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रामसेतु पर विज्ञान की मुहर, भारतीय पौराणिक अवधारणा को मिला बल

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 12:57 PM IST
रामसेतु पर विज्ञान की मुहर, भारतीय पौराणिक अवधारणा को मिला बल
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नयी दिल्ली। रामसेतु एक बार फिर चर्चा में है। अमेरिका के साइंस चैनल ‘व्हाट ऑन अर्थ’ ने एक शोध में दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच जो पुल है वो मानव निर्मित ही है। साफ है कि इस शोध से एक बार फिर रामसेतु की भारतीय पौराणिक अवधारणा को बल मिला है कि राम ने इस पुल का निर्माण कराया था।

भारत से इतर अन्य देशों में इस पुल को एडम्स पुल भी कहा जाता है। शोध के मुताबिक ये पुल करीब 7 हजार साल पुराना है और इसकी लंबाई करीब 30 मील है। कुछ आर्कियोलॉजिस्ट और भूगर्भ वैज्ञानिकों ने सेटेलाइट के जरिए मिली रामसेतु की तस्वीरों, वहां की मिटटी और बाकी चीजों की स्टडी की और पाया की रामसेतु असल में था।

वीडियो में दिखाया गया है कि भू वैज्ञानिक भारत में इसी तरह के एक पुल के होने का जिक्र कर रहे हैं। रिसर्च करने पर इन भू वैज्ञानिकों को पता चला की बलुई धरातल पर मौजूद पत्थर कहीं और से लाए गए हैं और ये बलुई धरातल से भी बहुत पुराने हैं।

अमेरिकी आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने सेतु स्थल के पत्थरों और बालू के सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु के अस्तित्व के दावे को सच बताया है। वैज्ञानिकों ने इसको एक सुपर ह्यूमन एचीवमेंट बताया है।

अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं। इसकी उम्र करीब सात हजार साल से भी पुरानी बताई जा रही है। वहीं रिपोर्ट में यहां मौजूद पत्थरों को भी करीब चार-पांच हजार साल पुराना बताया गया है।

सेतुसमुद्रम परियोजना

साल 2005 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना की घोषणा की जिसके तहत तमिलनाडु को श्रीलंका के साथ जोड़ा जाना था। साथ ही इस रामसेतु का कुछ हिस्सा तोड़ा भी जाना था ताकि तमिलनाडु में छोटे-छोटे 13 एयरपोर्ट बनाए जा सकें। हालांकि इस परियोजना पर भी सालों से बहस छिड़ी है। पारिस्थितिकी संतुलन बिगडऩे की आशंकाओं के बीच तमाम सवाल उठे थे, देश की सुरक्षा पर खतरा भी बताया गया था।

रामायण में है जिक्र

रामायण की कहानी के मुताबिक राम ने पहले समुद्र से रास्ता मांगा था लेकिन तीन दिन तक यज्ञ के बावजूद समुद्र ने उनकी बात नहीं सुनी तो उन्होंने अग्निबाण से समुद्र को सुखा देने के बारे में सोचा। भयभीत समुद्र वहां पहुंचा और कहा कि राम की सेना में नल और नील के पास पुल बनाने की कला है और वह लंका तक पुल बना सकते हैं।

आज भी मल्लाहों को हम नदी पुत्र या गंगा पुत्र की संज्ञा देते हैं। संभव है तत्कालीन समाज में समुद्र के जल को सुखाने की बात से भयभीत वही हुआ होगा जिसकी आजीविका का साधन समुद्र के जीव जंतु रहे होंगे। नल और नील ने एक ऐसा पुल बनाया जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं तथा दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा। रामेश्वर में अभी भी कुछ ऐसे पत्थर पूजे जाते हैं।

इसलिए नहीं डूबते पत्थर

वैज्ञानिकों का मानना है कि रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं, जिन्हें ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहा जाता है। दरअसल यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं। जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्म हवा या फिर पानी से मिलती है तो वे खुद को कुछ कणों में बदल देती है। कई बार यह कण एक बड़े पत्थर को निर्मित करते हैं।

यह प्रक्रिया ऐसे पत्थर को जन्म देती है जिसमें कई सारे छिद्र होते हैं। छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पॉंजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इनका वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है। इस खास पत्थर के छिद्रों में हवा भरी रहती है।

यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है। लेकिन कुछ समय के बाद जब धीरे-धीरे इन छिद्रों में हवा के स्थान पर पानी भर जाता है तो इनका वजन बढ़ जाता है और यह पानी में डूबने लगते हैं। यही कारण है कि रामसेतु पुल के पत्थर कुछ समय बाद समुद्र में डूब गए और उसके भूभाग पर पहुंच गए।

नासा की तस्वीरों में है पुल

अमेरिकी स्पेस एजेंसी ‘नासा’ की सैटलाइट तस्वीरों के मुताबिक एक ऐसा पुल है जो रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक पहुंचता है। परन्तु किन्हीं कारणों से अपने आरंभ होने से कुछ ही दूरी पर यह समुद्र में समा गया है।

सियासी उबाल

  • कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि रामसेतु आस्था का विषय है। यह एक सांस्कृतिक विरासत है। उसके साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। यह बात हम पहले से कहते रहे हैं। हजारों वर्षों से राम का जीवन इस देश के कण-कण में है। एक बार फिर रामसेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाले गलत साबित हुए हैं।
  • गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने भी कहा कि अमेरिकी रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद उन लोगों को जवाब मिला, जिन्होंने रामसेतु पर सवाल उठाए।
  • कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला का कहना है कि रामसेतु तो पहले से है। हम सब उसको मानते हैं। यह लोग तो भ्रम फैला रहे हैं कि रामसेतु के ऐतिहासिक तथ्य को हम नहीं मानते हैं।
  • विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने कहा है कि भारत के इस गौरवशाली इतिहास को संजोया जाए और रामसेतु को राष्ट्रीय ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया जाए। परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव डा सुरेन्द्र कुमार जैन ने कहा है कि नासा का सैटेलाइट इस तथ्य की ओर पहले ही संकेत कर चुका था, इन वैज्ञानिक खोजों ने और स्पष्ट कर दिया है कि भगवान राम से जुड़ा रामसेतु भारत के गौरवशाली इतिहास का एक अटूट भाग हैं। राम को नकारने का एक षड्यंत्र रचा जा रहा है जो भारत को अपनी जड़ों से काटने का प्रयास है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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