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Ranga Billa Ki Kahani: रंगा-बिल्ला दो ऐसे अपराधी जिन्होंने फिरौती के लिए किया घिनौना काम
Ranga Billa Crime History in Hindi: रंगा और बिल्ला की कहानी एक छोटी सी मासूम की हत्या से जुड़ी हुई थी। इन्होंने एक नाबालिग बच्चे का अपहरण किया, उसे कठोर यातनाएं दीं और अंततः उसकी हत्या कर दी।
Ranga Billa Kaun The: रंगा-बिल्ला का नाम भारतीय अपराध इतिहास में एक ऐसे कांड से जुड़ा हुआ है, जो न केवल पंजाब राज्य में, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना। यह एक ऐसा अपराध था, जिसने समूचे देश को झकझोर दिया और एक बार फिर अपराध, न्याय और प्रशासनिक विफलताओं पर सवाल उठाए। रंजीत सिंह (रंगा) और बलिंदर सिंह (बिल्ला) की कहानी एक भयावह अपराध से जुड़ी है, जिसने राज्य के नागरिकों में गहरी नाराजगी पैदा की। इस कांड के बाद पूरे पंजाब और देशभर में अपराध और कानून व्यवस्था को लेकर व्यापक बहस हुई,इसके परिणामस्वरूप कई राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे उभर कर सामने आए।
रंजीत सिंह और बलिंदर सिंह: कौन थे ये अपराधी
रंजीत सिंह (रंगा) और बलिंदर सिंह (बिल्ला) दो युवक थे, जिनका नाम पंजाब में एक नृशंस अपराध से जुड़ा। ये दोनों अपराधी, जिनकी उम्र करीब 20 साल के आसपास थी, पंजाब के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते थे। उनका जीवन अपराधों से भरा था। दोनों ने कई बार छोटे-मोटे अपराधों में भाग लिया था। लेकिन उनका नाम एक भयावह कांड से जुड़ा जब उन्होंने एक छोटे से बच्चे का अपहरण किया और फिर उसे निर्दयता से मार डाला।
रंगा और बिल्ला की कहानी एक छोटी सी मासूम की हत्या से जुड़ी हुई थी। इन्होंने एक नाबालिग बच्चे का अपहरण किया, उसे कठोर यातनाएं दीं और अंततः उसकी हत्या कर दी। इसके बाद, शव को छिपाने के लिए उन दोनों ने कई प्रयास किए, लेकिन जल्द ही मामला उजागर हो गया। इस हत्याकांड ने पूरे राज्य को दहला दिया, और मीडिया में यह मामला तेज़ी से चर्चा का विषय बना।
शुरुआत में अपराध
रंगा और बिल्ला की आपराधिक गतिविधियाँ मुंबई में कार चोरी से शुरू हुईं, जहाँ वे चोरी की कारों को बेच दिया करते थे। बाद में, उनका तरीका और भी जघन्य हो गया, जब वे बच्चों का अपहरण करने लगे और फिरौती लेकर उन्हें छोड़ देते थे।
एक बार बिल्ला पुलिस के हाथों पकड़ा गया। लेकिन उसने ठाणे की जेल से भागने में सफलता हासिल की और फिर मुंबई छोड़कर दिल्ली और आसपास के इलाकों में अपराध करने लगा।
अशोक शर्मा की कार चोरी और हत्या का अपराध
यह घटना अगस्त 1978 की है, जब 14 वर्षीय गीता चोपड़ा और उसका 16 वर्षीय भाई संजय चोपड़ा, जो नौसेना अधिकारी के बच्चे थे, को रंगा और बिल्ला ने किडनैप कर लिया। रंगा और बिल्ला ने बच्चों को किडनैप करने के बाद फिरौती मांगने की योजना बनाई थी। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि बच्चों के पिता नौसेना अधिकारी हैं। जिससे वे दोनों डर गए और दोनों बच्चों को मारने की योजना बनाई। कार में ही दोनें बच्चों को बेरहमी से पीटा गया जिसके बाद दोनों बच्चे लहूलुहान हो गए ।
पर संजय ने होशियारी दिखाई और जब भीड़ वाले रास्ते से कार जा रही थी तो संजय से जोरों से चिल्लाना शुरू कर दिया और गीता रंगा के बाल खींचने लगी थी।भगवान दास, जो बंगला साहब गुरुद्वारे से नॉर्थ एवेन्यू की ओर स्कूटर से जा रहे थे, ने उसकी आवाज सुनी और उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन रंगा ने गाड़ी नहीं रोकी। भगवान दास ने पुलिस को सूचना दी और गाड़ी का नंबर MRK-8930 बताया।
गैंगस्टरों द्वारा हत्या और बलात्कार
रंगा और बिल्ला गाड़ी भगाते हुए रिज इलाके में पहुंचे, जहाँ उन्होंने पहले संजय की हत्या की और फिर गीता के साथ बलात्कार किया। बलात्कार के बाद रंगा गीता को उसके भाई की लाश की ओर ले जा रहा था, तभी बिल्ला ने गीता की गर्दन पर तलवार से वार कर दिया, जिससे गीता की मौके पर ही मौत हो गई।
फिर उसकी लाश को सड़क किनारे फेंक दिया और वे दोनों भाग निकले।
पुलिस की खोज और गिरफ्तारी
जब गीता और संजय घर नहीं पहुंचे, उनके पिता मदन चोपड़ा ने पुलिस से शिकायत की। लेकिन पुलिस ने पहले ही दो बच्चों के अपहरण की सूचना प्राप्त की थी और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। बाद में पुलिस ने 140 कर्मियों को 30 अलग-अलग गाड़ियों में भेजकर बच्चों की तलाश शुरू की। लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
