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Kerala Governor: गवर्नर को चांसलर पद से हटा सकती है राज्य सरकार !

Kerala Governor: केरल पहला राज्य नहीं है जिसने राज्य के विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका को कम करने की योजना बनाई है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 11 Nov 2022 12:44 PM IST
Arif mohammad khan
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Arif mohammad khan (photo: social media )

Kerala Governor: केरल ने राज्य की सभी यूनिवर्सिटी के चांसलर पद से गवर्नर को हटा कर नामचीन शिक्षाविदों को चांसलर बनाने का प्रस्ताव पारित किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार ऐसा कर सकती है?

करक के पिन्नारी विजयन कैबिनेट ने उल्लेख किया है कि केंद्र-राज्य संबंधों का अध्ययन करने के लिए 2007 में गठित एमएम पंछी आयोग ने राज्यपालों को चांसलर की शक्तियां देने के खिलाफ पुष्टि की थी। कैबिनेट ने तर्क दिया कि विधानसभा ने चांसलर का कार्यालय बनाया था और राज्य के विश्वविद्यालयों की स्थापना करने वाले संस्थापक क़ानून में प्रावधान बनाया था। इसलिए, विधानसभा कुलपति के रूप में राज्यपाल की शक्तियों को वापस लेने के लिए सक्षम है। कैबिनेट ने उल्लेख किया कि पंछी आयोग ने जोर देकर कहा था कि राज्य सरकारों को राज्यपालों पर विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की भूमिका का बोझ डालने से बचना चाहिए। ऐसा न हो कि अतिरिक्त अधिकार उन्हें अपने संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन से बाधित कर दें।

अन्य राज्य ऐसा कर चुके हैं

केरल पहला राज्य नहीं है जिसने राज्य के विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका को कम करने की योजना बनाई है। 2013 में गुजरात सरकार ने ऐसा किया था। तब राज्य विधानसभा ने राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालयों के प्रमुख के पद से हटाने के लिए एक विधेयक पारित किया। हालांकि, यूपीए द्वारा नियुक्त राज्यपाल कमला बेनीवाल ने विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं किये। २०१४ में केंद्र में सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद उनका गुजरात से तबादला कर दिया गया और बाद में बने गवर्नर ओपी कोहली ने बिल को मंजूरी दे दी।

नया कानून राज्य के 14 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की सभी शक्तियों को छीन लेता है, जिसमें उनके कुलपति और अन्य प्रमुख शासी सदस्यों को नियुक्त करने की शक्ति भी शामिल है। राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति बने हुए हैं, लेकिन उनके पास कोई कार्यकारी शक्ति नहीं है। यह विडंबना ही है कि गुजरात के राज्यपाल ने स्वयं राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में निहित शक्तियों पर हस्ताक्षर किए और उन्हें राज्य सरकार को सौंप दिया। गुजरात विश्वविद्यालय अधिनियम -1949 और राज्य के विश्वविद्यालयों (महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय को छोड़कर) को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कानूनों को संशोधित माना जाता है, जहां तक कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित प्रावधानों का संबंध है।

इस साल जून में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पारित विधेयक में राज्य की सार्वजानिक यूनिवर्सिटी से गवर्नर की जगह मुख्यमंत्री को चांसलर पद पर स्थापित करने का प्रावधान किया गया लेकिन ये विधेयक राज्यपाल ने वापस कर दिया।

पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार राज्यपाल को राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में बदलने के लिए एक विधेयक पर विचार कर रही है।

अप्रैल 2022 में, तमिलनाडु विधान सभा ने राज्यपाल से (सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में) कुलपति की नियुक्ति की शक्ति राज्य सरकार को हस्तांतरित करने के लिए दो विधेयक पारित किए थे। 2021 में महाराष्ट्र ने राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया में संशोधन किया। संशोधन से पहले, एक खोज समिति ने कुलाधिपति (जो राज्यपाल हैं) को कम से कम पांच नामों का एक पैनल भेजा था। तब कुलाधिपति सुझाए गए पैनल में से किसी एक व्यक्ति को कुलपति के रूप में नियुक्त कर सकता था या नामों के एक नए पैनल की सिफारिश करने के लिए कह सकता था। 2021 के संशोधन ने सर्च कमेटी को पहले राज्य सरकार को नामों के पैनल को अग्रेषित करने के लिए अनिवार्य कर दिया, जो चांसलर को दो नामों (मूल पैनल से) के पैनल की सिफारिश करेगी। कुलाधिपति को तीस दिनों के भीतर पैनल से दो नामों में से एक को कुलपति के रूप में नियुक्त करना होगा। संशोधन के अनुसार, कुलाधिपति के पास नामों के नए पैनल की सिफारिश करने के लिए कहने का कोई विकल्प नहीं है।

संवैधानिक व्यवस्था

ज्यादातर मामलों में राज्य के राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों के पदेन चांसलर होते हैं। राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह स्वतंत्र रूप से मंत्रिपरिषद से कार्य करता है और विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर अपने निर्णय लेता है।

हालांकि ऐसा कोई संवैधानिक नियम नहीं हैं जो कानूनी तौर पर राज्यपाल को कुलाधिपति बने रहने के लिए बाध्य करते हैं। 2010 में पंछी आयोग ने सिफारिश की थी कि राज्य विधायिका द्वारा राज्यपाल पर महाभियोग चलाने का प्रावधान होना चाहिए। राज्यपाल की नियुक्ति में राज्य के मुख्यमंत्री की राय होनी चाहिए।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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