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किसान आंदोलन से रमन सरकार पर भी दबाव, उठाने लगे हैं अपने हक की आवाज

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Published on: 23 Jun 2017 10:10 AM GMT
किसान आंदोलन से रमन सरकार पर भी दबाव, उठाने लगे हैं अपने हक की आवाज
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राम शिरोमणि शुक्ल

रायपुर: छत्तीसगढ़ में भी मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसी हवाएं बहने लगी हैं। यहां भी किसान अपनी आवाज उठाने लगे हैं। वे अपनी मांगों पर दबाव डालने के लिए धरना, प्रदर्शन से लेकर हाईवे तक जाम कर रहे हैं। इन किसानों की मांग है कि उनकी हालत भी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के किसानों जैसी ही है। इसलिए उन्हें भी उत्तर प्रदेश जैसी कर्जमाफी चाहिए। यद्यपि यहां कर्ज की समस्या उत्तर प्रदेश जैसी नहीं है।

इसे सरकार की ओर से कहा भी जा रहा है, लेकिन कई अन्य समस्याएं वैसी ही हैं। छत्तीसगढ़ के किसानों की सबसे प्रमुख मांग बोनस की है जिसकी घोषणा खुद मुख्यमंत्री रमन ने कर रखी है, लेकिन वह किसानों को दिया नहीं जा रहा है। हाल-फिलहाल बोनस को एरियर के साथ दिए जाने की मांग भी जोर पकड़ रही है। ध्यान देने की बात है कि बोनस का मसला समर्थन मूल्य से जुड़ा है।

किसानों पर सरकार की हीलाहवाली

मुख्यमंत्री रमन सिंह ने विधानसभा में कहा था कि सरकार किसानों को 2100 रुपये धान का समर्थन मूल्य देगी। समर्थन मूल्य केंद्र तय करता है। केंद्र ने इस पर फैसला नहीं किया। ऐसे में किसान यह सवाल लगातार उठाते रहे और सरकार हीलाहवाली करती रही। बोनस के प्रति भी सरकार उदासीन बनी रही। इसी बीच मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन उठ खड़ा हुआ तो छत्तीसगढ़ में भी उसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई।

इससे पहले उत्तर प्रदेश में कर्ज माफी की घोषणा के बाद भी यहां किसानों में उम्मीद जगी थी कि उनकी सरकार भी उनके बारे में कुछ लाभकारी फैसला कर सकती है। ऐसा नहीं किए जाने से किसानों में कुछ निराशा भी हुई थी। मुख्यमंत्री ने साफ कह दिया था कि चूंकि यहां कर्ज की कोई समस्या नहीं है, इसलिए माफी का सवाल ही नहीं उठता। लेकिन फिलहाल हालात काफी कुछ बदले हुए हैं।

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चुनाव के कारण दबाव में है सरकार

एक तो पड़ोसी राज्यों में आंदोलन और दूसरे निकट भविष्य में होने वाला विधानसभा चुनाव। इन परिस्थितियों ने जहां किसानों को अपनी आवाज बुलंद करने का एक नया मौका दे दिया है वहीं सरकार भी चुनावी लाभ-हानि के मद्देनजर दबाव महसूस कर रही है।

सरकार और सत्ताधारी पार्टी भाजपा को यह चिंता सता रही है कि अगर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की तरह राज्य के किसानों ने आंदोलन जारी रखा तो चुनावों में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

फसल नुकसान, बीमा की अदायगी में मजाक, नोटबंदी के कारण बढ़ी परेशानियां, महंगे बीज और खाद ऐसे मुद्दे हैं जिनसे किसानों को जूझना पड़ रहा है। बोनस की मांग भी जायज है।

ऐसे में सिर्फ यह कहकर मुद्दे को टाला नहीं जा सकता कि यहां कर्ज की समस्या नहीं है। संभवत: यही कारण रहा होगा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जब राज्य के दौरे पर आए तो धान के समर्थन मूल्य पर अपनी ही सरकार में एक मंत्री के सवाल पर दो टूक कह दिया कि जो नहीं दे सकते, उस पर बात मत करो।

