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राहुल ने नोटबंदी के बहाने क्षेत्रीय दलों से संवाद का खोला बड़ा रास्ता

देश में नोटबंदी की घोषणा के 50 दिन पूरा होने के एक दिन पहले दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ राहुल गांधी और ममता बनर्जी की खुली चुनौती को भले ही प्रतिकात्मक विरोध तक ही सीमित माना जा रहा है, लेकिन इससे पहली बार क्षेत्रीय पार्टियों ने इतने अहम मसले पर संसद के बाहर एक नई शुरुआत की है।

tiwarishalini
Published on: 27 Dec 2016 11:56 PM IST
राहुल ने नोटबंदी के बहाने क्षेत्रीय दलों से संवाद का खोला बड़ा रास्ता
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नई दिल्ली: देश में नोटबंदी की घोषणा के 50 दिन पूरा होने के एक दिन पहले दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ राहुल गांधी और ममता बनर्जी की खुली चुनौती को भले ही प्रतिकात्मक विरोध तक ही सीमित माना जा रहा है, लेकिन इससे पहली बार क्षेत्रीय पार्टियों ने इतने अहम मसले पर संसद के बाहर एक नई शुरुआत की है।

केंद्र में लगातार 10 साल सत्ता में रहने के बाद क्षेत्रीय दल कांग्रेस से छिटककर दूर जा चुके थे, लेकिन राहुल को पहली बार संसद के बाहर क्षेत्रीय दलों के साथ आने का मौका मिला है। क्षेत्रीय दलों के साथ संवाद का मौका मिलने पर राहुल गांधी को भी निश्चित ही यह अहसास भी हुआ है कि मोदी सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने के लिए क्षेत्रीय ताकतों और छोटे दलों का बड़ा मोर्चा ही कारगर हो सकता है।

इसी तरह लालू प्रसाद से बढ़ती नजदीकी भी राहुल के लिए बड़ा वरदान है क्योंकि तीन साल पहले लालू प्रसाद ने राहुल से संवाद तब पूरी तरह खत्म कर दिए थे, जब कोर्ट द्वारा सजायाफ्ता नेताओं की सदस्यता खत्म करने के मामले में राहुल ने सीधे यूपीए शासन में मनमोहन सिंह को मुश्किल में डाल दिया था।

मंगलवार (27 दिसंबर) को दिल्ली में विपक्ष की बैठक की मेजबानी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने की थी। कांग्रेस का मानना है कि अगर इस बैठक की मेजबानी उसने खुद की होती तो लेफ्ट पार्टियां जो काफी मुखरता से संसद के भीतर एकजुटता के साथ नोटबंदी का विरोध करती रही हैं जरूर ही मंगलवार की बैठक में शिरकत करने पहुंचतीं।

वाम नेताओं ने सोमवार को ही इस बैठक से यह कहते हुए किनारा कर लिया था कि उन्हें बैठक के बारे में अग्रिम तौर पर भरोसे में लिए बिना ही बैठक बुला ली गई। असल में वाम नेताओं का न आना इसलिए भी तय था कि बंगाल में उनका ममता बनर्जी से सीधा टकराव है।

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इसलिए ऐसी कोई चेष्टा जिसका सेहरा ममता बनर्जी के माथे बंधे उसे वाम दल कैसे स्वीकार कर सकते हैं। हालांकि कांग्रेस खुद भी मानती है कि सपा-बसपा और जदयू की दूरी के बावजूद वाम दल बैठक में शरीक हो पाते तो ज्यादा असर पड़ता।

नोटबंदी के 48 घंटे बाद ही पीएम मोदी की इस घोषणा से कि 50 दिन में हालात एकदम सामान्य हो जाएंगे, पीएम की कसमें कितनी खरी उतरेंगी इस पर लोगों का भरोसा इसलिए टूट रहा है क्योंकि रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया है कि देश भर में बैंकों और एटीएम में बड़े नोट भिजवाने में अभी वक्त लगेगा क्योंकि देश में नए नोटों की जितनी जरूरत है उतने नोट छपकर नहीं आ पा रहे।

सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में अभी भी भारी अंतर है। सुधार होता नहीं दिख रहा है। नए साल का आगाज हो चुका है। 1 जनवरी आते ही बैंकों से नकदी निकालने की दौड़ बढ़ने वाली है।

बैंकों में पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराने में अभी भी 50 दिन का और वक्त लगेगा

विशेषज्ञों का मानना है कि बैंकों में अभी नकदी की किल्लत दूर करने यानी तय सीमा खत्म होने के साथ ही दूर दराज के क्षेत्रों की बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने में सरकार को अभी कम से कम 50 दिन और लगेंगे। देशभर में मारे जा रहे छापों में भारी मात्रा में नए नोटों का जखीरा पकड़े जाने के बाद इस बात की आशंकाएं भी पुख्ता हो रही हैं कि क्या नोट संगठित या गुपचुप तरीके से सीधे प्रिंटिग प्रेस से लीक नहीं हो रहे।

विशेषज्ञों का कहना है कि बैंकों की शाखाओं से एक साथ इतनी तादाद में नए नोट सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना कठिन काम है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां कई कर्मचारियों और गार्ड आदि को एक साथ भरोसे में लेना होगा। दिन में यह काम मुश्किल है और आधी रात में बैंक का स्ट्रोंग रूम खोलकर नोटों को बैगों में भरकर ग्राहकों तक पहुंचाने में रंगे हाथों पकड़े जाने का जोखिम कोई बैंक अधिकारी नहीं उठा सकता।

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tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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