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Rani Laxmibai Jayanti: महान रानी लक्ष्मीबाई, बेहद कठिन थी मणिकर्णिका से महारानी बनने की कहानी
Rani Laxmi bai Jayanti: "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" फेमस कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता आज भी युवाओं के दिलों में बसता है। ।
Rani Laxmibai Jayanti: "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" फेमस कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता आज भी युवाओं के दिलों में बसता है। आज वीरता और नारी शक्ति की मिसाल देने वाली झांसी की रानी यानी रानी लक्ष्मीबाई की जयंती है। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस ने अंग्रजों को झांसी में टिकने नहीं दिया।
पेशवा ने बेटी की तरह की देखभाल
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 19 नवंबर 1828 को हुआ। बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका था और उन्हें प्यार ने मनु बुलाते थे। जब वे 4 साल की हुई, तब उनकी मां गुजर गईं। फिर पिता मोरोपंत तांबे बिठूर जिले के पेशवा के यहां काम करते थे और पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह देखभाल की और प्यार से उनको छबीली नाम दिया।
झांसी में मिला लक्ष्मीबाई नाम
साल 1842 में मनू का ब्याह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। फिर सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन 4 माह बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
इसके बाद राजा गंगाधर राव का सेहत बिगड़ने लगा तब उन्होंने दत्तक पुत्र को गोद लिया। बता दें इसके बाद 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
झांसी राज्य को बचाने का संकल्प
जब राजा का देहांत हुआ तब अंग्रेजों ने झांसी को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई। बता दें अंग्रेजों ने दामोदर राव को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। तब रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला छोड़कर झांसी के रानीमहल में जाना पड़ा। लेकिन फिर भी रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झांसी राज्य की रक्षा करने का वादा किया।
नारी सेना का गठन
दरअसल झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया। तब रानी लक्ष्मीबाई को गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बख्श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भऊ बख्शी, मोती भाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह का साथ मिला। रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं को भी तलवारबाजी सिखाई और एक नारी सेना का गठन किया।
अंग्रजों से की युद्ध
7 मई 1857 को ह्यूरोज अपनी सेना के साथ झांसी आ गया और आक्रमण किया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने कई दिनों तक वीरतापूर्वक और अपनी साहस से झांसी की सुरक्षा की और अपनी सेना के साथ मिलकर अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी लक्ष्मीबाई अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं। फिर वे कालपी की तरफ चली गई। जिसके बाद अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई का पीछा किया।
ग्वालियर किला पर कब्जा
रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर किला पर आक्रमण किया और वहां के किले पर अपना अधिकार जमा लिया। लेकिन सेनापति ह्यूरोज अपनी सेना के साथ रानी लक्ष्मीबाई का पीछा करता रहा और उसने युद्ध कर ग्वालियर का किला अपने कब्जे में कर लिया। आपको बता दें 18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ जोकि रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए लड़ा, लेकिन इस दौरान रानी लक्ष्मीबाई घायल हो गईं और वीरगति प्राप्त की। आज भी रानी लक्ष्मीबाई की साहस और वीरता को याद किया जाता है।