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राजस्थान में जंग जीतने की जद्दोजहद, रथ से सिंहासन बचाने की कवायद शुरू
कपिल भट्ट
जयपुर: राजस्थान विधानसभा के चुनाव नवंबर में होने हैं। भाजपा का चुनावी रथ चल पड़ा है। शनिवार को मेवाड़ के राजसमंद के चार भुजानाथ मंदिर से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा का श्री गणेश हुआ। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने रथ को हरी झंडी दिखाई। मेवाड़ का सियासी ट्रेंड रहा है कि इस क्षेत्र से जिस दल को ज्यादा सीटें मिली हैं, सत्ता भी उसे ही मिली है। शायद तभी भाजपा ने लगातार दूसरी बार इसी जगह से चुनावी यात्रा का शुभारंभ किया है।
ये है मान्यता
राजनीतिक पार्टियों में मान्यता बन गई है कि उदयपुर संभाग में जिस पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलती हैं, उसी की सरकार बनती है। पिछली बार वसुंधरा राजे ने चारभुजा से यात्रा निकाली और प्रचंड बहुमत से भाजपा सत्ता में आई। वर्ष 2003 में भी उन्होंने यहीं से यात्रा शुरू की थी। यह चारभुजा से उनकी तीसरी यात्रा है। शाह ने भी लाज रखने की अर्जी लगाई है।चारभुजा से रथ यात्रा शुरू करने के कई सियासी निहितार्थ हैं। चारभुजा मंदिर सहित आसपास के प्रमुख तीनों मंदिर की विशेष पूजा गुर्जर समाज के पास है। गुर्जर समाज की आस्था वाले तीनों मंदिरों को कवर कर सीधे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को घेरने की रणनीति है।
कांग्रेस ने किया पलटवार
वहीँ राजस्थान कांग्रेस सीएम राजे की रथ यात्रा को लेकर हमलावर हो गयी है। सीएम की यात्रा में कांग्रेस हर रोज एक सवाल करेगी। पहले दिन कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने सीएम से पूछा- ‘क्या यह माना जाए कि मंदिरों की चर्चा व चिंता आप सिर्फ चुनावों में सियासी लाभ लेने करते हैं?’ उन्होंने शाह द्वारा राहुल गांधी पर की गई टिप्पणियों को राजनीति की गरिमा को तार-तार करने वाला बताया। वे बोले- शाह की बयानबाजी से साफ है कि भाजपा के पास जनता को बताने के लिए कुछ भी नहीं है।
शाह बोले- जनता को हिसाब देने आया राजस्थान
यात्रा की शुरुआत के दौरान कांकरोली के जेके स्टेडियम में सभा हुई। इसमें अमित शाह और वसुंधरा ने कांग्रेस और राहुल गाँधी पर जमकर निशाना साधा। शाह बोले- राहुल बाबा हमसे 4 साल का हिसाब मांगते हैं। मैं जनता को हिसाब देने राजस्थान आ गया हूं। लेकिन इस देश की जनता तो राहुल से कांग्रेस की चार पीढ़ियों का हिसाब मांग रही है। शाह ने राहुल से कहा- आप 15 अगस्त को राजस्थान आओ तो मेरी बात का जवाब जरूर देना। आपको राजस्थान की जनता पूरा हिसाब देगी। यहां वसुंधरा के नेतृत्व में दुबारा भाजपा की सरकार बनेगी।
राजस्थान की राजनीति में रथ यात्रा का ट्रेंड वसुंधरा ने ही सेट किया है। सबसे पहले 2003 के चुनावों के समय परिवर्तन यात्रा निकाली थी। राजे की इस परिवर्तन यात्रा का नतीजा था कि भाजपा 120 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से पहली बार राजस्थान में सत्ता में आई। सत्ता में आने के बाद उन्होंने धन्यवाद यात्रा और जल चेतना यात्रा के जरिये जनता से अपना संपर्क कायम रखा। फिर दूसरे दौर में 2014 के चुनावों के समय सुराज संकल्प यात्रा की और विधानसभा में163 सीटों के साथ अब तक का सबसे विशाल बहमत लेकर सत्ता में आयीं। इसके अलावा समय समय पर वे प्रदेश में अलग अलग नामों की यात्राओं के जरिये जनसंपर्क अभियानों में रहती हैं। इससे वो शायद अपनी सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को कमज़ोर करने को कोशिश करती हैं। बीजेपी कांग्रेस हो या अन्य किसी दल को कोई नेता रथ यात्रा नहीं निकलता।
नवंबर में होंगे चुनाव
राजस्थान विधानसभा के चुनाव नवंबर में होने हैं। सात जुलाई को जयपुर में प्रधानमंत्री&लाभार्थी संवाद कार्यक्रम से राजस्थान में भाजपा ने अपने चुनाव अभियान का अनौपचारिक आगाज कर दिया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का चुनावी रथ चल पड़ा है। कांग्रेस अपना बूथ-अपना गौरव कार्यक्रम के जरिए विधानसभा वार कार्यक्रम आयोजित कर रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट अपने इस कार्यक्रम में पूरे जोश से लगे हुए हैं। वहीं अशोक गहलोत कांग्रेस में अपनी बिसात अपने तरीके से बिछाने में लगे हैं। दोनों पार्टियों का जोर चुनाव जीतने पर ही होगा। इसके लिए यह पार्टियां अपने अपने तरीके से सर्वे भी करा रही हैं। दोनों पार्टियों का जोर नए और युवा चेहरों पर है।
भाजपा में जहां अपने 160 एमएलए में से कम से कम 100 के टिकिट काटे जाने की कवायद की जा रही है। वहीं कांग्रेस भी इस बार इतने ही नए चेहरे मैदान में उतारने जा रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पायलट युवा हैं तो भाजपा के अध्यक्ष सैनी 75 साल के बूढे हैं। लेकिन भाजपा की कमान तो वास्तव में वसुंधरा राजे के हाथों में है। सैनी तो केवल चेहरा मात्र हैं। अब मुकाबला दिलचस्प होने ही उम्मीद है। हालांकि कांग्रेस को सबसे बडा सहारा भाजपा सरकार के खिलाफ एंटीइंकम्बेंसी का है। लेकिन वसुंधरा राजनीति की तगडी खिलाडी हैं। 2008 के चुनावों में भी आरएसएस के मैदान छोडने के बावजूद वो 200 में से 77 सीटें लाने में कामयाब रहीं थीं। कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण जोड़ तोड़ से सरकार बनानी पडी थी। लिहाजा इस बार भी मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद है।