×

ये है इंडिया! यहां रेपिस्ट आसाराम, नारायण साईं और MSG बन आते रहेंगे

Rishi
Published on: 9 Sept 2017 5:18 PM IST
ये है इंडिया! यहां रेपिस्ट आसाराम, नारायण साईं और MSG बन आते रहेंगे
X

नई दिल्ली : मैसेंजर ऑफ गॉड यानी राम रहीम सिंह इंसां के किले की तलाशी शुरू हो चुकी है। सात सौ एकड़ में फैले डेरा सच्चा सौदा के रहस्यलोक से पर्दा उठाने के लिए कोर्ट कश्मिनर की निगरानी में पांच हजार अर्धसैनिक जवान, 47 कमांडो, ताले तोड़ने वाले 22 लुहार और नोट गिनने के लिए 100 बैंककर्मी अपना पसीना बहा रहे हैं। एक ढोंगी का जलवा इतना कि इलाके में कर्फ्यू लगाना पड़ा है।

ये भी देखें:रविंद्र कुशवाहा ने दिग्विजय सिंह पर की आपत्तिजनक टिप्पणी, बताया पाकिस्तानी एजेंट

सवाल यह है कि ऐसे ढोंगियों की ध्वजा ढोने को लोग क्यों मजबूर हो जाते हैं? उस पर आंच आते ही लोग मरने-मारने पर क्यों उतारू हो जाते हैं? दुष्कर्मी ढोंगी को सजा मिलते ही हिंसा में 40 लोगों ने जान गंवा दी, उनकी पहचान तक नहीं हो पाई। ऐसा जुनून क्यों? सजा पाए ढोंगियों की कतार में आसाराम, नारायण साईं और रामपाल जैसे कई नाम हैं।

ये भी देखें:वाह रे यूपी पुलिस ! 4 साल के बच्चे पर किया शांति भंग का केस

ये भी देखें:हेल्थ मिनिस्टर ने दी गुड न्यूज: अब घर बैठे होगा स्किन के मरीजों का इलाज

भारत में खुद को ईश्वर का अवतार मानने वाले ऐसे संतों या बाबाओं के प्रति लाखों-करोड़ों लोगों की श्रद्धा या अंधभक्ति कोई नई बात नहीं है। लेकिन इन संतों के पीछे जुटने वाली भारी भीड़ और इनके कहे शब्दों पर अक्षरश: विश्वास करने और इनके घिनौने कामों का चिट्ठा खुलने के बावजूद इनके प्रति इन भक्तों की उमड़ती श्रद्धा एक बड़ा और जरूरी सवाल छोड़ जाती है कि आखिर ऐसा क्या है जो इन लोगों को ऐसे बाबाओं का अंधभक्त बना देता है? या आस्था रखना ही गलत है?

ये भी देखें:डिप्टी सीएम केशव ने कहा- सेवा शिक्षा के नाम पर होगा धर्म परिवर्तन बंद

इन प्रश्न के पीछे उत्तर ढूंढ़ने चलें तो धर्म के अलग तर्क होंगे और सामाजिक विज्ञान और मनोविज्ञान के कुछ और। गहराई से पड़ताल करें तो हम पाएंगे कि ऐसे स्वयंभू संतों के प्रति इस अंधभक्ति के मूल में चाहत है अपने दुखों, परेशानियों को दूर करने की, उस रिक्तता को भरने की जो समाज में आर्थिक-सामाजिक असमानता के कारण पैदा हुई है। इन्हीं दुखों को दूर करने और सुकून की तलाश में ही जन्म होता है इन डेरों और आश्रमों का, इन स्वयंभू संतों और गॉड के मैसेंजरों का।

ये भी देखें:रेड कलर में हॉट नजर आई अमीषा, अपनी उम्र से कम नजर आई इस फोटोशूट में

ये भी देखें:अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष को आसाराम समर्थकों ने दी जान से मारने की धमकी

जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख कहते हैं, "आस्था होना गलत नहीं है। हर किसी के जीवन में इतने ज्यादा तनाव हैं, इतने ज्यादा उतार चढ़ाव हैं..। अलग-अलग कारणों से नकारात्मक हों या सकारात्मक, हम सभी अपनी धार्मिक आस्था को अपने जीवन में कहीं न कहीं स्थान देते हैं। इसके अपने फायदे भी होते हैं, इससे सकारात्मकता आती हैं, तनाव दूर होता है, लेकिन इस स्थिति में कुछ कमजोर प्रवृत्ति के लोगों का इसमें जरूरत से ज्यादा ही झुकाव हो जाता है और उनके और जिनके प्रति उनकी आस्था है उनके बीच की रेखा धुंधली पड़ जाती है।"

ये भी देखें:फैंस की वजह से दिलीप कुमार की आंखों में आए आंसू, जानिए इसके पीछे की वजह

वह कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से किसी गुरु में आस्था रखना या ऐसी आस्थाओं का पालन करना गलत नहीं है, जो स्वस्थ हों। समस्या तब पैदा होती है जब यह आस्था आपके लिए या दूसरों के लिए ही हानिकारक साबित होने लगती है।"

ये भी देखें:Jaypee Group के सैकड़ों बायर्स ने घेर लिया पुलिस कंट्रोल रूम

ये भी देखें:श्राद्ध कर्म करते समय रखें इन जरूरी बातों का ध्यान, हो ना जाए कहीं कुछ अशुभ

