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हैदराबाद में एक और एनकाउंटर! जब सीने में दागी थी पुलिस ने दनादन गोलियां

घटना दिसंबर 2008 की है। वारंगल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज की दो छात्राओं के ऊपर उन्हीं के साथ पढ़ने वाले तीन युवकों पर एसिड फेंकने का आरोप लगा था।एसिड अटैक में दोनों छात्राएं बुरी तरह से झुलस गईं थी।

Shivakant Shukla
Published on: 6 Dec 2019 9:51 AM GMT
हैदराबाद में एक और एनकाउंटर! जब सीने में दागी थी पुलिस ने दनादन गोलियां
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नई दिल्ली: तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में बीते 27 नवंबर को लेडी डॉक्टर के साथ हुए गैंगरेप केस के चारों आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं। पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएशन के लिए उन्हें घटनास्थल पर लेकर आई थी। उसी दौरान पुलिस ने एनकाउंटर को अंजाम दिया। लेकिन ये पहली घटना नहीं है जब तेलंगाना में ऐसे मामले में एनकाउंटर हुआ हो। तो आइए आपको बताते हैं है कि ऐसी घटना इसके पहले कब हुई है।

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इंजीनियरिंग की छात्रा पर फेंका था एसिड

घटना दिसंबर 2008 की है। वारंगल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज की दो छात्राओं के ऊपर उन्हीं के साथ पढ़ने वाले तीन युवकों पर एसिड फेंकने का आरोप लगा था।एसिड अटैक में दोनों छात्राएं बुरी तरह से झुलस गईं थी। उस वक्त भी पुलिस ने ऐसी ही तत्परता दिखाते हुए घटना होने के मात्र 48 घंटे बाद ही तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। आरोपियों को पुलिस ने कोर्ट में भी पेश कर दिया था।

मोबाइल बरामदगी के लिए घटनास्थल पर लाई थी पुलिस

वारंगल पुलिस ने कोर्ट से तीनों आरोपियों की दो बार रिमांड ली थी। पहली बार भी रिमांड पर लेकर पुलिस तीनों को घटनास्थल पर लाई थी। दूसरी बार भी घटना के 12वें दिन पीड़ित छात्राओं के मोबाइल, एसिड फेंकने वाली वस्तु आदि की बरामदगी के लिए पुलिस आरोपियों को घटनास्थल तक लाई थी। लेकिन तीनों आरोपियों ने भागने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें पकड़ना भी चाहा, लेकिन भागने की कोशिश में तीनों आरोपी एनकाउंटर के दौरान मारे गए थे।

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ऐसे में एक बार फिर से ऐसी ही दूसरी वारदात होने के बाद यादें ताजा हो गई हैं। जहां इस मामले को लेकर कुछ लोगों को कहना है कि पुलिस ने बहुत अच्छा किया तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि किसी को भी कानून को हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। देखा जाय तो ऐसे मामले देश में लगातार बढ़ रहे हैं तो देश में इसको लेकर अब कड़े कानून बनाने की भी मांग होने लगी है। लेकिन अब देखना होगा कि क्या देश में रेप को लेकर कड़े कानून बनाए जाते हैं या फिर अभी भी बेटियां बलि पर चढ़ती रहेंगी।

Shivakant Shukla

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