शाह तीन दिनों में जब यह समझ गए कि वाकई किसानों में नाराजगी है, तो जाते-जाते यह कहना नहीं भूले कि समर्थन मूल्य का मुद्दा खारिज नहीं हुआ है। इसके बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह की ओर से भी यह कहा गया कि केंद्र इस मुद्दे पर विचार कर रहा है। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं राज्य सरकार और सत्ताधारी भाजपा किसानों के मुद्दे पर दबाव में हैं।

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कर्ज की स्थिति और सरकारी व्यवस्था

छत्तीसगढ़ में किसानों के कर्ज पर राज्य सरकार की ओर से अलग व्यवस्था बनाई गई है। अनाज खरीद व्यवस्था ऐसी है कि सब सरकार खरीद लेती है। उसका भुगतान करते समय कर्ज काटकर शेष राशि किसानों को दी जाती है। इसके अलावा किसानों से ब्याज भी नहीं लिया जाता है। इस तरह किसानों पर अन्य राज्यों की तरह का कर्ज नहीं रह जाता है। हर साल 31 मार्च से पहले 70 फीसदी से अधिक किसान अपने कर्ज चुका लेते हैं।

अकाल जैसी प्राकृतिक आपदा के शिकार किसानों के बारे में भी सरकार की ओर से व्यवस्था की जाती है ताकि उन्हें अतिरिक्त परेशानी न झेलनी पड़े। छत्तीसगढ़ में कुल करीब 35 लाख किसान हैं। इनमें से करीब 12.50 लाख किसान खरीफ व रबी फसलों के लिए जिला सहकारी बैंकों से कर्ज लेते हैं। 2016-17 में इन बैंकों ने करीब 3100 करोड़ का कर्ज किसानों को दिया था। राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी 550 करोड़ का कर्ज दिया था। फसल बर्बाद होने के कारण किसान उसे चुका नहीं पाता। यही आत्महत्या का कारण बनता है। बैंक कर्ज वसूली के लिए दबाव बनाते हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसे किसान पांच एकड़ तक में खेती करने वाले ही हैं।

इन्हें अधिकतम पांच लाख तक का कर्ज ही मिलता है। इन पर करीब चार से पांच करोड़ का बकाया है। इन्हीं के आधार पर कर्ज माफी की मांग की जा रही है। किसानों नेताओं का तर्क है कि सरकारी योजनाओं का लाभ सभी किसानों को नहीं मिलता। ऐसे में उन्हें बाजार, परिचितों या साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है। किसानों को ट्रैक्टर, कृषि उपकरण सहित अन्य कामों के लिए बाजार दर पर कर्ज लेना पड़ता है। तमाम आॢथक कारणों से किसान इस कर्ज को नहीं चुका पाते हैं।

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मुख्यमंत्री के इलाके में दो किसानों ने जान दी

दो दिनों के भीतर दो किसानों की आत्महत्या से भी राज्य में किसान आंदोलन को मजबूती मिली है। किसान नेताओं और विपक्ष को सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया है। दो दिन पहले राजनादगांव में कर्ज से परेशान एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी। उसके अगले दिन कवर्धा में एक किसान ने अपनी जान दे दी।

यह आत्महत्या भी कर्ज से परेशानी के कारण बताई जाती है। राजनांदगांव मुख्यमंत्री रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र और कवर्धा गृह जिला है। कांग्रेस का कहना है कि जब मुख्यमंत्री के इलाकों के किसानों का यह हाल है तो राज्य के किसानों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

संयुक्त किसान मोर्चा का आंदोलन

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के बाद छत्तीसगढ़ में संयुक्त किसान मोर्चा का गठन कर आंदोलन शुरू कर दिया गया है। मोर्चा में 20 से ज्यादा संगठन शामिल हैं। कांग्रेस और जोगी कांग्रेस का भी इस आंदोलन को समर्थन प्राप्त है। बीते 11 जून को मोर्चा की ओर से पूरे राज्य में धरना-प्रदर्शन किया गया था। एक दिन हाईवे जाम भी किया गया।

अपनी मांगों को मनवाने के लिए आगामी दिनों में मोर्चा की ओर से अन्य विरोध कार्यक्रम आयोजित किए जाने की भी घोषणा की गई है। मोर्चा की मांगों में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू किया जाना, कर्ज माफी की घोषणा करना, 2100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर्थन मूल्य और 300 के भाव से पिछले चार साल का बोनस दिए जाने समेत कई अन्य मांगें शामिल हैं।

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