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राफेल पर मोदी सरकार को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की पुनर्विचार याचिकाएं

राफेल डील के मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने 14 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को बरकरार रखते हुए अपने 14 दिसंबर, 2018 को दिए फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया।

Aditya Mishra
Published on: 14 Nov 2019 5:50 AM GMT
राफेल पर मोदी सरकार को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की पुनर्विचार याचिकाएं
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नई दिल्ली: राफेल डील के मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने 14 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को बरकरार रखते हुए अपने 14 दिसंबर, 2018 को दिए फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया।

पीठ ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए कहा कि इसकी अलग से जांच करने की जरूरत नहीं है। अदालत ने केंद्र की दलीलों को तर्कसंगत और पर्याप्त बताते हुए माना कि केस के मेरिट को देखते हुए इसमें दोबारा जांच के आदेश देने की जरूरत नहीं है।

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कोर्ट ने दलीलों को कमजोर माना

पीठ ने कहा कि कोर्ट की ओर से याचिकाओं को खारिज करने का सबसे बड़ा आधार उनकी कमजोर दलील को माना गया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इन याचिकाओं में कोई दम नहीं है और कोर्ट उनकी दलीलों से सहमत नहीं। कोर्ट ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अभी इस मामले में कॉन्ट्रैक्ट चल रहा है। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा हरफनामे में हुई भूल को भी स्वीकार किया है।

एफआईआर व जांच की जरुरत नहीं

न्यायालय ने कहा कि हमें नहीं लगता कि राफेल विमान सौदा मामले में प्राथमिकी दर्ज करने या बेवजह जांच का आदेश देने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को राफेल खरीद प्रक्रिया और सरकार द्वारा इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में भारतीय कंपनी को फेवर किए जाने के आरोपों की जांच करने का अनुरोध करने वाले सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि फैसला लेने की प्रक्रिया में कहीं भी शक करने की गुंजाइश नहीं है।

इन लोगों ने दायर की थीं याचिकाएं

राफेल सौदे मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशंवत सिन्हा, अरुण शौरी और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की ओर से पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई थी। इन याचिकाओं में 14 दिसंबर, 2018 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई थी जिसमें फ्रांस की कंपनी से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के केंद्र के राफेल सौदे को क्लीन चिट दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने लगाया था भ्रष्टाचार का आरोप

याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि अदालत का फैसला गलत तथ्यों के आधार पर है क्योंकि केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में अदालत के सामने गलत तथ्य पेश किए थे।

यहां तक कि सरकार ने खुद ही फैसले के अगले दिन 15 दिसंबर 2018 को अपनी गलती सुधारते हुए दोबारा आवेदन दाखिल किया था। इन याचिकाओं में राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

सौदे से जुड़े लीक दस्तावेज का हवाला देते हुए इन याचिकाओं में कहा गया था कि इस डील में पीएमओ ने रक्षा मंत्रालय तक को भरोसे में नहीं लिया गया। याचिका में विमानों की कीमत को लेकर भी सवाल उठाए गए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह ठोस सबूतों के बगैर इस मामले में दखल नहीं देगी।

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पीठ में शामिल थे तीन जज

राफेल मुद्दे से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने फैसला सुनाया है। पीठ ने इस मामले में 10 मई को ही सुनवाई पूरी कर ली थी। उस समय पीठ ने कहा था कि इसे लेकर फैसला बाद में सुनाया जाएगा।

लोकसभा चुनाव के दौरान गरमाया था मुद्दा

गत लोकसभा चुनाव के दौरान राफेल विमान डील का मामला काफी सुर्खियों में था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील को लेकर पीएम मोदी को जमकर घेरा था।

उनका आरोप था कि इस सौदे में जमकर भ्रष्टाचार किया गया और पीएम मोदी जानकर भी अनजान बने रहे। उन्होंने इस मामले को लेकर पीएम मोदी को चौकीदार चोर है तक कह डाला था। वे अपनी जनसभाओं में इसे लेकर लोगों से नारे भी लगवाते थे। भाजपा की ओर से राहुल के आरोपों को जवाब भी दिया गया था और सारे आरोपों को बेबुनियाद बताया गया था।

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