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भूल गए शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की विरासत को
दुर्गेश पार्थसारथी
नवांशहर : पंजाब की विरासत व सियासत दोनों ही शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन विडंबना यह है कि महाराजा के नाम पर राजनीति करने वाले सूबे के सियासतदान उन्हीं को बिसराए बैठे हैं। यहां के राजनीतिक रहनुमा यह जताने में जुटे रहते हैं कि उन्होंने महाराजा की समृद्ध विरासत को सहेजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
अकाली-भाजपा सरकार ने भी अपने शासनकाल के दौरान बड़े-बड़े वादे किए मगर हकीकत की जमीन पर कुछ नहीं किया। सूबे में कांग्रेस की सरकार बने भी कई महीने हो चुके हैं मगर उस दिशा में अभी तक एक कदम भी नहीं बढ़ाया गया है। यहां हम बात कर रहे हैं शेर-ए-पंजाब के स्वर्णिम इतिहास के एक ऐसे अध्याय की जिससे वाकिफ होना पंजाब व पंजाब के लोगों के लिए जरूरी है मगर सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रही है।
पंजाब के जिला शहीद भगत सिंह नगर की सीमा पर सतलुज दरिया के किनारे बसे गांव आसरों के पास शिवालिक की पहाड़ी पर सरकार-ए-खालसा की निगरानी चौकी है। यह चौकी करीब 186 साल पहले सिख-एंग्लो इतिहास की गवाह रही है। यह चौकी 26 अक्टूबर 1831 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक और महाराजा रणजीत सिंह के बीच हुए समझौते के तहत स्थापित की गई थी।
समझौते के अनुसार सतलुज के उस पार यानी रोपड़, लुधियाना, चंडीगढ़, अंबाला सहित अन्य भूभाग अंग्रेजी हुकूमत के अधीन रहेंगे जबकि सतलुज के इस पार यानी नवाशहर, जालंधर और अमृतसर से लेकर अफगान तक का बड़ा भूभाग महाराजा रणजीत सिंह के अधीन रहेगा। यह समझौता महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज दरिया को पार कर ब्रिटिश हुक्मरानों के अधीन आने वाले रोपड़ में सतलुज दरिया के किनारे किया था। उस समय यह तय हुआ था कि सिख सेना सतलुज पार कर इस तरफ नहीं आएगी और न ही अंग्रेज सेना दरिया के उस पार जाएगी।
इस समझौते के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इन्हीं शिवालिक की पहाडिय़ों पर खालसा की चौकी स्थापित की और यहीं से अंग्रेजों के बढ़ते वर्चस्व को चुनौती दी। समय बदला और सिख साम्राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया। देश की स्वाधीनता के बाद भी महाराजा की ओर से स्थापित चौकी पर लगा केसरिया रंग का ध्वज आज भी सिख इतिहास की गौरवमय गाथा सुना रहा है। पास से निकलती सतलुज की कल-कल करती जलधारा भी सुर में सुर मिलाकर सिख इतिहास के स्वर्णिम इतिहास के पन्ने पलट रही हैं मगर सूबे के सरदार कदाचित इतिहास के इस पन्ने को पढऩे की चेष्टा नहीं कर रहे हैं।
हालत यह है कि ब्रिटिश काल में जिस जगह से महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की सीमा शुरू होती थी उसी सरहद को सरकार भुलाए बैठी है। शिवालिक की पहाडिय़ों पर निशान-ए-खालसा के संबंध में कहा जाता है कि जिस समय महाराजा रणजीत सिंह ने यहां पर अपनी चौकी स्थापित की थी उस समय यहां सिख साम्राज्य के निशान के तौर पर जमीन की सतह से करीब 150 ऊंची पहाड़ी की चोटी पर अष्टधातु का ध्वज भी स्थापित किया था जो सिखों की संप्रभुता की याद दिलाता था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मौजूदा समय में अष्टधातु का ध्वज चोरी हो चुका है। उसकी जगह पर दूसर ध्वज लगाया गया है। यही नहीं मिट्टी की इस पहाड़ी को काटकर नूरपूर बेदी की तरफ जाने के लिए सडक़ बनाई गई है जबकि इसके पश्चिमी छोर पर स्वराज माजदा की फैक्टरी है। सरकारी अनदेखी के कारण यह गौरवमयी धरोहर लुप्त होने की कगार पर है।
मिट गयी पत्थर पर लिखी इबारत भी
