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पिता उठाते है कूड़ा, बेटे ने स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़कर पास की एम्स परीक्षा
लखनऊ: पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। इस कहावत को साबित कर दिखाया है आशाराम नाम के इस होनहार बच्चे ने। अभाव में जीवन व्यतीत करने वाले आशाराम ने एम्स के एंट्रेंस एग्जाम को पहले ही प्रयास में पास करके साबित कर दिया कि गरीबी सफलता में आड़े नहीं आ सकती। newstrack.com आज आपको आशाराम की अनटोल्ड स्टोरी बता रहा है।
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फ़ीस जमा करने के नहीं थे पैसे
आशाराम (18) का जन्म एमपी के देवास जिले के एक छोटे से गांव विजयगंज मंडी में हुआ था। उसके पिता रंजीत कूड़ा बीनकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।
उसका पूरा परिवार एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहता है। बरसात में उसके घर में पानी भर जाता है। पढ़ने के लिए बिजली की कोई व्यवस्था भी नहीं है।
उसने स्ट्रीट लाईट की रोशनी में पढ़कर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। फ़ीस जमा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
जिला प्रशासन की मदद से उसे बीपीएल कार्ड मिला। इससे उसे अपनी पढ़ाई में काफी मदद मिली। घर में राशन भी बीपीएल कार्ड से ही आता है।
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ऐसे किया एम्स इंट्रेस क्वालीफाई
आशाराम को पुणे की दक्षिणा फाउंडेशन ने स्कॉलरशिप के लिए चुना था। इसके तहत उसे पुणे में ही परीक्षा की तैयारी करवाई जा रही थी।
उसने इसी साल जोधपुर-एम्स म एडमिशन के लिए इंट्रेंस एग्जाम दिया था। उसकी ऑल इंडिया रैंक में 707वां स्थान है और ओबीसी कैटिगरी में उसे 141 वीं जगह मिली है।
आशाराम ने बताया, मेरी सफलता में दक्षिणा फाउंडेशन का बराबर बहुत बड़ा योगदान है। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपने पैरेंट्स और टीचर्स को भी दिया है।
बेटे की उपलब्धि के बारे में पिता को नहीं है जानकारी
आशाराम ने बताया मेरे पिता अशिक्षित है। उन्हें नीट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्हें अभी इस बारे में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
गांव के कुछ लोगों ने नीट इन्ट्रेस एग्जाम पास करने पर मेरे पिता को बधाई देनी चाहिए लेकिन वे हंस कर उनकी बातों को टाल गये। जैसे ये कोई समान्य बात हो।
मेरे घर पर बधाई देने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। मुझे अपने पिता को समझाने में अभी कुछ वक्त लगेगा।'
मेस की फ़ीस जमा करने के नहीं है पैसे
आशराम अब एम्स के मेस की फीस जुटाने के लिए प्रयासरत है। उसने बताया, 'मुझे 36 हजार रुपये मैस की फीस और 8 हजार रुपये किताबों के देने हैं। हालांकि मैंने किताबों के लिए पैसों का इंतजाम कर लिया है लेकिन मैस की फीस अभी नहीं हो पाई है।
मैं चाहता हूं कि एमबीबीएस की पढ़ाई में हर साल मुझे गोल्ड मैडल मिले। मेरे गांव ने जो मुझे इतना कुछ दिया है मुझे वह लौटाना भी है। यहां एक भी अच्छा डॉक्टर नहीं है।'