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Protect Farms From Chemical Fertilizers : खेतों को रासायनिक खादों से बचायें

रासायनिक उर्वरकों के लगातार बढ़ते प्रयोग ने आदमी के पेट तो भरे पर सेहत ख़राब कर के रख दी, इसलिए खेतों को रासायनिक खादों से बचाएं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 20 Sep 2022 10:11 AM GMT
खेतों को रासायनिक खादों से बचायें
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खेतों को रासायनिक खादों से बचायें (प्रतीकात्मक तस्वीर) 

Protect Farms From Chemical Fertilizers : हरित क्रांति ने देश को खाद्यान्न के मामले में भले ही आत्म निर्भर बनाया। रासायनिक उर्वरकों के लगातार बढ़ते प्रयोग ने आदमी के पेट तो भरे पर सेहत ख़राब कर के रख दी। उपज को बरकरार रखने और बढ़ाने के लिए हम ने उर्वरकों की मात्रा बढ़ाई। अपने मृदा की जाँच किये बिना उसमें मन चाहे उर्वरक डाले।

पहले किसान अपने खेतों में चक्रीय खेती करते थे। अब लाभकारी खेती करने लगे हैं। चक्रीय खेती में अलग अलग उपज से ही खेत की माटी को अपनी ज़रूरत के हिसाब से खनिज मिल ज़ाया करते थे। इसी के साथ खेत को दो तीन फसल के बाद एक फसल के काल खंड तक के लिए परती छोड़ने का भी चलन था। जिसके चलते माटी खुद से ही ज़रूरत भर की मज़बूत हो ज़ाया करती थी।

1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते थे। जो अब बढ़कर 310 लाख टन हो गया है। इसमें 70 लाख टन विदेशों से आयात करना पड़ता है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा द्वारा 5 अगस्त को लोकसभा को दिए गए एक लिखित उत्तर के अनुसार, चार उर्वरकों की कुल आवश्यकता - यूरिया, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश), एनपीकेएस (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) - देश में 2021-22 में 2017-18 में 528.86 लाख मीट्रिक टन से 21 प्रतिशत बढ़कर 640.27 लाख मीट्रिक टन हो गई। अधिकतम वृद्धि- 25.44 प्रतिशत- डीएपी की आवश्यकता में दर्ज की गई है। यह 2017-18 में 98.77 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2021-22 में 123.9 हो गई। देश में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक उर्वरक यूरिया ने पिछले पांच वर्षों में 19.64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की - 2017-18 में 298 एलएमटी से 2021-22 में 356.53 हो गई।

निश्चित ही बढ़ रहे रासायनिक उर्वरक के इस्तमाल से पैदावार भी बढ़ी है, लेकिन खेत व खेती के साथ पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मिटटी की उर्वरा शक्ति क्षीण होने के साथ ही मिट्टी क्षारीय होने लगी। नतीजतन, पैदावार घटने की भी शिकायत मिलने लगी है। यही नहीं, यूरिया व डीएपी जैसे उर्वरकों के अधिकाधिक इस्तेमाल से मिट्टी से प्राकृतिक तत्व लोप हो रहे हैं। जिससे मिट्टी के कणों में पानी संग्रह की क्षमता कम होने लगी। परिणामस्वरूप अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ने लगी। रासायनिक उर्वरकों से होने वाले कुछ नुकसानों में जलमार्ग प्रदूषण, फसलों को रासायनिक जलन, वायु प्रदूषण में वृद्धि, मिट्टी का अम्लीकरण और मिट्टी के खनिज की कमी शामिल हैं। रासायनिक उर्वरकों के असमान इस्तेमाल से वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने की रिपोर्ट सामने आई। यूरिया के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैस, नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत को भी नुक़सान पहुंच रहा है। कीटनाशकों के इस्तमाल ने खेतों से किसानों के मित्र जीव कहे जाने वाले कीटों को भी गायब कर दिया। ये जीव जैविक क्रियाओं द्वारा मिट्टी को उर्वरा शक्ति बनाये रखने में मददगार होते है।