चौकी को विरासत का दर्जा देने के लिए 19 अक्टूबर 2001 को तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट मंत्री व महाराजा रणजीत सिंह द्विशताब्दी कमेटी के सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा ने पंजाब हेरिटेज फाउंडेशन व इन्वायरमेंट सोसायटी पंजाब के सौजन्य से इस पहाड़ी को महाराज रणजीत सिंह विरासती पहाड़ी का दर्जा देने के लिए नींव रखी थी मगर यह महज शोपीस बनकर रह गया है। पूरी पहाड़ी चारगाह बन गयी है। अब तो नींव के पत्थर पर लिखी इबारत भी मिट चुकी है। वैसे पुरातत्व विभाग पंजाब के कंजरवेटिव अधिकारी का दावा है कि सरकार-ए-खालसा की चौकी पूरी तरह सुरक्षित है।
अकालियों ने विरासतों के नाम पर की सियासत
प्रदेश की पूर्व अकाली-भाजपा सरकार ने भी महाराजा रणजीत सिंह व पंजाब से जुड़ी विरासतों को संभालने के नाम पर जमकर सियासत की, लेकिन इस चौकी की सुध नहीं ली। इसई क्षेत्र के सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त सीपीएस चौधरी नंदलाल व पर्यटन मंत्री सोहन सिंह ठंडल ने भी इस तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया। और तो और केन्द्र सरकार में सहभागिता निभा रहे अकाली सांसद प्रो.शाम सिंह चंदूमाजरा भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें दुख है कि पंजाब की विरासत को संभालने का दवा करने वाली सरकारें उन लोगों की निशािनयों को भूल चुकी हैं जिन्होंने अपनी बाजुओं की ताकत से पंजाब का इतिहास लिखा था। उनका कहना है कि इस स्थान को हेरिटेज हिल्स का दर्जा देकर पर्यटन के नक्शे पर लाया जाए ताकि क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अवसर मिल सकें।
पत्रों पर अभी तक कार्रवाई नहीं
इस संबंध में पंजाब पर्यटन विभाग के अधिकारी बलराज सिंह कहते हैं कि पंजाब में महाराजा रणजीत और उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अफगानों व अंग्रेजों को सिख साम्राज्य से दूर रखा। पंजाब की राजनीति भी उन्हीं की विरासत पर होती है। सरकार ने उनसे जुड़ी बहुत सी धरोहरों को सहेजकर रखा है। चौकी को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए हमने सरकार को पत्र लिखे हैं। इससे विभागीय अधिकारियों को भी अवगत कराया है। उम्मीद है कि सरकार इस तरफ ध्यान देगी।
विरासतों को संभालने के लिए सरकार वचनबद्ध
पर्यटन व स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि उनकी सरकार पंजाब की विरासतों को संभालने के लिए वचनबद्ध है। निगरान चौकी का विकास कराया जाएगा। पिछली सरकार ने विरासत संभालने के नाम पर अपनी सियासत चमकाई है और किया कुछ भी नहीं है, लेकिन मौजूदा कांग्रेस सरकार इस दिशा में अग्रसर है। सिख इतिहास से जुड़े इस महत्वपूर्ण स्थान को जल्द ही पर्यटन के नक्शे पर लाया जाएगा।
विधानसभा में उठेगा मामला
यह पूछे जाने पर कि क्या महाराजा रणजीत सिंह की विरासत को संभालने के लिए मौजूदा कांग्रेस सरकार कोई ठोस कदम उठाएगी, कांग्रेस के क्षेत्रीय विधायक चौधरी दर्शन लाल ने कहा कि कि अकाली-भाजपा सरकार ने केवल नींव के पत्थर रखने की राजनीति करती है, जबकि हमारी सरकार वादों को साकार करती है। महाराजा की विरासत निशान-ए-खालसा को पयर्टन के नक्शे पर लाने व इसके विकास के लिए पर्यटन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू से बात की जाएगी। इसके अलावा यह मामला विधानसभा में भी उठाया जाएगा। अकालियों ने लोगों को केवल गुमराह किया है।
पर्यटकों को आकर्षित करती है पहाड़ी
अमृतसर-जालंधर से नवांशहर होकर चंडीगढ़ जाते समय शिवालिक की पहाडिय़ों के साथ ही सतलुज दरिया के किनारे इन पहाडिय़ों की चोटी पर लगा केसरिया रंग का ध्वज व गुरुद्वारा सहज ही आकर्षित करता है। लेकिन इस संबंध में लोगों को जानकारी न होने के कारण वे आगे बढ़ जाते हैं।
इसके बाद सतलुज के उस पार रोपड़ में लार्ड विलियम बेंटिक व महाराजा रणजीत सिंह के समझौते वाले स्थान पर तो टूरिस्टों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन निगरान चौकी अपनी पहचान ढूंढ रही है।