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राजे के राज में बेकाबू नौकरशाही, उपचुनावों में हो गया भाजपा का सफाया
भाजपा नेता बोले : इसी कारण उपचुनावों में पार्टी को मिली पराजय
कपिल भट्ट
जयपुर: राजस्थान की नौकरशाही को वैसे तो सीमाओं में रहने वाली व लो प्रोफाइल ही माना जाता रहा है, लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं। पिछले कुछ सालों से राजनीतिक दलों ने नौकरशाही का उपयोग अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए शुरू कर दिया है। इसी का नतीजा है कि अब राजनेता ही नौकरशाही से प्रताडि़त होने की शिकायत करते नजर आ रहे हैं। विपक्षी दल अगर नौकरशाही की शिकायत करें तो सही लगता है, लेकिन राजस्थान में सत्तारूढ़ भाजपा के ही तमाम नेता अफसरों की मार का रोना रोते नजर आ रहे हैं। हाल ही में राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनावों में भाजपा का सफाया हो गया है। अब भाजपा के नेता कह रहे हैं कि अफसरों के कारण ही पार्टी को इन चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा के नेता आम लोगों के बीच से लेकर राज्य विधानसभा में भी इस बात की शिकायत करते नजर आ रहे हैं।
सही सूचनाएं नहीं दे रहे अफसर : भाजपा विधायकों ने इन तीन उपचुनावों में हार के अन्य कारणों के साथ एक वजह अफसरों के काम नहीं करने को भी बताया। भाजपा विधायक प्रहलाद गुंजल कहते हैं कि पार्टी को हराने में अफसरों की भूमिका रही है। अफसरों का मसला विधानसभा में पहले प्रश्नकाल एवं फिर शून्यकाल में गूंजा। भाजपा के विधायक हों या फिर विपक्षी कांग्रेस विधायक, सभी ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि मंत्रियों को अफसर बता कुछ रहे हैं जबकि हकीकत कुछ और है। सदन को संतुष्ट करने के लिए गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया और जल संसाधन मंत्री डा.रामप्रताप को कहना पड़ा कि जिन-जिन अफसरों ने गलत सूचनाएं दी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
भाजपा को सताने लगा हार का डर : हाल ही में राजस्थान में अलवर और अजमेर की दो लोकसभा और मांडलगढ़ की विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त खानी पड़ी है। इन तीनों क्षेत्रों में विधानसभा की कुल 17 सीटें आती हैं जिन सभी पर भाजपा को कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा है। इससे राज्य में सत्ताधारी पार्टी बुरी तरह से तिलमिलाई हुई है। राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार को चार साल से भी ज्यादा का वक्त हो गया है। इस साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में इन उपचुनावों में मिली हार से भाजपा की सांसें अटक गई हैं और उसे विधानसभा के चुनावों में हारकर सत्ता से बाहर होने का डर अभी से ही सताने लग गया है। वसुंधरा सरकार के इस कार्यकाल में प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर रहा है। इसके साथ ही आम जनता के बीच मंत्रियों और विधायकों की लोकप्रियता का ग्राफ काफी नीचे गिर गया है। ऐसे में सत्तारूढ़ दल अब अपनी कमजोरियों का ठीकरा अफसरों के माथे फोडऩे की कोशिश कर रहा है।
कद्दावर मंत्रियों की बात भी नहीं सुन रहे अफसर : हालांकि यह बात भी काफी हद तक सही है कि राजस्थान में नौकरशाही पर भाजपा सरकार की पकड़ ढीली पड़ चुकी है। इसके दो सबसे बड़े कारण हैं-पहला प्रदेश की शासन व्यवस्था में भारी भ्रष्टाचार और दूसरा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अधिनायकवादी कार्यशैली।
राजस्थान में भ्रष्टाचार बढऩे के कारण नौकरशाही पर अब राज में बैठे नेताओं की पकड़ ढीली हो गई है। वहीं राजे की कार्यशैली के कारण अफसर भी अब केवल मुख्यमंत्री और उनके कार्यालय के आदेशों को ही गंभीरता से लेते हैं। इसका नतीजा यह रहा है कि पिछले चार सालों के दौरान मंत्रियों और आला अफसरों के बीच खींचतान और मनमुटाव की घटनाएं सतह पर आ चुकी हैं। जूनियर मंत्रियों की बात तो दीगर है, अफसर कद्दावर और सीनियर मंत्रियों तक की बात नहीं सुन रहे हैं।
ऐसे में आम जनता के बीच सरकार की छवि और खराब हो रही है। सरकार की योजनाएं सही प्रकार से जमीन पर नहीं उतर सकी है। वहीं आम जनता की भावनाएं और उनकी अपेक्षाओं से सरकार भी अनजान सी बनी रही है। इसी का नतीजा पार्टी को चुनावी मैदान में चुकाना पड़ा है। राजे सरकार के कार्यकाल में नौ में से छह उपचुनावों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। हालांकि समय-समय पर पार्टी आलाकमान राजस्थान के हालातों की रिपोर्ट लेता रहा है और एक बार तो खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी जयपुर में तीन दिन रहकर यहां की स्थिति की जानकारी ले चुके हैं, लेकिन उसके बावजूद भाजपा आलाकमान राजस्थान के हालात को ठीक करने में नाकाम साबित हुआ है।