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राम का नाम बदनाम न करो वरना...

अयोध्या देश का सबसे पुराना विवादित मुद्दा है। यह दुर्भाग्य ही कहें कि इस मुद्दे से जिन भी लोगों ने बेजा लाभ उठाने की कोशिश की है। उनमें से अधिकांश नेपथ्य में चले गए। इसको संयोग कहें या किस्मत का लेखा पर यह एक ऐसा कठोर सच है जिसे भुलाया नहीं जा सकता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद अयोध्या में तामीर करा दी।

राम केवी
Published on: 25 Nov 2018 8:04 PM IST
राम का नाम बदनाम न करो वरना...
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योगेश मिश्र

अयोध्या देश का सबसे पुराना विवादित मुद्दा है। यह दुर्भाग्य ही कहें कि इस मुद्दे से जिन भी लोगों ने बेजा लाभ उठाने की कोशिश की है। उनमें से अधिकांश नेपथ्य में चले गए। इसको संयोग कहें या किस्मत का लेखा पर यह एक ऐसा कठोर सच है जिसे भुलाया नहीं जा सकता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद अयोध्या में तामीर करा दी। मीर बाकी ने बाबर के कहने पर यह काम किया। पर बाद में बाबर ने ही अपनी सेना से उसे बाहर कर दिया। बाबर भी इसके बाद केवल दो साल जिंदा रह पाया तकरीबन 47 वर्ष की आयु में ही 26 दिसंबर 1530 को उसका इंतकाल हो गया।

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प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी ने मंदिर का ताला खुलवाया और शिलान्यास करवाया लेकिन राजीव गांधी दोबारा सत्ता में नहीं लौट पाए। तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह हुआ करते थे। वीर बहादुर भी दोबारा सत्ता में नहीं आ पाए। कल्याण सिंह ने भी 1992 में विवादित ढांचा गिरने की जिम्मेदारी कबूल करते हुए इस्तीफा दे दिया था। बाद में वह भाजपा से इस कदर कई बार अंदर बाहर हुए कि उन्हें राजनीतिक वनवास जैसा जीवन जीना पड़ा। हालांकि आज वह राजस्थान के राज्यपाल हैं पर एक समय वह भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में देखे जा रहे थे।

उमा भारती ने भी इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। डा. मुरली मनोहर जोशी के कंधे पर सवार इनकी फोटो को बहुत सुर्खियां मिली थीं पर वह भी मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री तो बनीं लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। उन्हें भाजपा छोड़नी पड़ी, हालांकि हाल फिलहाल मोदी कबीना में मंत्री हैं। डा. मुरली मनोहर जोशी सांसद तो हैं लेकिन उन्हें उनके मुताबिक जगह नहीं मिल पायी पार्टी में भी मार्गदर्शक मंडल में डालकर छोड़ दिये गए।

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राममंदिर के नायक रहे लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी ने प्रधानमंत्री उम्मीदवार बताते हुए एक चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं सकी, वह अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना की मजार पर जा पहुंचे, जिन्ना के पक्ष में उन्होंने कुछ शब्द क्या कहे हंगामा बरपा हो गया। वह भी सांसद हैं लेकिन पार्टी और सरकार में कोई जगह नहीं है, वह भी मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं। कभी बजरंग दल के अध्यक्ष रहे विनय कटियार का भी रिश्ता मंदिर आंदोलन से रहा है। वह अयोध्या छोड़कर संसद पहुंचने के लिए लखीमपुर खीरी गए पर जीत नहीं सके। पार्टी ने उन्हें सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली से लड़ाया। इसके चलते उनकी हवा ही निकल गई।

हालांकि राज्य सभा सदस्य तो बन गए लेकिन इन दिनो हाशिये पर हैं। 25 नवंबर के आंदोलन में अयोध्या में होते हुए भी मीडिया को छोड़कर कोई उनके पास नहीं गया। उस समय के फैजाबाद के पुलिस कप्तान डीबी राय 1996 और 1998 में दो बार सुलतानपुर से सांसद तो बने लेकिन फिर पार्टी ने उन्हें तवज्जो ही नहीं दी। उस समय के जिलाधिकारी आरएन श्रीवास्तव ने विश्व हिंदू परिषद में हाथ पैर तो मारा पर उन्हें संगठन या सरकार में कोई स्पेस नहीं मिल पाया।

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विहिप की ओर से कमान गिरिराज किशोर ने सम्हाल रखी थी उन्हें भी कभी कोई अहम पद नहीं मिला। समर बहादुर सिंह वकील थे बाद में सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। रामबाबू अग्रवाल के पास भी आंदोलन में महत्वपूर्ण काम था लेकिन ऐसा दुर्भाग्य घटा कि उनके घर में एक दिन में तीन लोगों ने फांसी लगा ली। इस आंदोलन से जुड़े ब्रह्मदत्त द्विवेदी की भी अकाल मौत हो गई।

इसे नीति और नियति की बात ही कहेंगे कि मुट्ठी भर ही सही ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने राम मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़ने के बाद भी कोई दिक्कत नहीं झेली। इनमें ताला खुलवाने के समय फैजाबाद के जिलाधिकारी रहे इंदुकुमार पांडे और पुलिस कप्तान कर्मवीर सिंह तथा जिला जज केएम पांडे का नाम प्रमुखता से आता है। यही नहीं विहिप के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल भी ऐसे भाग्यशाली लोगों में हैं। अटल बिहारी वाजपेयी इस आंदोलन से सीधे तौर पर नहीं जुड़े थे। उन्होंने 1992 के दौरान लखनऊ में एक सभा की और प्रशासन ने उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया। नतीजतन उन्हें तीन बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला लंबे समय तक बीमारी के बाद इसी वर्ष जब उनका निधन हुआ तो पार्टी सरकार और जनता ने उन्हें शिद्दत से श्रद्धांजलि दी।

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इसी तरह 60 साल तक राम के खिलाफ मुकदमा लड़ने वाले हाशिम अंसारी को अपनी सारी जिंदगी मुफलिसी में ही गुजारनी पड़ी। अब उनका बेटा इस मुकदमे को लड़ रहा है। और तो और अब की इस मुद्दे को लपकने के लिए उद्धव ठाकरे ने भी पूरे कुनबे के साथ जोर लगा दिया है नीयत साफ हुई तो हो भला वरना..

राम केवी

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