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Presidential Election 2022: आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति के पद के लिए क्यों आगे, जानिए इनके बारे में
Presidential Election 2022: गुरुवार यानि आज दोपहर केंद्रीय चुनाव आयोग में तारीखों की घोषणा की। उसके बाद से ट्वीटर पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ट्रेंड कर रहा है।
Presidential Election 2022: देश में राष्ट्रपति चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। गुरूवार यानि आज दोपहर केंद्रीय चुनाव आयोग ने जैसे ही चुनाव की तारीखों की घोषणा की, ट्वीटर पर कुछ नाम राष्ट्रपति पद के लिए ट्रेंड करने लगे। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम है केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का। आरिफ मोहम्मद खान (Governor Arif Mohammad Khan) को मुस्लिम समाज में एक प्रगतिशील सोच रखने वाले व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है। हालांकि, इसके कारण वह कट्टरपंथी और बीजेपी विरोधी पार्टियों के निशाने पर भी रहे हैं।
ट्वीटर यूजर्स पीएम मोदी को इन्हें देश का अगला राष्ट्रपति बनाने का सुझाव दे रहे हैं। कुछ तो इन्हें पीएम मोदी (PM Modi) का कलाम तक कर रहे हैं। सोशल मीडिया में राष्ट्रपति के लिए केरल के राज्यपाल का नाम सबसे अधिक ट्रेंड कर रहा है। इस बीच राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या अपने फैसलों से हमेशा देश को चौंकाने वाले पीएम मोदी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी ऐसा कर सकते हैं। आरिफ मोहम्मद खान को केरल जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाना, इसबात को स्पष्ट करता है कि पीएम को उन पर भरोसा है। भारतीय राजनीति में आरिफ मोहम्मद खान की अपनी एक अलग पहचान और शख्सियत है। पूर्व पीएम राजीव गांधी से मतभेद के कारण अपनी कुर्सी को ठोकर मारने वाले खान के बारे में आपको जानना चाहिए।
आरिफ मोहम्मद खान का आरंभिक जीवन
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी पहुंचे। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आरिफ मोहम्मद खान ने चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस की सदस्यता ले ली। उस दौरान प्रदेश और देश में कांग्रेस पार्टी का बोलबाला हुआ करता था। कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने पहली बार कानपुर सीट से 1980 और 1984 में बहराइच सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था। दोनों ही बार वो जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। 1984 में जीतने के बाद राजीव गांधी मंत्रिमंडल में शामिल भी हुए।
राजीव गांधी से मतभेद
यह वह दौर था जब देश में शाह बानो केस चल रहा था और इसे लेकर राजनीति गरमाई हुई थी। आरिफ मोहम्मद खान मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के समर्थन में मजबूती से खड़े थे और तीन तालाक प्रथा की तीखी आलोचना करते थे। मगर सियासत और मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका इसे अपने धर्म में हस्तक्षेप की तरह देख रहा था और इन विचारों के विरोध में था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं के दवाब में आकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल संसद में पास करवा दिया। खान ने इससे पहले संसद में तीन तालाक प्रथा के खिलाफ जोरदार भाषण दिया था और अपनी सरकार का पक्ष मजबूती से रखा था। लेकिन राजीव गांधी के इस यू – टर्न ने उन्हें नाराज कर दिया और वह सरकार से बाहर हो गए।
अन्य दलों में सफर
कांग्रेस (Congress) छोड़ने के बाद आरिफ मोहम्मद खान जनता दल में शामिल हो गए क्योंकि उस दौरान देश में वीपी सिंह की हवा चल रही थी। जनता दल के टिकट पर उन्होंने 1989 में चुनाव भी लड़ा और जीते भी। इसके बाद उन्होंने केंद्र में नागरिक उडड्यन मंत्री के तौर पर काम भी किया। लेकिन जल्द ही उनका जनता दल से भी मोहभंग हो गया और वह फिर मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी में चले गए। 1998 में उन्होंने बसपा के टिकट पर संसद का सफर तय किया। 2004 आते – आते खान बीजेपी के करीब आ गए और पार्टी में भी शामिल हुए।
बीजेपी (BJP) ने भी उन्हें हाथों – हाथ लेते हुए कैसरगंज से लोकसभा चुनाव में उतारा। लेकिन इसबार आरिफ मोहम्मद खान अपनी सीट नहीं निकाल पाए। बीजेपी भी केंद्र की सत्ता से बाहर हो चुकी थी। 2007 आते – आते उनका मन बीजेपी से भी भर गया था और पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाकर वह बाहर हो गए। उसके बाद एक तरह से उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।
पीएम मोदी से नजदीकी
2014 में पीएम मोदी (PM Modi) के सत्ता में आने के बाद उनकी नजदीकियां बीजेपी से एकबार फिर बढ़ने लगी। कहा जाता है कि तीन तालाक कानून को मंजिल तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही है। पीएम मोदी के साथ उनका रिश्ता काफी अच्छा बताया जाता है। पीएम लोकसभा में आरिफ मोहम्मद खान का नाम न लेते हुए कांग्रेस को घेर भी चुके हैं। बीजेपी के साथ वैचारिक नजदीकी के कारण ही उन्हें 26 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। जहां बीजेपी लंबे समय से अपनी सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या वाकई में आरिफ मोहम्मद खान पीएम मोदी के अब्दुल कलाम बनेंगें।