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Child Birth Ratio In India: भारत में तेजी से आ रही चाइल्ड बर्थ रेशियो में गिरावट, कहीं छिन न जाए यंग इंडिया का खिताब, हैरान कर देने वाले हैं आंकड़े

Current Child Birth Ratio In India: भारत में जनसंख्या वृद्धि हमेशा से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। लेकिन हाल के दशकों में जन्म दर (चाइल्ड बर्थ रेशियो) में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। आइए जानें इसके पॉजिटिव और निगेटिव पहलू।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 26 Feb 2025 7:10 AM IST (Updated on: 26 Feb 2025 7:10 AM IST)
Child Birth Ratio In India: भारत में तेजी से आ रही चाइल्ड बर्थ रेशियो में गिरावट, कहीं छिन न जाए यंग इंडिया का खिताब, हैरान कर देने वाले हैं आंकड़े
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Child Birth Ratio In India (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Child Birth Ratio Declined In India: भारत को 'यंग इंडिया (Young India)' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां की जनसंख्या में युवाओं की अधिकता है। भारत की लगभग 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, और 50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। यह युवा जनसंख्या देश की आर्थिक प्रगति और नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में जनसंख्या वृद्धि हमेशा से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। लेकिन हाल के दशकों में जन्म दर (चाइल्ड बर्थ रेशियो) में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज जैसी संस्थाओं द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर चुकी है। 1950 के दशक में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) प्रति महिला 6.18 बच्चे थी, जो 2021 में घटकर 1.91 रह गई। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह दर 2050 तक 1.29 और सदी के अंत तक 1.04 तक पहुंच सकती है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे गिरकर 2.0 हो गई है। यह गिरावट सभी धार्मिक समूहों में देखी गई है, हालांकि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर में अंतर अभी भी मौजूद है। 1992 में यह अंतर प्रति महिला 1.1 बच्चे था, जो 2019 में घटकर 0.42 रह गया।

क्षेत्रीय स्तर पर, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और मणिपुर जैसे राज्यों में प्रजनन दर अभी भी प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर है, जबकि अन्य राज्यों में यह स्तर से नीचे आ चुकी है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल और असम में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की प्रजनन दर में तेजी से गिरावट आई है, जिससे दोनों समुदायों के बीच अंतर कम हुआ है।

भारत में जन्म दर के ऐतिहासिक आंकड़े (Historical Statistics Of Birth Rate In India)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भारत में प्रजनन दर में पिछले 70 वर्षों में भारी गिरावट आई है। इस रिपोर्ट में हम इस गिरावट के विभिन्न कारणों, इसके प्रभावों, और भविष्य के परिदृश्यों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

वर्ष

कुल प्रजनन दर (TFR)

1950

6.18

1980

4.5

2000

3.2

2010

2.4

2021

1.91

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे गिरकर 2.0 हो गई है।

क्षेत्रीय अंतर

भारत में जन्म दर राज्यवार भिन्न होती है।

राज्य

कुल प्रजनन दर (TFR)

बिहार

3.0

उत्तर प्रदेश

2.7

झारखंड

2.3

मध्य प्रदेश

2.1

महाराष्ट्र

1.8

पश्चिम बंगाल

1.6

केरल

1.5

धार्मिक समुदायों में प्रजनन दर

धार्मिक आधार पर प्रजनन दर में भी अंतर देखा जाता है। आइए देखते हैं धर्म के अनुसार कुल प्रजनन दर (TFR) में बदलाव।

धर्म

कुल प्रजनन दर (TFR) में बदलाव

हिंदू

1.94

मुस्लिम

2.36

सिख

1.61

ईसाई

1.88

जैन

1.2

हालांकि, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच का अंतर 1992 में 1.1 था, जो अब घटकर 0.42 हो गया है।

जन्म दर में गिरावट के प्रमुख कारण

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

प्रजनन दर में इस गिरावट के पीछे कई कारक हैं, जैसे महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि। महिलाएं अब परिवार बसाने से ज्यादा शिक्षा और करियर की ओर ज्यादा अग्रसर हैं। आर्थिक कारक में जीवनयापन की बढ़ती लागत और रोजगार की कमी छोटे परिवारों की ओर प्रवृत्त कर रही है। परिवार नियोजन सेवाओं की बेहतर उपलब्धता, और शहरीकरण के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास।

हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अभी भी उच्च प्रजनन दर बनी हुई है, जहां स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सेवाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अगला सबसे मुख्य कारण हैं सरकारी योजनाएं। परिवार नियोजन और महिला सशक्तिकरण से संबंधित नीतियों का प्रभाव समग्र रूप से भारत में देखा जा सकता है।

