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हे शिवराज ! बुंदेलखंड में गरीब के लिए रोटी और बेटी बनी मुसीबत, कहां हो तुम
भोपाल : नाम वंदना (परिवर्तित), उम्र 19 वर्ष, उसके लिए अपना और माता-पिता का जीवन पहाड़ सा लगने लगा है, क्योंकि बारिश नहीं होने के चलते फसल हुई नहीं और गांव में रोजी-रोटी का दूसरा कोई साधन नहीं है। पिता बिस्तर पर है, मां काम पर जाने से इसलिए डरती है कि बेटी घर में अकेली रहेगी तो कहीं कोई वारदात न हो जाए। यह कहानी है, बुंदेलखंड के एक गांव की।
मध्य प्रदेश के दमोह संसदीय क्षेत्र में आने वाले इस गांव की लड़की रचना दलित वर्ग से है। वह बताती है कि उसके पिता के दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया है, उनका ऑपरेशन होना है, लेकिन पैसे हैं नहीं, बारिश कम होने से पैदावार भी नहीं हुई, गांव में कोई काम भी नहीं है। मां काम पर जाने से कतराती है, इसके चलते परिवार के तीनों सदस्यों का जीवन मुसीबत भरा हो गया है।"
वंदना की बात पूरी होते ही उसके आसपास खड़ी महिलाएं कहने लगती हैं कि मां तो काम पर चली जाए, मगर बेटी की रखवाली कौन करेगा? पिता बिस्तर पर है, यही कारण है कि रचना की मां काम पर जाने से कतराती है। इन महिलाओं ने स्वीकारा कि ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवार की बहू-बेटियों से दबंग लोग छेड़छाड़ करते हैं। पीड़ित व्यक्ति चाहकर भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराता, क्योंकि बाद में थानों के चक्कर कौन काटेगा।
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सामाजिक कार्यकर्ता ममता जैन ने कहा, हर मां अपनी बेटी को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहती है, यह बात सिर्फ ग्रामीण इलाकों में नहीं, शहरी इलाकों और पढ़े लिखे वर्ग पर भी लागू होती है। कई बार महिलाओं को यह कहते सुनते हैं कि बेटी स्कूल से आ गई होगी, अकेली होगी, मैं घर जा रही हूं। इसी तरह की चिंता वंदना की मां को रहती होगी।"
बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा मानते हैं, "कमजोर वर्ग की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ आम बात है, क्योंकि गरीब व कमजोर वर्ग के पीड़ित की न तो सुनवाई है और न ही पुलिस कार्रवाई करती है। यही कारण है कि घटनाएं होती रहती हैं और वे चुपचाप सहते हैं। इस इलाके में गरीब तबका रोटी-पानी के लिए तो संघर्ष की ही रहा है, यह भी उतना ही सच है कि बेटियों की हिफाजत उसके लिए एक बड़ा मसला है।"
देश हो या मध्य प्रदेश, हर तरफ एक नारा गूंज रहा है- 'बेटी पढ़ेगी और आगे बढ़ेगी।' मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नारा दिया है कि 'बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे'। बेटी बचाने के तमाम सरकारी नारों के बावजूद बुंदेलखंड का सच कुछ और ही है।
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बने बुंदेलखंड में सूखा ने किसान और खेतिहर मजदूरों को तोड़कर रख दिया है। बड़े पैमाने पर पलायन का दौर जारी है। गांव के गांव खाली हो चले हैं। दोनों सरकारों ने अब तक राहत के ऐसे काम शुरू नहीं किए हैं, जिससे पलायन करने वालों को उनके ही गांव में काम उपलब्ध कराकर रोका जा सके। लोग इस उम्मीद में हैं कि चुनावी साल में शायद सरकार की नजर इस ओर भी घूमे।