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राजस्थान में राज तो रानी का ही चलेगा!

raghvendra
Published on: 20 July 2018 8:31 AM GMT
राजस्थान में राज तो रानी का ही चलेगा!
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कपिल भट्ट

जयपुर: सात जुलाई को हाल के सालों में राजस्थान की राजनीति के लिए एक उल्लेखनीय दिन कहा जा सकता है। इस दिन राजधानी जयपुर के अमरूदों के बाग में हुए भव्य और विशाल सरकारी आयोजन ने सार्वजनिक रूप से साफ कर दिया कि राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे निर्विवाद नेता हैं और उनके सामने पार्टी में कोई चुनौती नहीं है। वैसे तो यह कार्यक्रम मोदी सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों के प्रधानमंत्री मोदी से संवाद के लिए रखा गया था, वहीं इसी के साथ ही राजस्थान में अरबों रुपयों की योजनाओं का भी प्रधानमंत्री के हाथों शिलान्यास करवाया गया। लेकिन हकीकत में यह राजस्थान में नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए भाजपा का शंखनाद था।

वहीं इस शंखनाद से एक बात साफ हो गई कि राजस्थान भाजपा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए कोई चुनौती नहीं है और वे ही राजस्थान में पार्टी की एकछत्र नेता हैं। इस कार्यक्रम में जो सबसे उल्लेखनीय बात दर्ज की गई वह थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी़ द्वारा वसुंधरा राजे की तारीफ। सभा में मोदी ने वसुंधरा की जो प्रशंसा की उसने तमाम आशंकाओं के बादलों को छांटते हुए राजस्थान में वसुंधरा राजे की निर्विवाद कमान को स्थापित कर दिया।

वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी के बीच का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। मोदी के शपथ समारोह से भी वो अलग रहीं। उस समय वो अपने पुत्र को मंत्री नहीं बनाये जाने से नाराज होकर राजस्थान के 20 से ज्यादा सांसदों को लेकर दिल्ली के बीकानेर हाउस में बैठी थीं। इन चार सालों में वसुंधरा कई मौकों पर मोदी की मीटिंग्स में जाने की बजाय दूसरे कार्यक्रमों में शिरकत करती रहीं। इन वर्षों में उनकी सरकार भ्रष्टाचार को लेकर पूरे समय कटघरे में रही। मोदी के पीएम बनने के बाद से कई बार वसुंधरा को बदलने की चर्चाएं चलीं लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।

इस बीच ललित मोदी सहित कई तरह के विवाद वसुंधरा के साथ जुड़ते रहे लेकिन पार्टी उनके खिलाफ कोई कदम उठाने से बचती रही। पार्टी को यही भय रहा की ऐसे में वसुंधरा बगावत कर सकती हैं जिससे निपटने को भाजपा तैयार नहीं थी। 2003 में पहली बार सीएम बनने के बाद से ही वसुंधरा राजे राजस्थान में अपनी ही चलाती आ रही हैं। राजस्थान में भाजपा विधायक, मंत्रियों, नौकरशाहों सभी के प्रति उनका रवैया अधिनायकवादी रहा है। अपनी महारानी वाली राजसी जिंंदगी और तौर तरीके वसुंधरा के अभी भी बरकरार हैं। पार्टी में भी उनकी ही चली है। वसुंधरा के कारण राजस्थान भाजपा में संगठन महामंत्री का पद 10 साल तक खाली रहा। प्रदेशाध्यक्ष भी कमोबेश उनकी मर्जी से ही बनते रहे।

पिछले दिनों राजस्थान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति के मामले में भी ऐसा ही देखने को मिला। फरवरी में दो लोकसभा और एक विधानसभा उप चुनावों में पार्टी की करारी हार के कारण राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी हटा दिया गया था। परनामी को हटे हुए दो महीने से भी ज्यादा का वक्त हो गया था लेकिन अभी तक पार्टी उनका उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं कर सकी। राजस्थान भाजपा के इतिहास में प्रदेशाध्यक्ष का पद पहली बार इतने लम्बे समय तक खाली रहा हो वो भी ऐसे समय में जब नवंबर में यहाँ विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इसकी वजह था भाजपा आला कमान और सीएम वसुंधरा राजे के बीच का टकराव।

आलाकमान जिस नेता केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाह रहा था वो वसुंधरा राजे को पसंद नहीं था। लिहाजा मामला अटक गया। प्रदेश अध्यक्ष का पद भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बन गया । इससे भाजपा की खासी किरकिरी तो हुई ही वंही नवंबर में होने जा रहे चुनावों के लिए उसकी तैयारियों पर भी विपरीत असर पड़ा लेकिन न तो आला कमान और न ही वसुंधरा राजे किसी व्यहारिक हल के मूड थे।

राज्य से पार्टी आलाकमान को कोई दर्जन भर दूसरे नाम भेजे गए लेकिन पार्टी आलाकमान ने इनमे से किसी पर भी अपनी सहमति दी। वसुंधरा राजे तो किसी भी तरह से झुकने के लिए तैयार नहीं थीं। प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर दिल्ली में चले लंबे घटनाक्रम के बाद आखिर विवशता में सत्तर दिन के बाद भाजपा आलाकमान ने बीच का रास्ता निकालते हुए 75 साल के बुजुर्ग नेता मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर अपनी साख बचाई। मदनलाल सैनी संघ से निकले नेता हैं और उनका ज्यादातर समय मजदूर संघ और दूसरे संगठनात्मक कामों में बीता है। सक्रिय राजनीति में वे एक बार ही 1990 में एमएलए बन सके हैं। पिछले दिनों ही पार्टी ने उनको राज्यसभा में भेजा है। मदनलाल सैनी की नियुक्ति साफ संकेत है आने वाले चुनावों में कमान वसुंधरा राजे के हाथों में ही रहेगी। चुनावों में लिए वसुंधरा राजे एक अगस्त से यात्रा पर निकलने जा रही हैं। पहले आलाकमान ने उनकी इस यात्रा को हरी झंडी नहीं दी थी लेकिन महारानी के आगे शायद उसकी नहीं चल सकी। एक बार फिर वसुंधरा राजे ने साबित कर दिया कि राजस्थान में तो उनकी ही चलेगी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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