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President Election: राष्ट्रपति के रूप में किसका कार्यकाल रहा सबसे छोटा, 2 साल बाद ही फिर कराना पड़ा था चुनाव
देश के राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर जाकिर हुसैन का सबसे छोटा कार्यकाल रहा है, जिसमें उन्होंने 1 वर्ष 11 महीने और 20 दिन कार्य किया है।
President Election: देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिए सियासी गतिविधियां चरम पर पहुंच चुकी हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता अपने मतों को सहेजने की कोशिश में जोर-शोर से जुटे हुए हैं।। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए कल मतदान होना है। रामनाथ कोविंद का पांच वर्ष का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त होने वाला है।
अभी तक देश के अधिकांश राष्ट्रपति अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब रहे हैं मगर यह जानना भी काफी दिलचस्प है कि किस राष्ट्रपति का कार्यकाल सबसे छोटा रहा। राष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल 1 वर्ष 11 महीने और 20 दिन का ही रहा और इस पद पर सबसे कम दिनों तक रहने वाले राष्ट्रपति थे डॉक्टर जाकिर हुसैन।
1967 में राष्ट्रपति बने थे डॉ. जाकिर हुसैन
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद (President Dr Rajendra Prasad) ने दो कार्यकाल तक काम किया था और उनका कार्यकाल 1962 में समाप्त हुआ था। डॉ राजेंद्र प्रसाद (President Dr Rajendra Prasad) के बाद महान शिक्षाविद और प्रकांड विद्वान डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को देश का राष्ट्रपति चुना गया था। डॉ राधाकृष्णन का कार्यकाल 1967 में समाप्त हुआ था। डॉक्टर राधाकृष्णन के बाद डॉ जाकिर हुसैन को 1967 में देश का नया राष्ट्रपति चुना गया। इससे पहले डॉ जाकिर हुसैन (Dr. Zakir Hussain) 1957 से 1962 तक बिहार के राज्यपाल और 1962 से 1967 तक देश के उपराष्ट्रपति के रूप में काम कर चुके थे।
डॉ जाकिर हुसैन खुद बहुत बड़े विद्वान थे और देश में शिक्षा की अलख जगाने के पक्षधर थे। वे भारत में राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे। हैदराबाद में प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने 1926 में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी।
शिक्षा के क्षेत्र में किया बड़ा काम
डॉ जाकिर हुसैन (Dr. Zakir Hussain) के जीवन पर महात्मा गांधी का खासा असर था। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने कक्षाओं का बहिष्कार भी किया था। आज देश की महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में शामिल जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना भी डॉक्टर जाकिर हुसैन ने ही की थी। पहले इसकी बुनियाद अलीगढ़ में बहुत छोटी सी जगह में 29 अक्टूबर 1920 को रखी गई थी। इसके बाद डॉ जाकिर हुसैन ने दो वर्ष तक यहां अध्यापक के रूप में काम भी किया। बाद में वे 1922 में उच्च अध्ययन के लिए जर्मनी चले गए और जामिया मिलिया पर संकट आ गया।
तीन साल बाद डॉक्टरेट की उपाधि लेकर डॉक्टर जाकिर हुसैन के लौटने पर जामिया मिलिया की हालत काफी खराब हो चुकी थी। यह स्थिति देखकर डॉक्टर जाकिर हुसैन काफी दुखी हुए और बाद में गांधी जी की सलाह पर जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली ले आए। दिल्ली में कड़ी मेहनत और लगन के साथ उन्होंने जामिया को स्थापित किया और 29 साल की उम्र में जामिया के कुलपति भी बने। उनके प्रयासों के कारण ही बाद के दिनों में यह विश्वविद्यालय काफी बड़ा रूप ले सका।
राष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल
डॉ जाकिर हुसैन 1952 में राज्यसभा के सदस्य बने थे और बाद में बिहार के राज्यपाल और देश के उपराष्ट्रपति भी रहे। देश का राष्ट्रपति बनने से पहले 1963 में उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया था। उन्होंने 13 मई 1967 को देश के राष्ट्रपति का पद संभाला था मगर वे ज्यादा दिनों तक इस पद पर नहीं रह सके।
कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। डॉ जाकिर हुसैन ने देश के राष्ट्रपति के रूप में सिर्फ 1 वर्ष 11 माह और 20 दिन ही काम किया। यदि देश के सभी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल को देखा जाए तो डॉक्टर जाकिर हुसैन का कार्यकाल सबसे छोटा था।
निधन के बाद दो कार्यवाहक राष्ट्रपति
डॉ जाकिर हुसैन के निधन के समय वी वी गिरि देश के उपराष्ट्रपति थे। उन्होंने 3 मई 1969 को देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति का कार्य संभाला। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कुछ समय तक कार्य करने के बाद वी वी गिरि ने नए राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा लेने के लिए 20 जुलाई 1969 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में 2 महीने और 17 दिनों तक काम किया था। वी वी गिरि देश के पहले ऐसे उपराष्ट्रपति थे जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में काम किया।
वी वी गिरि के कार्यवाहक राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देने के बाद राष्ट्रपति का पद एक बार फिर रिक्त हो गया। उस समय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्लाह थे। वी वी गिरि के इस्तीफा देने के बाद 20 जुलाई 1969 को मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। कुछ समय बाद हुए राष्ट्रपति के चुनाव में वीवी गिरि विजयी हुए और उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रपति पद की कमान संभाली।