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फिर दोहराया इतिहास, 30 साल बाद पहली बार प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की घेराबंदी

कहते हैं इतिहास कई बार अपने को दोहराता है और प्रधानमंत्री (पीएम) पद पर बैठे किसी व्यक्ति को अगर सीधे भ्रष्टाचार के मामले में लपेटा गया है तो यह वाकया भारत में 30 साल के लंबे अंतराल के बाद हो रहा है।

tiwarishalini
Published on: 21 Dec 2016 3:19 PM GMT
फिर दोहराया इतिहास, 30 साल बाद पहली बार प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की घेराबंदी
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नई दिल्ली: कहते हैं इतिहास कई बार अपने को दोहराता है और प्रधानमंत्री (पीएम) पद पर बैठे किसी व्यक्ति को अगर सीधे भ्रष्टाचार के मामले में लपेटा गया है तो यह वाकया भारत में 30 साल के लंबे अंतराल के बाद हो रहा है।

बोफोर्स तोप सौदे में दलाली दिए जाने के मामले में 1986 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने राजीव गांधी की केबिनेट से इस्तीफा देकर कांग्रेस से विद्रोह किया था तब देश में एक बड़ा सियासी घमासान मचा था। हालांकि इस बार लोगों को बड़ा असर देखने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बिड़ला समूह और सहारा से भ्रष्टाचार के तौर पर 2013 में भारी रकम लेने के आरोपों से पीएम मोदी को घेर दिया तो लगता नहीं कि देश में बोफोर्स जैसा तूफान में मचने की नौबत आएगी।

राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि जब 30 साल पहले बोफोर्स मामला उछला था तो उस वक्त राजीव गांधी पर आरोप लगाने वाले वीपी सिंह और बाकी विपक्षी नेताओं की जनता में छवि दूसरों से बहुत अधिक थी।

तीस सालों में इस बार अंतर सिर्फ इतना है कि उस दौर में बोफोर्स मामले में घिरी कांग्रेस ने ही इस बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे बीजेपी शासन के पीएम को भ्रष्टाचार के मामले में घेरा है।

बता दें कि बोफोर्स आपराधिक मामले की सीबीआई ने जो चार्ज सीट तैयार की थी, उसमें 1982 से 1987 के बीच के घटनाक्रमों का ब्यौरा देते हुए बताया गया था कि कैसे सरकारी अधिकारियों ने इटली मूल के व्यवसाई ओटावियो क्वात्रोच्चि, हथियारों के दलाल विन चढ्डा समेत कई लोगों ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के साथ एक षड्यंत्र रचकर भारत सरकार ने बोफोर्स तोपों के सौदे की डील करवाई थी।

यह अलग बात है बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के मुद्दे को उछालकर सत्ता हासिल करने वाले वीपी सिंह ने सत्ता से हटने के कई साल बाद सफाई दी थी कि उन्होंने कभी भी तत्कालीन पीएम राजीव गांधी या उनके परिवार के किसी सदस्य को रिश्वत लेने के मामले में आरोप नहीं लगाया था।

राहुल गांधी ने पीएम पर गुजरात में मोदी के गढ़ में पब्लिक मीटिंग में आरोप सार्वजनिक करके पिछले संसद सत्र से अब तक कांग्रेस और विपक्ष की पूरी रणनीति को नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है।

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हालांकि इन्हीं आरोपों पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में पिछले महीने दस्तावेज रख चुके हैं। कांग्रेस की राजनीति भी राहुल गांधी के बुधवार को किए गए धमाके के बाद कसौटी पर है।

सवाल यह है कि कांग्रेस को राहुल के इस खुलासे के बाद क्या राजनीतिक लाभ हो पाएगा। इसका नतीजा निकालने के लिए कांग्रेस को ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा।

यूपी, पंजाब और उत्तराखंड समेत पांच प्रदेशों के चुनावों में अगर राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी इस मामले को बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब नहीं हो पाए और बीजेपी को मतदाता इन चुनावों में नकारने से इंकार कर दें तो ऐसी सूरत में मोदी पर रिश्वत लेने के आरोपों को लोग गंभीरता से नहीं लेंगे।

जाहिर है कि बीजेपी प्रवक्ता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया है कि मोदी की छवि धूमिल करने वालों को जनता चुनावों में नकार चुकी है।

साफ है कि बीजेपी अब बिड़ला और सहारा से करोड़ों की रकम लिए जाने के मामले की सच्चाई में जाने के बजाए आरोपों को चुनावी जीत से जोड़ रही है। गौरतलब है कि गुजरात का मेहसाणा जोकि किसान बहुल माना जाता है, वहां हाल में नोटबंदी से प्रभावित किसानों ने अपनी टमाटर और दूसरी फसलें खेतों में सड़ने के लिए छोड़ दीं क्योंकि आढ़तियों के पास उनका पैदा किया हुआ टमाटर आदि खरीदने के लिए नकदी नहीं थी। पाटीदार आंदोलन को भी मेहसाणा का बड़ा गढ़ कहा जाता है।

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