TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

अंतत: जाके सिर मोर मुकुट, अब कोई पद, लाभ, मोह, माया की चर्चा नहीं करेगा

raghvendra
Published on: 28 Feb 2018 4:31 PM IST
अंतत: जाके सिर मोर मुकुट, अब कोई पद, लाभ, मोह, माया की चर्चा नहीं करेगा
X
उत्तराखंड: जानें, सरकार की हिमोत्थान परियोजना का लोगों को कैसे मिल रहा लाभ

आलोक अवस्थी

आखिरकार सारी बेचैनी खत्म हुई। कुंवर साहब चैंपियनशिप प्रतियोगिता के परिणामों से सिंगल लाइन परिणाम जो सामने आए उसने मीरा के पद की याद दिला दी है। ‘जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।’ अब कोई किसी प्रकार के पद, लाभ, मोह, माया आदि की चर्चा नहीं करेगा। पूरे भक्ति भाव और प्रेम रस की वर्षा से भीग कर केवल और केवल इसी पद का झूम झूम कर गान करेगा।

वाह लगता है मानो उत्तराखंड की इस पहाड़ी से लेकर उस पहाड़ी तक वृंदावन उतर आया है हर कमल छाप अपने सांवरे सलोने के प्यार में डूब कर पूरे भाव और श्रद्धा के साथ भक्ति काल के स्वर्णिम दौर में पहुंच जाएगा। टीएसआर (त्रिवेंद्र सिंह रावत) भवन मानो मंगल भवन अमंगल हारी की पावन भूमि में परिवर्तन हो गया है विश्वास की नई धारा की संचार सेवा में सभी जन खुद को कनेक्ट करने को आतुर प्रतीत न भी हों तो भी अभिनय करते जरूर दिखाई पड़ें ऐसा निर्देश है।

वृंदावन में रहना है तो राधे-राधे कहना है। इसी बीच हरिद्वार से टीएसआर के आधिकारिक प्रवक्ता ने गोस्वामी तुलसीदास को कोड करते हुए भय बिन होय न प्रीत को दोहराते हुए यह सूचना भी दी है कि हरिद्वार में श्रद्धा से विरत लोगों के लिए श्राद्ध का भी प्रबंध है। बलबीर रोड स्थित कमल मंडप राजगुरु आचार्य अजय जी के निर्देश पर विशेष दंडाधिकारी स्वामी नरेश बंसल जी हर खासो आम कमलिया की बड़ी ही बारीकी से पड़ताल कर रहे हैं। भाव के साथ-साथ भंगिमाओं पर भी विशेष नजर है, उच्चारण की शुद्धता पर भी काम भरे जा रहे हैं। खासकर गुरुकुल में नए विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान देने का निर्देश है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुराने संस्कारी विद्यार्थी नए साथियों के संपर्क में आकर अमर्यादित आचरण के प्रभाव में ना आ जाएं।

उत्तराखंड को देवभूमि अंतत: बनाकर ही रहना है। नियति को फैसले को चुनौती कौन दे सकता है। जिन जिनकी नीयत पर जरा भी शक होगी उन को पुन: व्रत और उपवास के माध्यम से मूल धारा में लाने का प्रयास होगा। सभी भक्तजनों से आग्रह है कि व्यर्थ उपहास का कारण न बनें। लीला पुरुष सबका भला करेंगे। नेकी कर और दरिया में डाल के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य ही नहीं, आप सबके भले के लिए रचा गया है। मोह माया से जितना दूर रहेंगे उतना ही मन कम विचलित रहेगा। सबका मालिक एक। श्रद्धा और सबूरी ही एकमात्र परमतत्व की कृपा तक पहुंचने का यह वाक्य प्रात: स्मरण से लेकर रात्रि विश्राम तक ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी..’ से लेकर ‘स्वाहा इदं नम:’ का जाप करते रहें। इसी में सब का भला है।

पाणिग्रहण संस्कार में दूल्हा एक ही होता है और दावत उसी के नाम पर ही होती है। बाकी शेष लोग बाराती की श्रेणी में आते हैं। अपनी अपनी आयु रिश्ते के अनुसार ही व्यवहार करना और पाना होता है। कुछ वाचल रिश्तेदार भी होते हैं जो मौके का फायदा उठाना चाहते हैं किंतु उनको भी समझना चाहिए कि नागिन डांस केवल थोड़ी देर तक ही अच्छा लगता है और बाद में यह देश है वीर जवानों पर ही ठुमके लगाने पड़ते हैं। वरना डीजे की चमकती रोशनी में अंखियों से गोली मारे भी सुना ही दिया जाता है। समझदारों को इशारा ही काफी है। जाड़ा जा चुका है ज्यादा टोपी लगाकर एक दूसरे को टोपी न पहनाएं। फागुन अच्छे-अच्छों के गर्म कपड़े उतार देता है। बदलते मौसम के बदलते तेवर को समझने का खुद भी प्रयास करें और चाहने वालों को ही समझाएं और फिर ना समझ में आए तो त्रिदेव के मशहूर गाने बजर ने किया है इशारा घड़ी भर का है खेल सारा.. तमाशाई तमाशा ही बन जाए.. न खुद तमाशा.. बदल जाएगा यह नजारा। ओए..ओए.. को गाओ.. मीरा के भाव गीत के साथ जोडक़र अब ..जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई.. वरना प्रभु आपकी रक्षा करें।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story