27 अगस्त को हरियाणा और यूपी पुलिस भी इस मामले में शामिल हो गई और पुलिस ने गाड़ी के बारे में सूचना प्राप्त की, जिसे भगवान दास ने देखा था।
लाशों की खोज और पहचान
29 अगस्त को एक चरवाहे ने लाशें देखीं और पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर दो लाशें बरामद की, जिनमें से एक गीता की और दूसरी संजय की थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गीता के शरीर में 5 और संजय के शरीर में 21 गहरे घाव थे।
रंगा और बिल्ला 8 सितंबर, 1978 को कालका मेल में चढ़े, और एक आर्मी अफसर ने उन्हें पहचान लिया। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की।
फांसी की सजा और अंतिम संस्कार
फांसी की सजा 31 जनवरी, 1982 को तय की गई। मेरठ से जल्लाद कालू और फरीदकोट से फकीरा को बुलाया गया। रंगा और बिल्ला को फांसी दी गई।जब डॉक्टरों ने उन्हें जांचा, तो बिल्ला की मौत हो चुकी थी।लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही थी।
जेल प्रशासन ने रंगा के पैर खींचे और उसे भी फांसी दे दी। अंत में, उनके परिवारों ने शवों का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया और जेल प्रशासन ने खुद उनका अंतिम संस्कार किया।
इस घटना का प्रभाव
इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया। बच्चों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठे।उस समय के अखबार और रेडियो ने इस घटना को प्रमुखता से कवर किया, जिससे यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। इस घटना ने कई किताबों और फिल्मों को प्रेरित किया।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर पत्थर फेंकने की घटना
1979 में, जनता पार्टी की सरकार सत्ता में थी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे।यह घटना तब हुई जब अटल जी एक सार्वजनिक सभा को संबोधित कर रहे थे।सभा के दौरान अचानक कुछ असामाजिक तत्वों ने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।पत्थरबाजी में अटल जी को चोट लगी, लेकिन उन्होंने संयम बनाए रखा।अटल जी ने इस घटना को शांति और धैर्य के साथ संभाला। उन्होंने सभा को समाप्त किए बिना अपना भाषण जारी रखा, जिससे जनता में उनकी छवि और मजबूत हो गई।
मोरारजी देसाई की प्रतिक्रिया और नेतृत्व- मोरारजी देसाई उस समय प्रधानमंत्री थे। उन्होंने इस घटना को गंभीरता से लिया और सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दिए।मोरारजी देसाई को उनकी कठोर अनुशासनप्रियता और ईमानदारी के लिए जाना जाता था। लेकिन उनके नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार में अंदरूनी कलह बढ़ रही थी।इस घटना ने जनता पार्टी की सरकार की छवि पर गहरा प्रभाव डाला। मोरारजी देसाई का नेतृत्व कमजोर माना जाने लगा, और यह सरकार 1980 में गिर गई।
क्यों यह घटना प्रसिद्ध हुई
रंगा और बिल्ला का नाम इस कांड के कारण प्रसिद्ध हुआ क्योंकि यह घटना सिर्फ एक हत्याकांड नहीं थी, बल्कि यह एक बर्बरता और असंवेदनशीलता की मिसाल बन गई। यह अपराध इतना घिनौना था कि पूरे पंजाब और देश में इसे लेकर गुस्सा फूट पड़ा।
इस घटना ने न केवल पंजाब की पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, बल्कि राज्य की कानून-व्यवस्था की भी पोल खोल दी। इसके अलावा, यह घटना पंजाब में अपराध के बढ़ते स्तर को दर्शाती थी, खासकर उस समय जब राज्य में आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता ने माहौल को और भी विकट बना दिया था।
सरकार और जनता की प्रतिक्रिया
इस घटना ने राज्य सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया था। राज्य की पुलिस और प्रशासन की नाकामी इस कांड में स्पष्ट रूप से उजागर हुई थी। लोगों का कहना था कि अपराधियों को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियाँ राज्य सरकार की नीतियों के कारण थीं। राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक विफलता ने अपराधियों को खुलेआम अपनी गतिविधियों को अंजाम देने की छूट दे दी थी।
दूसरी ओर, इस घटना ने समाज में एक अजीब सी घबराहट और डर का माहौल बना दिया। लोग भयभीत थे कि अगर इतनी जघन्य हत्या को बिना किसी डर के अंजाम दिया जा सकता है, तो समाज में सुरक्षा की स्थिति क्या होगी? इसके बाद के दिनों में, न्याय के प्रति जनता का विश्वास और बढ़ा। लोग चाहते थे कि अपराधियों को कठोर सजा मिले ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।