जन्म दर में गिरावट के सकारात्मक प्रभाव (Positive Effects Of Decline In Birth Rate)

भारत में जन्म दर में गिरावट से कई पहलू निकल कर सामने आ रहें हैं। अगर बात करें इसके सकारात्मक प्रभाव कि तो देश की अर्थव्यवस्था पर कई तरह का असर देखा जा सकता है, जिसमें मुख्य तौर पर घटती जन्मदर से अर्थव्यवस्था पर दबाव कम होने से संसाधनों पर भार घटेगा। महिला सशक्तिकरण के बढ़ने से महिलाएं अधिक स्वतंत्र होंगी। शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार होने से प्रति व्यक्ति निवेश में वृद्धि होगी।

नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects of Decline In Birth Rate)

नकारात्मक प्रभाव की बात करें तो.जन्मदर घटने से जनसंख्या वृद्धावस्था की ओर बढ़ेगी वृद्ध लोगों का अनुपात बढ़ेगा। जन्मदर घटने से कार्यबल में कमी आने का अंदेशा है। युवा जनसंख्या घटने से आर्थिक उत्पादन प्रभावित होने की प्रबल संभावना बढ़ जाती है। जन्मदर घटने से पेंशन और सामाजिक सुरक्षा पर भार बढ़ने की अंदेशा साथ ही सरकार को बुजुर्गों की देखभाल पर अधिक खर्च करना पड़ेगा।

भविष्य की संभावनाएं और नीतिगत सुझाव

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

युवा जनसंख्या बनाए रखने के लिए वृद्ध लोगों के लिए मजबूत सामाजिक सुरक्षा, महिलाओं को कार्यबल में अधिक अवसर देने जैसे विकल्पों के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी ज्यादा से ज्यादा सुधार के साथ सरलीकरण और अधिक से अधिक अवसरों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके अलावा युवा भारत की परिपाटी को बढ़ावा देने के लिए प्रवासन को प्रोत्साहित करना सबसे अहम भूमिका में शामिल है।

भारत में जन्म दर में गिरावट के कारण युवा जनसंख्या का अनुपात धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस स्थिति में, युवा जनसंख्या बनाए रखने के लिए प्रवासन (माइग्रेशन) को प्रोत्साहित करना एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है। प्रवासन को प्रोत्साहित करने का मतलब है कि अन्य देशों या क्षेत्रों में रह रहे देश के युवा और कुशल व्यक्तियों को भारत में आकर बसने और काम करने के लिए आकर्षित करना।

इससे देश की कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में वृद्धि होती है, जो आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता के लिए आवश्यक है। प्रवासन प्रक्रिया के प्रोत्साहन के निम्न संभावित लाभ होने की संभावना बढ़ जाती है :-

आर्थिक विकास

युवा और कुशल प्रवासियों के आने से श्रम बाजार में नई ऊर्जा और कौशल का संचार होता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और आर्थिक विकास को गति मिलती है।

जनसांख्यिकीय संतुलन

प्रवासी युवाओं के आगमन से वृद्ध होती जनसंख्या संरचना में संतुलन स्थापित होता है, जिससे सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर दबाव कम होता है।

सांस्कृतिक विविधता

विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले प्रवासी सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाते हैं, जिससे समाज में नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रवासन प्रोत्साहन के लिए संभावित नीतियां

सरलीकृत वीज़ा प्रक्रिया:

कुशल पेशेवरों और छात्रों के लिए वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल और त्वरित बनाना।

शिक्षा और प्रशिक्षण अवसर:

अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भारतीय संस्थानों में अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें यहाँ करियर बनाने के लिए अवसर प्रदान करना।

रोज़गार अवसरों का विस्तार:

वैश्विक कंपनियों को भारत में निवेश करने और रोजगार सृजित करने के लिए आकर्षित करना।

सांस्कृतिक समावेशन:

प्रवासियों के लिए स्वागतयोग्य वातावरण बनाना, जिससे वे समाज में आसानी से समाहित हो सकें।

इन नीतियों के माध्यम से, भारत अपनी युवा जनसंख्या को स्थिर रखते हुए आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।इस विषय पर विशेषज्ञों की राय के अनुसार भारत में जन्म दर में गिरावट एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन का संकेत है। यह संतुलित विकास के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन इससे जुड़े आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को इस बदलाव के दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त नीतियों को लागू किए जाने की आवश्यकता है।



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