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छुट्टियां बिताकर लौटे राहुल गांधी, घरेलू मोर्चे पर है भारी भरकम एजेंडा
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: 19 जून को अपने 47 वें जन्म दिन पर विदेश गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी वापस लौट आए हैं। उनके सामने अब घरेलू मोर्चे पर भारी भरकम एंजेडा है। स्वदेश लौटते ही राहुल गांधी ने सात प्रदेशेां के पार्टी अध्यक्षों के साथ बैठक की। बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। यूपीए सरकार ने आदिवासी व वनों के पास रहने वाली आबादी को वनों के आसपास की जमीन व वन संसाधनों के वैधानिक अधिकार दिए जाने के प्रावधानों वाला विधेयक पारित किया था लेकिन उसे अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है। अब संसद का मानसून सत्र आरंभ होने में दो सप्ताह से भी कम वक्त बचा है और पार्टी को इसकी तैयारी करनी है।
इससे भी बड़ी मुश्किल यह है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं, और बाकी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस की तैयारियां कछुआ चाल से चल रही हैं। कांग्रेस की उत्तर प्रदेश ईकाई के एक पदाधिकारी ने माना कि उत्तर प्रदेश में बाकी दलों की चुनावी तैयारियों के मुकाबले कांग्रेस की तैयारियां बहुत ही पिछड़ चुकी हैं। यूपी में कांग्रेस अभी सियासी तौर पर अलग-थलग है। उत्तर प्रदेश में चुनावों की तैयारियों के पहले राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री की जगह नए प्रदेश अध्यक्ष की भी नियुक्ति होनी है। उत्तर प्रदेश में अनिश्चितता का वातावरण इसलिए भी है कि कांग्रेस की चुनावी रणनीति बनाने का जिम्मा रणनीतिकार प्रशांत किशोर के हवाले है।
पीके के हवाले है यूपी कांग्रेस
राज्य में कांग्रेस को चुनाव के लिए तैयार करने का जिम्मा प्रियंका गांधी के हवाले करने के बारे में प्रशांत किशोर पहले ही अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं। लेकिन यह सब काम कब और कैसे आरंभ होगा इसे लेकर यूपी कांग्रेस में अभी भी अनिश्चितता का आलम है। कांग्रेस में एक वर्ग का यह भी दबाव है कि बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में बसपा से सीटों के तालमेल पर बात होनी चाहिए। ऐसे लोगों का मानना है कि मायावती भले ही राज्य में किसी के साथ तालमेल नहीं करना चाहती है, लेकिन हाल में कुछ घटनाक्रमों की वजह से मायावती कमजोर हुई हैं।
मायावती व कांग्रेस दोनों के सामने भाजपा व सपा ही असल चुनौती हैं। ऐसे में राहुल गांधी को इस बारे में भी पहल करनी होगी। उत्तराखंड व उप्र में राज्यसभा चुनावों में मायावती ने कांग्रेस उम्मीदवारों को जिताने में जो भूमिका निभायी है, उससे भी दोनों के करीब आने का संकेत मिलता है। कई सांगठनिक मामलों में राहुल गांधी को अभी उनकी मां सोनिया गांधी ने फ्री हैंड नहीं दिया। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में गुलाम नबी आजाद को पार्टी का प्रभारी महासचिव बनाने की पहल भी सोनिया की ओर से ही हुई है। ऐसे संकेत हैं कि राहुल के सलाहकारों पर उनका लगातार दबाव बढ़ रहा है कि उन्हें जल्द से जल्द पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की तैयारी करनी चाहिए।
मुमकिन है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस में उच्च स्तर पर इस तरह का भी फैसला हो। लेकिन हो सकता है कि इसके पहले कांग्रेस में केंद्रीय स्तर पर कुछ और नए चेहरों को महासचिव व चुनाव वाले राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी जाए।