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President-VP Election: खुल गई विपक्षी एकता की कलई, 2024 की सियासी जंग हुई और मुश्किल

President and Vice President Election: राष्ट्रपति चुनाव और 6 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी दलों के रुख से साफ हो गया, कि उनकी आगे की राह काफी मुश्किल है।

Anshuman Tiwari
Published on: 22 July 2022 1:07 PM IST
President and Vice President Election UPA
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President and Vice President Election UPA (image credit social media)

President and Vice President Election: राष्ट्रपति चुनाव और 6 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी दलों के रुख से साफ हो गया है कि उनकी आगे की राह काफी मुश्किल है। एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता की कलई पूरी तरह खुल गई है। माना जा रहा है कि 2024 की सियासी जंग में एनडीए को चुनौती देना उनके लिए काफी मुश्किल होगा। राष्ट्रपति चुनाव में दस गैर एनडीए दलों के समर्थन और विपक्षी सांसदों और विधायकों की भारी क्रास वोटिंग ने द्रौपदी मुर्मू की जीत के अंतर को और बढ़ा दिया।

दूसरी ओर 15 दिनों बाद होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष के उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को बड़ा झटका देते हुए मतदान से दूर रहने की घोषणा कर दी है। उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता पूरी तरह तार-तार हो गई है। एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ से छत्तीस का रिश्ता होने के बावजूद ममता ने उनके खिलाफ मतदान का ऐलान नहीं किया। सियासी जानकारों का मानना है कि विपक्षी दलों की यह खींचतान आने वाले दिनों में एनडीए के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है।

बड़ा हो सकता है एनडीए का कुनबा

राष्ट्रपति चुनाव में आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उतारने का फैसला विपक्षी एकता में सेंध लगाने में काफी मददगार साबित हुआ। मुर्मू एनडीए के घटक दलों के अलावा 10 क्षेत्रीय दलों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहीं। भाजपा के इस दांव का ही नतीजा था कि बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, बसपा, टीडीपी एआईडीएमके, जदएस, शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल और सुभासपा ने मुर्मू को ही समर्थन दिया।

17 सांसदों और विभिन्न राज्यों के करीब 126 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके रही सही कसर भी पूरी कर दी। इसका नतीजा यह दिखा कि एनडीए उम्मीदवार मुर्मू 64 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल करने में कामयाब रहीं जबकि यशवंत सिन्हा करीब 36 फ़ीसदी वोट ही पा सके। इस चुनाव से एक बड़ा संदेश यह भी निकला है कि आने वाले दिनों में एनडीए का कुनबा और बड़ा हो सकता है। महाराष्ट्र में भाजपा ने शिंदे गुट को खड़ा करके शिवसेना के अस्तित्व पर पहले ही सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाकर एनडीए के कुनबे से बाहर जाने का फैसला किया था।

पूरी चुनाव प्रक्रिया में नहीं दिखी एकता

दरअसल राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया से लेकर मतदान तक विपक्षी एकजुटता कहीं नहीं दिखी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार चुनने की सबसे पहले पहल टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी ने की थी मगर उस बैठक में किसी नाम पर सहमति नहीं बन सकी। बाद में एनसीपी मुखिया शरद पवार के घर आयोजित बैठक में यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति बनी।

विपक्ष की मजबूरी को इस बात से ही समझा जा सकता है कि वह ऐसे चेहरे को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने पर मजबूर हुआ जिसका लंबा सियासी जीवन भाजपा में ही बीता है। ममता राष्ट्रपति पद के लिए शरद पवार उम्मीदवार बनाने की इच्छुक थीं मगर सियासत के माहिर खिलाड़ी पवार हार तय होने के कारण चुनावी अखाड़े में कूदने के लिए तैयार नहीं हुए। ममता भीतर ही भीतर इसे लेकर नाराज भी बताई जा रही हैं।

विपक्ष की चुनौतियां और बढ़ीं

मुर्मू की जीत के साथ भाजपा ने न केवल विपक्ष की एकता को बड़ा झटका दिया है बल्कि 2024 के लिए अपनी चुनावी संभावनाओं को भी मजबूत बना लिया है। लोकसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं जबकि देशभर की विधानसभाओं में 608 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

पूर्व के चुनावों में इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी भाजपा ने अब इन सीटों पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं और इसीलिए मुर्मू की जीत के बाद आदिवासी बहुल 1.35 लाख गांव में बड़ा जश्न मनाने की तैयारी है। सियासी जानकारों का मानना है कि मुर्मू की जीत ने भाजपा को नई ताकत दी है और इस जीत के बाद विपक्ष की चुनौतियां और बढ़ गई हैं।

रही सही कसर ममता ने कर दी पूरी

अब बात यदि उपराष्ट्रपति चुनाव की की जाए तो तृणमूल कांग्रेस ने मतदान से दूर रहने का फैसला लेकर विपक्षी एकता को बड़ा झटका दिया है। ममता के इस फैसले पर विपक्षी नेता भी हैरान हैं। संसद के दोनों सदनों में तृणमूल कांग्रेस बड़ी ताकत है मगर अब इस पार्टी के 33 सांसदों के मतदान से दूर रहने के कारण विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को बड़ा झटका लगा है। उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर ममता पहले अपने पत्ते नहीं खोल रही थीं मगर गुरुवार को ममता के भतीजे और पार्टी के नेता अभिषेक बनर्जी ने साफ कर दिया कि टीएमसी इस चुनाव से दूर रहेगी।

उनका कहना था कि विपक्ष के उम्मीदवार के चयन में हमारी अनदेखी की गई और इस कारण हमने मतदान से अलग रहने का फैसला किया है। मजे की बात यह है कि एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने ममता से खुद मार्गरेट अल्वा को समर्थन देने की अपील की थी मगर ममता ने इस अपील को दरकिनार करते हुए चुनाव से दूर रहने का बड़ा फैसला ले लिया। ममता के इस फैसले से साफ हो गया है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष की एकता पूरी तरह तार-तार हो गई है। ऐसे में 2024 की सियासी जंग के लिए विपक्ष की राह और मुश्किलों भरी हो गई है।



Prashant Dixit

Prashant Dixit

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