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रानी गाइदिनल्यूः कौन थी यह 13 साल की लड़की, क्यों कहते हैं रानी

रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के तौसेम उप-खंड के नुन्ग्काओ (लोंग्काओ) नामक गाँव में हुआ था। अपने माता-पिता की आठ संतानों में वे पांचवे नंबर की थीं। उनके परिवार का पुरोहिताई के काम के नाते गांव के शासक वर्ग से संबंध था।

Dharmendra kumar
Published on: 26 Jan 2021 8:39 AM IST
रानी गाइदिनल्यूः कौन थी यह 13 साल की लड़की, क्यों कहते हैं रानी
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रानी गाइदिनल्यू की 26 जनवरी को जयंती है। वह एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थीं। उन्होंने नागालैंड में स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख जगाई।

रामकृष्ण वाजपेयी

रानी गाइदिनल्यू की 26 जनवरी को जयंती है। वह एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थीं। उन्होंने नागालैंड में स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख जगाई। और इस सुदूरवर्ती राज्य से अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया। इस वीरांगना को आजादी की लड़ाई में तमाम वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए ‘नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है। उनके हेराका कबीले के लोग उन्हें चेराचमदिनल्यू देवी का अवतार भी मानते रहे।

रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के तौसेम उप-खंड के नुन्ग्काओ (लोंग्काओ) नामक गाँव में हुआ था। अपने माता-पिता की आठ संतानों में वे पांचवे नंबर की थीं। उनके परिवार का पुरोहिताई के काम के नाते गांव के शासक वर्ग से संबंध था। लेकिन उनके क्षेत्र में कोई स्कूल न होने के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हो पायी।

हेराका आन्दोलन में शामिल हो गयीं

मात्र 13 साल की उम्र में वे अपने चचेरे भाई जादोनाग के ‘हेराका’ आन्दोलन में शामिल हो गयीं। प्रारंभ में इस आन्दोलन का स्वरुप धार्मिक था पर धीरे-धीरे इसने राजनैतिक रूप धारण कर लिया जब आन्दोलनकारियों ने मणिपुर और नागा क्षेत्रों से अंग्रेजों को खदेड़ना शुरू किया। अंग्रेजों ने रानी गाइदिनल्यू को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ़्तार कर लिया। उस समय उनकी उम्र मात्र 16 साल थी। लेकिन उनकी रिहाई के प्रयास नहीं किए गए। भारत की आजादी के बाद सन 1949 में उनकी रिहाई हुई। आजादी के बाद उन्होंने अपने लोगों के विकास के लिए कार्य किया।

नागाओं पर अंग्रेजी, अंग्रेज संस्कृति, ईसाई मजहब और अंग्रेजी भाषा थोपी जाने लगी तो इन चीजों के खिलाफ नागाओं ने शस्त्र उठाया और उनकी पुरोधा बन कर आगे आई रानी गाइदिनल्यू। बात 1931 की है हालांकि वह उस समय वहां के ईसाई स्कूल में दसवीं कक्षा की छात्रा थी। उस उम्र में उसने सशस्त्र नागाओं को संगठित करके सेना बनाई और अंग्रेजों से संग्राम किया।

rani gaidinliu

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गाइदिनल्यू को दी गई आजीवन कारावास की सजा

उस क्रांति का दमन करने के इरादों से अंग्रेजों ने गांव के गांव जलाकर बर्बाद कर दिये। इस तरह रानी गा इदिनल्यू की क्रांति का प्रतिशोध अंग्रेजों ने चुकाया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गई और उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई।

उस समय देश के कई प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल ही था लेकिन यह नेता समझौतावादी थे। अनेक प्रांतों में कांग्रेस सरकार बना कर भी उस क्रांति पुत्री को जेल से रिहा कराना तो दूर रहा। कोई उससे जेल में मिलने तक नहीं गया। यह बात क्रांतिकारी और लेखक वचनेश त्रिपाठी ने लिखी है। वह लिखते हैं कांग्रेसी उसके लिए कोई प्रश्न विधानसभा में इसलिए नहीं उठा पाए क्योंकि अंग्रेज वायसराय ने ऐसा कोई प्रश्न उठाने की इजाजत ही कांग्रेस वालों को नहीं दी। फिर उसे रिहा कौन कराता।

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रानी विशेषण या रानी का सम्मान

उस समय तमाम राजनीतिक कैदी रिहा हुए लेकिन क्रांतिकारी कैदी रानी गाइदिनल्यू फिर भी रिहा नहीं की गई नागा क्षेत्र के कबीले उसे रानी ही कहते थे क्योंकि वह उनकी नेता थी। अगवा थीं। सबसे प्रमुख थी। शहीदे आजम भगत सिंह के साथी रहे वचनेश त्रिपाठी ने लिखा है यह कहना गलत है कि नेहरू ने गाइदिनल्यू को रानी विशेषण या रानी का सम्मान दिया। सम्मान में प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा परंतु रानी शब्द उसके लिए उस कबीले में बहुत पहले से परिचित था। जब नेहरू को गाइदिनल्यू का नाम भी ज्ञात नहीं था।

नागा सरहद पर एक कोबाई कबीले में गाइदिनल्यू जन्मी। उसके पिता नागाओं की पुरोहिताई करते थे। भारत आजाद हुआ। तब भी गाइदिनल्यू को जेल से ना छोड़ा गया। उसकी रिहाई के लिए लंदन की संसद में प्रश्न उठाया गया। कांग्रेस ने हरिपुरा अधिवेशन में उसकी रिहाई का प्रस्ताव पारित किया। परंतु प्रस्तावों से अंग्रेजों पर क्या असर पड़ता। रानी गाइदिनल्यू जेल से रिहा हो पाई अपनी 31 वर्ष की उम्र में 1949 में।

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नागा महासभा

गाइदिनल्यू ने देखा था कि किस तरह अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता और मजहब का जाल फैलाकर अंग्रेजों ने नागा प्रदेश की नागा महासभा नाम की संस्था को अपने चंगुल में कर लिया है कि इस सभा ने ही कोशिश शुरू कर दी कि पूरा नागा क्षेत्र अंग्रेजों के कब्जे में आ जाए और वह हो भी गया। यह बात 1919 की है। आगे आओ भाषा में डब्ल्यू आओ की लिखी बाइबल ने नागा क्षेत्र में वह काम किया। जिसे फादर स्काट ने आगे बढ़ाया।

कहना यह है कि सन 1931 में जो क्रांति की धूनी नागा क्षेत्र में रानी गाइदिनल्यू ने धधकाई थी, वह शायद अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता के विरुद्ध प्रचंड हुई थी। देश आजाद होने पर भी जो नागा प्रदेश अंग्रेजी, अंग्रेजी भाषा, ईसाई मजहब, अंग्रेजी संस्कृति, सभ्यता से मुक्त नहीं हो सका तो यह देश की सुरक्षा के लिए संकट कारक और दुर्भाग्य ही है।

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