पर हमने इन सब की प्रतिपूर्ति के लिए रासायनिक उर्वरकों की मात्रा बढ़ाई। उर्वरकों की बढ़ती मात्रा के चलते खेती की लागत बढ़ने लगी। तब हमारा ध्यान गोबर की खाद की ओर गया। लेकिन जानवरों की लगातार घटती संख्या के चलते इसे ज़मीन पर नहीं उतरा जा सका। ऐसे में खेतिहरों का सामने रासायनिक उर्वरकों के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। पर इनसे होने वाली बीमारियों ने आदमी को इतना डरा रखा था कि जैविक उपज वाले खाद्य पदार्थों का एक बड़ा और महंगा बाज़ार बन गया। पर यह इतना महँगा है कि मुट्ठी भर धन कुबेरों तक ही सीमित है।

इन सब समस्याओं से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने की योजना पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। इस योजना का नाम - पीएम प्रणाम (प्रोमोशन ऑफ अल्टरनेटिव न्यूट्रिएंट्स फ़ॉर एग्रीकल्चर मैनेजमेंट) है। योजना का उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी का बोझ कम करना है, जो 2022-23 में 2.25 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। पिछले साल के आंकड़े से ये 39 प्रतिशत अधिक होगा। यह पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में समग्र उर्वरक आवश्यकता में तेज वृद्धि को देखते हुए महत्व रखता है।

बीते 7 सितंबर को आयोजित रबी अभियान के लिए कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने योजना का विवरण साझा किया।

नई योजना का कोई अलग बजट नहीं होगा। इसे उर्वरक विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के तहत मौजूदा उर्वरक सब्सिडी की बचत के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा। सब्सिडी बचत का 50 फीसदी पैसा बचाने वाले राज्य को अनुदान के तौर पर दिया जाएगा। योजना के तहत प्रदान किए गए अनुदान का 70 प्रतिशत गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर वैकल्पिक उर्वरकों और वैकल्पिक उर्वरक उत्पादन इकाइयों को तकनीकी अपनाने से संबंधित संपत्ति निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। शेष 30 प्रतिशत अनुदान राशि का उपयोग उन किसानों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों को पुरस्कृत करने और प्रोत्साहित करने के लिए किया जा सकता है, जो उर्वरक उपयोग में कमी और जागरूकता पैदा करने में शामिल हैं। एक वर्ष में यूरिया में एक राज्य की वृद्धि या कमी की तुलना पिछले तीन वर्षों के दौरान यूरिया की औसत खपत से की जाएगी।

इस उद्देश्य के लिए, उर्वरक मंत्रालय के डैशबोर्ड, आईएफएमएस (एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली) पर उपलब्ध डेटा का उपयोग किया जाएगा। आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 2020-21 में उर्वरक सब्सिडी पर वास्तविक खर्च 1.27 लाख करोड़ रुपये था। केंद्रीय बजट 2021-22 में, सरकार ने 79,530 करोड़ रुपये की राशि का बजट रखा, जो संशोधित अनुमान में बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपये हो गया। हालांकि, उर्वरक सब्सिडी का अंतिम आंकड़ा 2021-22 में 1.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने 1.05 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। उर्वरक मंत्री ने कहा है कि इस साल उर्वरक सब्सिडी का आंकड़ा 2.25 लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है।

सरकार को केवल सब्सिडी की चिंता नहीं है। उसकी चिंता इन रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने की है। कहा जाता है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पेट की तमाम बीमारियों का आदमी शिकार हो रहा है। कैंसर के बेलगाम पसरने के कारणों में भी रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग को माना जाता है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2019 के दरम्यान भारत में कैंसर के मामलों में औसत वार्षिक दर 1.1-2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पेपर से पता चलता है कि इसी अवधि में देश में कैंसर से होने वाली मौतों में भी औसतन 0.1-1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

30 दिसंबर, 2021 को जामा पत्रिका में प्रकाशित वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) के विश्लेषण के अनुसार, कैंसर विकास दर वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है।एक अन्य अध्ययन के अनुमानों से पता चलता है कि 2020 में भारत में कम से कम 1,392,179 लोगों को कैंसर था। इन सबसे बचने का इकलौता रास्ता कीटनाशकों व उर्वरकों से तौबा के साथ ही मिलावट से मुक्ति है। ( दैनिक पूर्वोदय से साभार।)

Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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