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बैकफुट: वसुंधरा सरकार ने विवादित बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा
जयपुर: राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने लोकसेवकों को संरक्षण देने वाले क्रिमिनल लॉ के संसोधन का बिल भारी विरोध के बाद आखिरकार पुनर्विचार के लिए सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया है।
गौरतलब है, कि इस बिल को लेकर राजस्थान विधानसभा के भीतर और बाहर सियासी बवाल मचा था। विपक्ष के हंगामे के बाद वसुंधरा राजे को बैकफुट पर जाना पड़ा है। बताया जा रहा है कि राजे ने कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों से इस मुद्दे पर बातचीत के बाद यह फैसला लिया।
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स्वामी ने बताया 'स्मार्ट मूव'
वसुंधरा राजे सरकार के इस फैसले का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने स्वागत किया है। स्वामी बोले, 'बिल को विधानसभा की सेलेक्ट कमिटी को भेजा जाना एक स्मार्ट मूव है। राजे ने अपने लोकतांत्रिक स्वभाव का परिचय दिया है।'
कांग्रेस की मांग अध्यादेश को वापस लें
इसके बाद राजस्थान विधानसभा में आज (24 अक्टूबर) जोरदार हंगामा देखने को मिला। इस बीच विधानसभा को दोपहर 01 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। बता दें, कि कांग्रेस पार्टी इस अध्यादेश को वापस लेने की मांग कर रही है।
लड़ाई हाईकोर्ट तक पहुंची
सोमवार को इस विवादित अध्यादेश की लड़ाई राजस्थान हाईकोर्ट पहुंच गई। इस अध्यादेश को एक वकील की ओर से चुनौती दी गई। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वकील एके. जैन ने राजस्थान हाईकोर्ट में वसुंधरा राजे सरकार के इस अध्यादेश को चुनौती दी है।
जानें क्या है अध्यादेश?
उल्लेखनीय है, कि राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दंड प्रक्रिया संहिता व भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया है। इसके तहत राज्य सरकार की मंजूरी के बिना शिकायत पर जांच के आदेश देने और जिसके खिलाफ मामला लंबित है, उसकी पहचान सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी गई है। अध्यादेश के अनुसार, राज्य सरकार की मंजूरी नहीं मिलने तक जिसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाना है, उसकी तस्वीर, नाम, पता और परिवार की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी। अनदेखी करने पर दो साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। 7 सितम्बर को जारी अध्यादेश के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत अदालत शिकायत पर सीधे जांच का आदेश नहीं दे पाएगी। अदालत, राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही जांच के आदेश दे सकेगी।
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