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कांग्रेस में जान फूंकने के लिए राहुल ने झोंकी ताकत, अंदरूनी रस्साकशी को थामना चुनौती
पार्टी सांगठनिक चुनावों ने देश के प्रायः हरेक प्रदेश में गुटबाजी को खुलेआम बढ़ाया है। ऐसी सूरत में पार्टी को इस तरह के मामलों में पुराने पैटर्न पर ही धीरे-धीरे लाना होगा तथा संवाद व विचार विमर्श के जरिए उनके मतभेदों को दूर करना होगा।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: आगामी छह माह में गुजरात व हिमाचल की चुनावी तैयारी के चलते दिल्ली में कांग्रेस के खेमों में गुटबंदी खत्म करने के लिए राहुल गांधी ने पूरी तरह कमर कस ली है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की इस नसीहत का, कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने 1977 की करारी हार के बाद तीन माह में कांग्रेस को खड़ा कर दिया था, राहुल पर गहरा असर दिखने लगा है।
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खाई पाटने की कवायद
राज्यों में पार्टी के दिग्गजों और धड़ों में बंटे नेताओं के साथ राहुल गांधी इसलिए भी संवाद बढ़ा रहे हैं कि इससे गुटबाजी दूर करने में सबसे ज्यादा मदद मिली है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अभी तक राज्यों में पार्टी अध्यक्षों के बारे में कई बार दूसरे धड़ों या गुटों के नेताओं को भरोसे में लिए बगैर ही राहुल अपनी पसंद के व्यक्ति को इस पद पर बिठा देते थे। दिल्ली सहित कुछ और राज्यों में इससे बवाल पैदा हुआ।
हाल के विधानसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा के क्रम में यह बात प्रमुखता से उभरी है कि राज्यों में नेतृत्व की कमान के बाबत कदम उठाने से पहले बाकी गुटों को भी भरोसे में लिया जाना चाहिए। कांग्रेस को खड़ा करने में पार्टी के ढांचे और संसाधनों का किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, इस पर भी जल्द से जल्द अमल होना है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल गांधी ने सबसे ज्यादा इस बात को महसूस किया कि पार्टी सांगठनिक चुनावों ने देश के प्रायः हरेक प्रदेश में गुटबाजी को खुलेआम बढ़ाया है। ऐसी सूरत में पार्टी को इस तरह के मामलों में पुराने पैटर्न पर ही धीरे-धीरे लाना होगा तथा संवाद व विचार विमर्श के जरिए उनके मतभेदों को दूर करना होगा। इससे गुटों में बंटे नेताओं के बीच वैमनस्य व कटुता खत्म होने की सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं।
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चुनौतियों पर नजर
इसके अलावा पार्टी के पुराने दिग्गज नेताओं व नई पीढ़ी के नौजवान नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान, भरोसा बढ़ाने की गतिविधियों को भी बढ़ावा देने का सुझाव राहुल गांधी को दिया गया है। फिलहाल जो प्रमुख प्रदेश राहुल गांधी के रडार पर हैं उनमें गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक, ओडिशा व केरल जैसे राज्य शामिल हैं जहां कांग्रेस के सामने उठ खड़े होने की चुनौतियां हैं।
गुजरात में कांग्रेस 19 साल से सत्ता से बाहर है। जबकि पहले बारी-बारी से कांग्रेस को सत्ता मिलती रहती थी। इधर दिल्ली में कांग्रेस को सक्रिय करने को राहुल सर्वोच्च प्राथमिकता इसलिए भी दे रहे हैं कि उन्हें लगता है कि आम आदमी पार्टी सरकार की लोकप्रियता में आयी भारी गिरावट व अंदरूनी खींचातानी तेज होने से केजरीवाल सरकार में आने वाले कुछ माह में और ज्यादा बिखारव बढ़ेगा।
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झोंकी ताकत
कांग्रेस को लगता है कि ऐसे हालात में केंद्र की मोदी सरकार जनता का भरोसा खो चुकी आप सरकार को बर्खास्त कर सकती है। इन्ही आशंकाओं के चलते दिल्ली में अपनी ताकत झोंकने को राहुल गांधी ने अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर लिया है। उन्होंने दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित, कपिल सिब्बल व बाकी नेताओं के साथ दो दिन पहले राज्य में पार्टी के हालात पर लंबी चर्चा की है।
(फोटो साभार:बिजनेसलाइन, न्यूज18,इंडियाटुडे)