॉलेज में 112.28 रुपए प्रति बेड ही दवा का बजट आवंटित हैं।

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औषधि रसायन मद की कमी है गोरखपुर त्रासदी की जड़

सरकार बजट देते समय दवा, जांच किट, सर्जिकल आइटम, सफाई के लिए केमिकल, ऑक्सीजन, सिलेंडर, एंबू बैग सहित तमाम इलाज के लिए काम आने वाले चीजों के लिए अलग से पैसे देती है। मेडिकल की भाषा के अनुसार मद संख्या-39 के तहत यह प्रावधान किया जाता है। गोरखपुर, जहां इतनी भीषण त्रासदी हुई वहां प्रति बेड 152.62 रुपए का बजट है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में एक बेड पर दो से तीन मरीज रहते हैं। ऐसे में इलाज कैसे संभव है। संजय गांधी पीजीआई के अस्पताल प्रबंधन विभाग के प्रो. राजेश हर्षवर्धन के मुताबिक इस हाल में मरीज खुद दवा, सर्जिकल आइटम, जांच बाजार से कराने पर मजबूर होता है।

कितना है बाकी बड़े अस्पतालों का बजट

डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल को दवा और केमिकल मद में 11.56 करोड़ रुपए, बलरामपुर चिकित्सालय, लखनऊ को 17.51 करोड़ रुपए, टी.बी. सप्रू जिला चिकित्सालय, इलाहाबाद को 17.19 करोड़ रुपये तथा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) चिकित्सालय, लखनऊ को 17.34 करोड़ रुपए का आवंटन किया जाता है। जबकि मेडिकल कालेज, गोरखपुर को 5.32 करोड़ रुपए, इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज को 4.00 करोड़, झांसी मेडिकल कॉलेज को 4.00 करोड़, मेरठ मेडिकल कॉलेज को 5.32 करोड़, आगरा मेडिकल कॉलेज को 4.00 करोड़, कानपुर मेडिकल कॉलेज को 5.28 करोड़, आजमगढ़ मेडिकल कालेज को 3.00 करोड़ तथा बांदा मेडिकल कॉलेज को एक करोड़ रुपए आवंटित किए जाते हैं।

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज को औषधि एवं रसायन मद में पर्याप्त पैसा दिया जाता तो शायद ऑक्सीजन सप्लायर को पेमेंट किया जा सकता था और ऐसी स्थिति न बनती। मेडिकल कॉलेज में तो लोग सबसे बुरी स्थिति में ही आते हैं और अगर वे अपना इंतजाम न कर सके और सरकार के भरोसे रह गये तो उनकी जिंदगी रामभरोसे ही होगी। जैसा कि गोखपुर में देखने को मिला।

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जिला अस्पतालों की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं

प्रदेश के हर जिले के सरकारी अस्पतालों को मिला लिया जाए तो कुल बेड की संख्या 61,412 है। इसमें महिला अस्पताल के 5243 बेड शामिल हैं। यहां पर दवा और जांच के केमिकल मद में कुल पैसा है 516.91 करोड़ रुपए। यानी एक बेड पर कुल खर्च है 230.65 रुपए। इनमें बड़े और रसूखदार अस्पतालों का मद अगर हटा दिया जाए तो यह आंकड़ा 100 रुपए के आसपास होगा। यानी प्रति इनडोर मरीज पर हर दिन दवा, ऑक्सीजन, एम्बू बैग, जांचों के केमिकल आदि का खर्च सब 230 रुपए में ही निपटाना है। ओपीडी में आने वाले लाखों मरीजों को हर दिन दवा भी देनी है। वो खर्च इसमें नहीं जुड़ा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीज पर 24 घंटे में 8 से 12 हजार का खर्च लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई और लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में आता है। यहां पर जांच किट एचआरएफ सिस्टम से 40-50 फीसदी कम कीमत पर मरीजों को उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन मात्र 152.62 रुपए में मरीज का इलाज किया जाना कैसे संभव हो पायेगा। संजय गांधी पीजीआई की वेंटीलेटर यूनिट के प्रो. देवेंद्र गुप्ता कहते हैं कि वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीज में फिल्टर, ट्रेकीकार्डिया ट्यूब, सेंट्रल लाइन सहित तमाम सर्जिकल आइटम के साथ एंटी बायोटिक के अलावा मरीज की स्थिति जानने के लिए तमाम ब्लड केमेस्ट्री, ब्लड गैस, हिमैटोलॉजिकल जांचें करानी होती हैं। इसमें एक मरीज पर 24 घंटे में आठ से 15 हजार तक का खर्च आता है।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सामान्य परेशानी वाले सामान्य मरीज को भर्ती करने पर जांच, दवा, सिरिंज नीडिल, सलाइन आदि पर एक हजार रुपए का खर्च आता है। यही बात आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डा. पी.के. गुप्ता भी कहते हैं। उनके मुताबिक सामान्य बेड और सामान्य परेशानी में भी एक मरीज पर 24 घंटे में कम से एक हजार का खर्च आता है।

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सारी सरकारें दोषी

इस मामले पर सिर्फ एक नहीं सभी सरकारें दोषी हैं। यही कहानी अखिलेश राज में रही और यही कहानी अब योगी सरकार में जारी है। इस पूरे मामले पर संवेदनशीलता की बात कही जाती है, नारे दिए जाते हैं पर वास्तविकता यह है कि हर सरकार या फिर यूं कहें कि सत्ता का रवैया एक जैसा रहता है। बिल्डिंग मशीनों, दूसरे मदों में पैसे दिए जाते हैं पर जो इलाज की बुनियादी जरूरत है यानी दवा और इलाज के लिए जरूरी केमिकल, ऑक्सीजन आदि पर ध्यान नहीं दिया जाता। अब कौन समझाए कि अच्छी से अच्छी बंदूक भी बिना कारतूस के किसी काम की नहीं होती।

मेडिकल कॉलेज का नाम बेडों की संख्या औषधि मद में आवंटन प्रति बेड बजट (रु)

कानपुर मेडिकल कॉलेज 1825 5.28 करोड़ 79.26

आज़मगढ़ मेडिकल कॉलेज 500 4 करोड़ 164.38

बीआरडी मेडिकल कॉलेज 955 5.32 करोड़ 152.62

मेरठ मेडिकल कॉलेज 1040 5.32 करोड़ 140.14

इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज 850 4 करोड़ 128.92

आगरा मेडिकल कॉलेज 976 4 करोड़ 112.28

केजीएमयू 5500 400 करोड़ 1992

मेडिकल कालेज के 61412 516.91 करोड़ 230.65

अतिरिक्त सरकारी अस्पताल

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