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वेदों को समझने का सहज व सरल मार्ग है पुराण, जानिए कितने हैं भाग?

हिंदू धर्म देखने में जितना सरल व सहज लगता है उसमें निहीत बातें उतनी गूढ़ है। हिंदू  धर्म को समझने के लिए हम वेद शास्त्रों का सहारा लेते है। फिर भी हम उसके रहस्य को समझने खुद असमर्थ पाते है। इस आर्टिकल से हम जानने की कोशिश करेंगे कि वेद से धर्म व उससे जुड़ी बातें जाना जा सकता है

suman
Published on: 1 Sept 2019 8:32 AM IST
वेदों को समझने का सहज व सरल मार्ग है पुराण, जानिए कितने हैं भाग?
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जयपुर: हिंदू धर्म देखने में जितना सरल व सहज लगता है उसमें निहीत बातें उतनी गूढ़ है। हिंदू धर्म को समझने के लिए हम वेद शास्त्रों का सहारा लेते है। फिर भी हम उसके रहस्य को समझने खुद असमर्थ पाते है। इस आर्टिकल से हम जानने की कोशिश करेंगे कि वेद से धर्म व उससे जुड़ी बातें जाना जा सकता है या और भी मार्ग है धर्म के गूढ़ ज्ञान को जानने के लिए। कहा जाता है कि ईश्वर की कृति वेदों में समाहित बातों को जानना साधारण जनमानस के वश में नहीं है इसलिए वेदों को समझने के लिए हमारे महर्षियों विद्वानों ने पुराणों की रचना की और इसे देवी-देवताओं की कहानियों के माध्यम से समझाया। और पुराणो लिखा।भगवान की मनोरंजक लीलाओं से कहानियों के माध्यम जीवन का सार समझाया गया। जिसमें ईश्वर का का महत्व एक जगह स्थित है, भगवान की लोक लीलाओं की मनोरंजक कहानियों का संकलन पुराण है।

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इन पुराणों से वेद का सार समझना आसान हो गया है। पुराण देवी-देवताओं की मनोहर कहानियों का बहुत बड़ा संग्रह है। ईश्वरीय कृति वेद को समझने के लिए पुराणों का संग्रह आसान मार्ग है। पुराणों में न केवल भूत को समझाने का प्रयास है, बल्कि वर्तमान काल का भी चित्रण है और कुछ पुराण भविष्य को बताते है।

हमारे विद्वानों ने सतयुग. त्रेतायुग, द्वापरयुग के साथ कलयुग का भी वर्णन किया है। बताया है कि कलयुग में अधर्म का बोलबाला रहेगा। लोग अनीति पर चलकर भी यश पाएंगे। और अंत में धर्म को ही अपनाना पड़ेगा।पुराण कहते हैं कि कलयुग जब अपने चरम पर होगा तो धर्म का पालन करने वाले प्रभावहीन हो जाएंगे, आज के समय में इसलिए पुराण प्रभावशाली रहेंगे।

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पुराण सृष्टि के आरम्भ से है, इसलिए इन्हें सृष्टि के प्रथम और सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है पुराण, यह शब्द ‘पुरा’ और ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-‘पुराना’ और ‘प्राचीन’। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है- अतीत। ‘अण’ शब्द का अर्थ है-कहना। अर्थात् जो प्राचीन काल के तथ्यों, सिद्धांतों, शिक्षाओं, नीतियों, नियमों और घटनाओं का विस्तृत संग्रह। ‘‘ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ को प्रकट किया, उसे पुराण कहते है। जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, उसी प्रकार पुराण को ज्ञान का संग्रह है। जहां सूर्य अपनी किरणों से अंधकार दूर करता है, उसी तरह पुराण ज्ञान की किरणों से मनुष्य के मन के अंधकार को दूर करता है । एक श्लोक में विद्वानों ने पुराणों के बारे में कहा है-

परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्।

अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन द्वयं।

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शुरु में ब्रह्माजी ने केवल एक ही पुराण रचा था। जो एक अरब श्लोकों से समाहित अत्यंत विशाल और कठिन था। पुराण को जनमानस के लिए सरल और सहज बनाने का काम महर्षि वेद व्यास ने किया। उन्होंने पुराण को 18 भागों में बांटा था। इन पुराणों के श्लोकों की कुल संख्या चार लाख है। महर्षि वेद व्यासजी के 18 पुराणों के संकलन में ब्रह्मा, विष्णु व महेश मुख्य देव हैं, इसमें प्रत्येक देव पर 6-6 पुराण बताए गए हैं। पुराणों में उनमें वर्णित देवों की महिमा का बखान है। ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण-वायु पुराण, श्रीमद्भगवद पुराण- देवी भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कंडेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण, स्कंद पुराण, वामन पुराण, कुर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और ब्रह्मांड पुराण।

इनके अलावा देवी भागवत के 18 उप पुराण है, गणेश पुराण, नरसिंह पुराण, कल्कि पुराण, एकाम्र पुराण, कपिल पुराण, दत्त पुराण, श्री विष्णुधर्मोत्तर पुराण, मुद्गल पुराण, सनत्कुमार पुराण , शिव धर्म पुराण, आचार्य पुराण, मानव पुराण, उश्ना पुराण, वरुण पुराण, कालिका पुराण, महेश्वर पुराण, साम्ब पुराण और सौर पुराण।जिन्हें धर्म में मान्यता मिली हुई है। कहा गया है कि भगवान विष्णु की व्यास के रुप में अवतरित होकर पुराणों की रचना किया है। जिसमें मनुष्य को धर्म पर चलकर खुद के कल्याण का मार्ग बताया गया है।इन ग्रंथों की रचना तब हुई है जब विज्ञान की दुनिया का नामों निशान भी नहीं था। आज विज्ञान भी इन धर्म ग्रंथों व उनमें निहीत बातों का तोड़ नहीं निकाल पाया है और इनकी सत्यता के सामने नतमस्तक है।

नोट: अगले अंक में जानेंगे किस पुराण में क्या वर्णन व समानता है।



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