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बड़े नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सवाल, क्या इस वजह से 8 तारीख चुनी गई ?

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Published on: 9 Nov 2016 8:19 PM GMT
बड़े नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सवाल, क्या इस वजह से 8 तारीख चुनी गई ?
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नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों में देश और दुनिया के मशगूल रहने के दौरान का वक्त ऐसा चुना, जिससे शहरों और गांवों में बड़े नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर हाय-तौबा का मौका कम मिले। कई आर्थिक और मीडिया विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने सोच-समझकर घोषणा के लिए 8 नवंबर की तारीख तय की। ताकि अगले दिन लोग नोटों की चिंता की जगह पूरा ध्यान अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों पर फोकस करें। शहरों में ऐसा हुआ भी। लोग सुबह से टीवी सेटों से चिपककर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों की काउंटिंग पर निगाह लगाए रहे।

क्या मानते हैं विशेषज्ञ?

सरकार ने हालांकि पिछले जून-जुलाई में कालेधन पर लगाम के लिए बड़े नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक को योजना के तौर पर आजमाना शुरू कर दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अब एक किस्म से डेबिट और क्रेडिट कार्ड के माध्यम से या ऑनलाइन मनी ट्रांसफर का नया युग शुरू होगा। प्लास्टिक मनी, चेक और ड्राफ्ट से भुगतान का प्रचलन होगा। वैसे, इस पर भी बहस हो रही है कि क्या मोदी सरकार के इस धमाकेदार पैंतरे से कालेधन पर लगाम लगेगी या नहीं।

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चुनावी तैयारी में जुटे दलों पर असर

बड़े नोटों के बैन होने का सबसे ज्यादा धक्का बड़े और क्षेत्रीय दलों को लगेगा, जो चुनाव प्रचार में वोटरों को प्रभावित करने के लिए बेहिसाब काला धन लगाते हैं। चुनाव आयोग भी इसे बखूबी जानता है कि किस तरह राजनीतिक दल खर्च की सीमा को ठेंगा दिखाकर वोटरों को लुभाने के लिए पैसा और शराब बांटने में कालाधन लुटाते हैं। सियासी दलों का 90 फीसदी और कुछ मामलों में तो 100 फीसदी फंड बैंकों की जगह चुनिंदा नेताओं के पास रहता है। ऐसे में कांग्रेस, सपा, बीएसपी और अकाली दल जैसी पार्टियां, जिनकी अगले विधानसभा चुनावों में प्रतिष्ठा दांव पर है, बड़े नोट बंद होने से उनकी रणनीति प्रभावित होगी।

शादियों के सीजन में लोग परेशान

मोदी सरकार के इस कदम से वे हजारों परिवार संकट में हैं, जिनके यहां शादियां होनी हैं। अकेले दिल्ली-एनसीआर में अगले 15 नवंबर के आसपास 40 हजार शादियां होनी हैं। इनमें छोटे-बड़े नोटों की जरूरत होती है। लोग परेशान हैं कि उन्हें कैसे तैयारियों के लिए नोट मिल सकेंगे।

आतंकवाद रोकने का तर्क गले नहीं उतर रहा

विशेषज्ञों का कहना है कि आतंकियों को अवैध रास्तों से बड़े नोट भेजने का दौर खत्म हो चुका है। हाल के दौर में हुए ज्यादातर आतंकी वारदात में बैंकिंग ट्रांसफर का प्रचलन बढ़ा है। आतंकी नेटवर्क के विदेशी खातों में बड़े लेन-देन सुर्खियों में रहते हैं। पीएम मोदी भी कई बार कह चुके हैं कि कालेधन का बड़ा हिस्सा विदेशी बैंकों और देशों की वित्तीय संस्थाओं में जमा है।

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