पारिख कहते हैं, "जब आप किसी को एक खास स्तर पर या अपने से ऊपर रख लेते हैं और मान लेते हैं कि वह कोई गलती नहीं कर सकता, समस्या तब पैदा होती है। यह केवल धार्मिक गुरुओं के मामले में ही नहीं होता, बल्कि आप अगर किसी कलाकार को या किसी पसंदीदा खिलाड़ी को हीरो मानकर पूजने लगते हैं, तब उस मामले में भी यही स्थिति पैदा होती है। उदाहरण के तौर पर तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी को हीरो मानने वाले खेल प्रेमी भी जब किसी मैच में उन्हें खराब प्रदर्शन करते देखते हैं, तो वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए अपने और जिसे आप अपना हीरो मान रहे हैं, उसके बीच की महीन रेखा के फर्क को समझना जरूरी है।"

ये भी देखें:गोरखपुर BRD मेडिकल कॉलेज मामला, पुलिस के हत्थे चढ़ा चौथा आरोपी

दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय की समाजशास्त्र की प्रोफेसर शिरीन कहती हैं, "ऐसे लोग मूर्ख होते हैं और भक्ति में इतने अंधे हो जाते हैं कि वे इन स्वयंभू संतों को अपना भगवान मानने लगते हैं, लेकिन गहराई से देखें तो ये संत या बाबा लोगों के लिए समाजसेवा के बहुत से काम करते हैं। उनके लिए अस्पताल, स्कूल आदि बनाते हैं, रक्तदान शिविर चलाते हैं।"

ये भी देखें:पाकिस्तान में बसने की पेशकश ठुकरायी थी जिगर मुरादाबादी ने, जानिए अनसुने तथ्य

ये भी देखें:किसी को गुड़-बाजरा तो किसी को चाहिए पनीर, नॉनवेज से दूर ऐसी है बी-टाउन स्टार्स की डाइट

शिरीन कहती हैं, "बहुत से लोगों की उनके साथ उम्मीदें जुड़ जाती हैं। यह साथ ही हमारी सरकारों की नाकामी भी दर्शाता है, जो समाज के हर वर्ग की जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रहती है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे इन संतों या धर्मगुरुओं के साथ खुद को इतनी गहराई से जोड़ लेते हैं कि ये तथाकथित संत उनकी इस भक्ति का फायदा उठाते हैं और लोगों पर इस हद तक अपना विश्वास कायम कर लेते हैं कि वही सब होता है, जो इस मामले में भी हुआ।

ये भी देखें:फुटबाल लैंड़ पर लगेंगे चौके-छक्के, रणजी-2018 में दिखेगा पूर्वोत्तर का जलवा

इस मामले में आज के युवाओं की सोच को समझना भी काफी अहम है।

अंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्र अंबुज का मानना है कि अपनी जिम्मेदारियों को भारी बोझ समझने और उसे उठाने से घबराने वाले लोग भी ऐसे बाबाओं की शरण तलाशते हैं।

ये भी देखें:यहां मुस्लिम भाई करते हैं बजरंगबली की पालकी का स्वागत, हैं एकता की मिसाल

ये भी देखें:CBSE: 16,000 स्कूलों पर कसी नकेल, टीचरों का शोषण करने वाले अब नपेंगे

अंबुज कहते हैं, "लोग अपनी जिंदगी की जिम्मेदारियों को उठाने से भी घबराते हैं, ऐसे में गुरमीत राम रहीम इंसां जैसा कोई नया तथाकथित संत या गुरु जब उन्हें यह आश्वासन देता है कि वह उनकी जिंदगी का उद्धार कर देगा, उनके दुखों को दूर कर देगा, तो लोगों की भीड़ उसकी ओर जुटने लगती है और लोग उन्हें भगवान मानने लगते हैं।"

मनोविज्ञान की छात्रा काव्या कहती हैं, "भारतीय भले ही कितने भी आधुनिक हो गए हों, लेकिन फिर भी भगवान से जुड़ा कोई भी मुद्दा आज भी उनके लिए बहुत बड़ी बात बन जाती है।"

ये भी देखें:हर दिन करें केवल 25 मिनट योग, बॉडी बनेगी फिट, दूर होंगे कई रोग

ये भी देखें:अबू सलेम का UP कनेक्शन: आजमगढ़ की गलियों मे खेलता था कंचे, अब सलाखों के पीछे

यही आस्था और भक्ति तब और भी प्रबल हो जाती है, जब उसे अपने जैसे और बहुत से लोगों का सााथ मिल जाता है।

काव्या कहती हैं, "मनोविज्ञान के अनुसार, आपके धर्म की बात हो या राष्ट्रीयता की, लोगों पर ग्रुप कन्फर्मिटी का सिद्धांत लागू होता है। आपके अंदर यह भावना इतनी गहराई तक समा जाती है कि आप उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। मनुष्यों में खुद को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की प्रवृत्ति होती है, ऐसे में जब वे खुद को धर्म से जोड़ते हैं तो उसे अपना एक अटूट हिस्सा मानते हैं और उसके लिए मर-मिटने को भी सहज तैयार हो जाते हैं। यह भेड़चाल ही समस्या की जड़ है।"

ये भी देखें:पहली बार माना PAK ! उसकी धरती पर एक्टिव हैं आतंकी संगठन जैश-लश्कर

Rishi

Rishi

आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

Next Story